Archive for 6/1/10 - 7/1/10

माधव नागदा की कविता - बचा रहे आपस का प्रेम


रचनाकार परिचय
नामः माधव नागदा
जन्मः २० दिसम्बर १९५१, नाथद्वारा(राजस्थान)
शिक्षाः एम.एस.सी. रसायन विज्ञान, बी.एड.
लेखन विधाएं: कहानी, लघुकथा, कविता, डायरी
प्रकाशनः सारिका, धर्मयुग, हंस, वर्तमान साहित्य, मधुमती, जनसत्ता, सबरंग, सम्बोधन, समकालीन भारतीय साहित्य, राजस्थान पत्रिका, दैनिक भास्कर, नवभारत टाईम्स, चर्चा, आदि।
पत्र-पत्रिकाओं तथा सौ से अधिक संकलनों मे कहानियां प्रकाशित।
प्रकाशित पुस्तकें: कहानियाँ:- १.उसका दर्द, २.शापमुक्ति, ३. अकाल और खुशबू।
लघुकथाएं: १. आग, २. पहचान (सम्पादित)
राजस्थानी भाषा मेः- १. उजास (कहानी संग्रह), २. सोनेरी पाँखां  वाळी तितळियाँ (डायरी)
विशेषः ‘‘उसका दर्द’’ राजस्थान साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत।
अन्तर्राष्ट्रीय विश्व शान्ति प्रबोधक महासंघ द्वारा राष्ट्रीय हिन्दी सेवी सहस्त्राब्दी सम्मान।
राजस्थान पत्रिका सृजनात्मक पुरस्कार (कविता- ठहरा हुआ वक्त के लिये)
सोनेरी पाँखां वाळी तितळियाँ- राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी द्वारा पुरस्कृत साकेत- साहित्य सम्मान, कहानियां क* भारतीय भाषाओं मे अनूदित
सम्प्रतिः व्याख्याता (रसायन), श्रीगोवर्धन राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय, नाथद्वारा-३१३३०१(राज
***************************************************************


एक विचार अमूर्त सा
कौंधता है भीतर
कसमसाता है बीज की तरह
हौले हौले
अपना सिर उठाती है कविता
जैसे
फूट रहा हो कोई अंखुआ
धरती को भेद कर;
तना बनेगा
शाखें निकलेंगी
पत्तियां प्रकटेंगी
एक दिन भरा-पूरा
हरा-भरा
पेड.बनेगी कविता।
कविता पेड. ही तो है
इस झुलसाने वाले समय में
कविता सें इतर
छाँव कहाँ
सुकून कहाँ
यहीं तो मिल बैठ सकते हैं
सब साथ-साथ
चल पडने को फिर से
तरो ताजा हो कर।
                                                  
लकडहारों को
नहीं सुहाती है कविता
नहीं सुहाता है उन्हें
लोगों का मिलना जुलना
प्रेम से बोलना बतियाना
भयभीत करती है उन्हें
कविता के पत्तों की
खडखडाहट
इसीलिये तो वे घूम रहे हैं
हाथ में कुठारी लिये
हिंसक शब्दों के हत्थे वाली।
हमें
बचाना है कविता को
क्रूर लकडहारों से
ताकि लोग
बैठ सकें बेधडक
इसकी छांव में
ताकि बचा रहे
आपस का प्रेम
*********** 

Posted in | 11 Comments

कैलाश चंद चौहान की दो लघुकथाएँ


रचनाकार परिचय
नाम: कैलाश चंद चौहान
जन्म: 01-01-1973

सृजन: सामयिक सामाजिक विषयों पर लघुकथा, कहानी, बाल कहानी, लेख विधाओं में लेखन कुछ व्यंग्य भी लिखें हैं."एक गांव की दाई", "सफर की बात" कहानियां जिसने भी पढ़ी पसन्द की, तारीफ की, कई प्रतिष्ठित अखबारों, पत्रिकाओं ने छापी भी.
प्रकाशन: जनसत्ता, दै0 राष्ट्रीय सहारा, नवभारत टाइम्स, हिंदुस्तान, दै0 अमर उजाला, दै0 पंजाब केसरी, दै० राजस्थान पत्रिका, दै0 नई दुनिया, नवभारत, संघर्ष, सरिता, मुक्ता, गुहशोभा, चंपक आदि 3 दर्जन से भी अधिक पत्र-पत्रिकाओं में 2002 तक 500 से भी अधिक रचनाएं छप चुकीं थी. कुछ पत्र-पत्रिकाओं ने तो कुछ रचनाएं प्रमुखता से छापींकुछ दलित, महिलाओं पर भी रचनाएं लिखीं. एक गांव की दाई, भैंस, रात की रानी, सफर की बात आदि कहानी पंजाब केसरी, राजस्थान पत्रिका, नवज्योति, रांची एक्सप्रेस आदि में प्रकाशित हुई और पाठकों को पसन्द भी आई.
प्रकाश्य: शीघ्र ही एक कहानी संग्रह भी प्रकाशित होने वाला है
सम्पादन: आशा एक्सप्रेस मासिक का संपादन
सम्प्रति: सामाजिक सरोकार एवं विकास समिति(रजि0) के अध्यक्ष, गरीब बच्चों के लिए 20.रूपये मासिक शुल्क में रोज 2 घंटे का एक शिक्षा केंद्र चलाते हैं, जिसके आप संचालक हैं जहां 125 के करीब बच्चे हैं.
*************************************************************************


प्रेम 

‘‘आज तो तुम पकडे गये दीपू भैया!’’ अंजु चहकते हुए बोली।
‘‘क्या मतलब?’’
‘‘तुम्हें क्यों बताऊँ!’’
‘‘क्या बात है अंजु? दीपक को क्यों तंग रही है?’’
‘‘मम्मी, दीपू ने एक लडकी पसन्द की है, बडी खूबसूरत है। आज मैंने पिकनिक हट में इन दोनों को देखा था।’’ क्या नाम है भैया उसका? जरा बताना तो मम्मी को.........’’
‘‘अंजू.......!’’ दीपक झेंपा।
‘‘क्यों उसे बोलने से रोक रहा है, अच्छा तू ही बता वह कहां रहती है? हम उसके मां-बाप से उसकी शादी तेरे साथ करने की बात करेंगे।’’
‘‘सच मम्मी?’’ दीपक को जैसे विश्वास न हुआ।
‘‘हाँ बेट।’’
‘‘तुम कितनी अच्छी हो मम्मी!’’
कुछ दिन बीते.
‘‘लो, सम्हालो अपनी लाडली बेटी को मम्मी।’’
‘‘क्यों, क्या हुआ? क्यों लाया है तू इसे मारते हुए?’’ दीपक की मां ने अंजू को उठाते हुए पूछा।
‘‘पूछो अपनी लाडली बेटी से। प्रेम करने लगी है। अपने प्रेमी से पार्क में बतिया रही थी।’’
दीपक की मम्मी ने अंजू की चुटिया खींचते हुए दो-तीन चांटे उसके गाल पर मारे और कहा, ‘‘क्या कहा तूने! ऐ री कलमुंही! तू ऐसे ही अपने मां-बाप का नाम रोशन करेगी? अगर कोई देख देता तो लोग क्या कहते। तू हमारी नाक ही  कटवाकर रहेगी?’’
************
नारी 
नीरज के भैया अपनी ससुराल से पत्नी को लेकर आए थे। उनके साथ दो बच्चे भी थे, एक लडकी करीब ४ महीने की थी.एक लडका दो साल का था।
नीरज की मां ने उस छोटी बच्ची को प्यार से गोदी में लिया और प्यार से दुलारते हुए बोली, ‘‘अरी, तूने पहचाना मुझे! तेरी दादी हूं, पहचान ल!. घूर-घूर कर क्या अजनबियों की तरह देख रही है।“ लडकी उसे टिमटिमाती आँखों से देखे जा रही थी।
दादी आगे बोली ‘‘मुझे तो तुझ पर मिसमिसी आ रही है। अरी तू मर क्यों नहीं गई! तू मर जा, पीछा छूटे तुझसे. बेकार में इतना खर्चा कराएगी’’।
नीरज ने फौरन अपनी बहन से भतीजे को लिया और दुलारते हुए बोला ‘‘अरे, तू ठीक ठाक है! मैंने तो सोचा था तू मर गया।’’
‘‘नीरज...........’’ माँ चीखी, ‘‘ऐसे बोलते हैं. तुझे शर्म भी नहीं आती इस तरह बोलते हुए। तू अब नादान ही रह गया है।’’
‘‘लेकिन मम्मी, मैं तो प्यार से कह रहा था।’’
‘‘भाड में जाए तेरा प्यार। खबरदार! जो इस तरह के आगे से इस तरह के अपशब्द मुंह से निकाले।’’ मां ने कहते हुए नीरज की गोद में से लडके को छीन लिया।
‘‘लेकिन मम्मी, इसमें बुरा क्या है! आप भी तो माही से बोल रही थीं।’’
‘‘वो लडकी है, यह लडका है। समझा!’’ माँ बोली। 
*******

कैलाश चंद चौहान,
रोहिणी, दिल्ली-११००८६
ईमल आई डीः kailashchandchauhan@yahoo.co.in 

Posted in | 13 Comments

बुलाकी दास 'बावरा' के तीन गीत

आदरजोग बावरा जी के गीत प्रकाशित कर 'आखर कलश' आज गौरवान्वित महसूस कर रहा है. श्री बावरा जी अपने समय के राजस्थान ही नहीं बल्कि पूरे भारत में चर्चित गीतकार रहे हैं. जिनकी कवि सम्मेलनों में भरपूर मांग रहती थी. श्री हरीश भादाणी,  श्री शिवराज छंगानी, श्री गौरीशंकर आचार्य 'अरुण' आदि का अपने समकालीन कवि और गीतकारों में एक अनुपम समूह था. हम आभारी हैं बावरा जी के सुपुत्र श्री संजय पुरोहित के जो स्वयं एक अच्छे कहानीकार और उद्दघोषक हैं, जिन्होंने वर्तमान में साहित्य से थोडा विरक्त हुवे जनकवि श्री बावरा जी के गीत प्रदान किये. - संपादकमंडल 


लेखक परिचय
नामः बुलाकी दास बावरा
पिता का नामः स्व. श्री सांगीदास पुरोहित
जन्म स्थलः ग्राम सिहडो तहसील फलोदी जिला जोधपुर
शैक्षणिक योग्यताः एम ए, बी एड, व्यायाम विशारद, साहित्यरत्न
प्रकाशित पुस्तकें-(१). वर्जनाओं के बीच (हिन्दी काव्य) १९७९
               (२). अंगारों के हस्ताक्षर(हिन्दी काव्य) १९८४
               (३). अपना देश निराला है(देशभक्ति गीत) १९८६
               (४). अधूरे स्वप्न(हिन्दी काव्य) १९९१
               (५). पणिहारी (राजस्थानी काव्य) १९९९
               (६). अपने आस-पास (हिन्दी काव्य) २००५
उपाधियां/सम्मानः  नगर विकास न्यास बीकानेर के हिन्दी भाषा का ’सूर्यकरण पारीक पुरस्कार’’ २००२, सोशल प्रोग्रेसिव सोसायटी, बीकानेर २००२, पुष्टिकर जागृति परिषद् २००२, राव बीकाजी संस्थान, बीकानेर के ’प.विद्याधर शास्त्री पुरस्कार’’ २००३,श्री जुबली नागरी भण्डार व हिन्दी विश्व भारती द्वारा सम्मान २००४।
विशेषः राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में लगभग ४० वर्षो से निरन्तर रचनाओं का प्रकाशन। गत २२ वर्षों से शिक्षा विभाग द्वारा प्रकाशित पुस्तकों का समीक्षा कार्य। आकाशवाणी बीकानेर से विगत लगभग २५ वर्षों से कविताओं का प्रसारण।
सम्प्रतिः सेवा निवृत्त वरिष्ठ अध्यापक (अंग्रेजी)
संपर्क:  ’’बावरा निवास’’ समीप सूरसागर, धोबी धोरा, बीकानेर (राजस्थान)
दूरभाषः 0151-22031२5 मोबाईल 09413481345
******************************************************************************

अभिनन्दन

जीवन पर्व, प्रिये ! अभिनन्दन ।
प्रेरित-ज्योति, नूतन साधन ।।

भोर हृदय उन्माद छिपा
मृग ठुमक ठुमक डग धरता
ऊषा की लाली को लेकर,
अंधकार को हरता
द्रुम-दल-पल्लव में स्पंदन।
जीवन पर्व, प्रिये! अभिनन्दन

बीते पतझर में बसन्त
पुनि, लाया पावन बेला,
महक उठा मधुवासिन का घर
कोई नहीं अकेला
खोया-खोया, नभ का क्रन्दन।
जीवन पर्व, प्रिये ! अभिनन्दन

पुनर्मिलन प्रिय ! पुलिकित अम्बर,
शत-शत रंगी चादर ताने,
उर्मिल-आभा से रंजित भू-
प्रीति-स्वरों के बैठ सिराने
टूटे-टूटे, लगते बन्धन।
जीवन पर्व, प्रिये! अभिनन्दन

जीवन पर्व, प्रिये ! अभिनन्दन।
प्रेरित ज्योति, नूतन साधन।।
*******
संस्मृति

बस प्रणय की स्मृति ही साथ लेता जा रहा हूँ।
प्रीत की कुछ पंक्तियां कवि, साधना में जान पाया,
शुष्क अधरों पर न जाने कौन मृदु-मुस्कान लाया ?
आज जीवन गीत की मैं भावना पहिचान पाया,
अर्थ विरह में वेदना के गीत गाता जा रहा हूँ
बस प्रणय की स्मृति ही साथ लेता जा रहा हूँ

ज्वारमय हो शान्त सागर,घोर छा जाए अंधेरा,
मैं लहर की तर्जनों में भी सुनूं संगीत तेरा,
रागिनी के उन स्वरों से, जल उठे मन दीप मेरा,
आश की पतवार लेकर, नाव खेता जा रहा हूँ
बस प्रणय की स्मृति ही साथ लेता जा रहा  हूँ

बस तुम्हारी याद में ही जल रहा अतृप्त यौवन,
मिलन की अभिलाष में ही क्षीण जर्जर प्राण-आनन,
चांद की मधु-चांदनी में देख तेरी मौन चितवन,
अश्रु सिंचित, जीर्ण मधुवन को सजाता जा रहा हूँ
बस प्रणय की स्मृति ही साथ लेता जा रहा हूँ

कल्पने! मैं आज तुमसे प्रीत बन्धन जोड कर,
दीप सम जलता रहूँगा, जगत विषमता छोड कर,
निर्भीक होकर चल पडा मग-कण्टकों को मोड कर,
हर दिशा में, एक तेरी ज्योति देखे जा रहा हूँ
बस प्रणय की स्मृति ही साथ लेता जा रहा हूँ 
*******
ऐसा पावन प्यार तुम्हारा 

ऐसा पावन प्यार तुम्हारा
जैसे गंगा बीच किनारा

तुम आभा हो मैं छाया हूँ,
तुमसे ही कुछ हो पाया हूँ,
जन्म जन्म की उपलब्धी तुम
तेरी शक्ति एक सहारा
ऐसा पावन प्यार तुम्हारा
जेसे गंगा बीच किनारा

कमियों का संसार लिये हूँ
पीडा का आगार लिये हूँ
सम्बल की एकाकी सीमा
तिस पर तेरी सुषमित कारा
ऐसा पावन प्यार तुम्हारा
जैसे गंगा बीच किनारा

किस बन्धन से बांधूँ तुमको ?
किस साधन से  साधूँ  तुमको ?
तेरा साया शुभ्र ज्योत्सना
जिसकी महिमा लख-लख हारा
ऐसा पावन प्यार तुम्हारा
जेसे गंगा बीच किनारा

जीवन की हमराज तुम्ही हो
जीने का अन्दाज तुम्ही हो
संभव तुमसे संवर-संवर कर
किंचित दूर करूं अंधियारा
ऐसा पावन प्यार तुम्हारा
जैसे गंगा बीच किनारा
*******

Posted in | 19 Comments

कुमार संभव की दो कविताएँ













तुम्हे याद आता हूं !
ना हवा मेरी गली से गुजरती है !
ना कोई रास्ता मेरे घर तक आता है !
ना सुबह किरण द्वार दस्तक देती है !
ना रात को चांद जगमगाता  है !
मैं रो पडता हूं और अश्कों को छुपाता हूं !
इतना तो बता दो क्या तुम्हे याद आता हूं !!
देखो वो पीपल का पेड भी सुख गया है
थोडा-थोडा झुक गया है
जिसकी छांव तले
हम-तुम
तुम-हम
घंटों बातें करते थे
दो चार मुलाकातें करते थे
लेकिन अब सुना है
कि वो कट जाएगा
अपनी जगह से हट जाएगा
ना तुम ना तुमहारी निशानी होगी
कुछ बातें और यादें बेगानी होगी
ये सोच कर सहम जाता हूं
मैं रो .........................
वो तेरा गिनगुनाना याद आता है !
वो तेरा पलकें गिराना याद आता है !
वो तेरा शर्माना और
मुस्कराना याद आता है !
और बहुत कुछ याद आता है !
क्या क्या बताऊं तुझे ?
मैं बहुत परेशान हूं !
खुद से ही अंजान हूं !!
वो गुलाब सम्हाल के रखा है या
तुम कंही उसे भूल ना जाओ
ये सोच के अहम जाता हूं !
मैं रो .............................
***

तिरंगा
मैंने कब मुस्कान भरी
कब लहराया मस्ती में !
मैं तो बुझा-बुझा सा लगता
अपनों की ही बस्ती में !!

मैं फहराया कम जाता हूं
लोगों का चिंतन-मनन बना !
अमर शहीदों की लाशों पर
कपडे का टुकडा कफन बना !!

इस परचम की हस्ती को
अब रोज़ मिटाया जाता है !
काश्मीर में आज तिरंगा
रोज़ जलाया जाता है !!

झंडा ऊंचा रहे हमारा
कोई कितना सम्मान करे !
जलती सरहद पर बेटे
कितने ही कुर्बान करे !!
*********
कुमार सम्भव
कवि/गीतकार
खरगोन

Posted in | 8 Comments

जया शर्मा 'जयाकेतकी' की कविता - पिता


रचनाकार परिचय
नाम: जया शर्मा ’जयाकेतकी’                  
पतिः डॉ दिलीप शर्मा
जन्मः २३ अगस्त
जन्मस्थानः जबलपुर
शिक्षाः एम ए, बी एड, एम ए, एल एल बी, एम जे, कम्प्यूटर डिप्लोमा (शोधरत)
लेखनः एक्सप्रेस मीडिया सर्विस भोपाल के लिए आलेख फीचर, पत्र-पत्रिकाओं के लिए कहानी, कविता, रेडियो के लिए कहानी, झलकी लेखन व वाचन।
रुचिः पठन, पाठन, लेखन, भ्रमण
प्रकाश्यः कविता संग्रह
सम्प्रतिः ईएमएस अकादमी ऑफ जर्नलिज्म में व्याख्याता 
**************************************************************************** 
पितृ-दिवस पर विशेष 


पिता.......

सिर्फ मेरा सहारा ही नहीं हैं,
वो मेरी गलतियों के सुधारक,
मेरे मार्गदर्शक, मेरे पथ-प्रदर्शक,
और भी इससे बढकर हैं वो।।
उनसे जाना कि शीर्ष क्या है?
उनसे जाना कि उलझने कैसे सुलझती हैं।
माँ के लिए वो देवता हैं,
भैया के लिए वो महान् हैं,
पर मेरे लिए इस सब से उपर हैं वो ।
मेरे सपनों को सच करने वाले,
मेरे कदमों को दृढ करने वाले,
मुझको धरा पर खडा करने वाले।।
मेरे मार्गदर्शक, मेरे पथ-प्रदर्शक,
और भी इससे बढकर हैं वो।।
मेरी तकलीफों में सहारा देने वाले
मेरी प्रतिष्ठा, मेरी आत्मा को पहचान देने वाले,
नहीं भूल सकता उनका घोडा बनना,
ऊँचाई को जाना था मैंने जिस पर चढकर,
मेरा हक, मेरा गुरूर,
मेरे मार्गदर्शक, मेरे पथ-प्रदर्शक,
और भी इससे बढकर हैं वो।।
*******
जया शर्मा 'जयाकेतकी'
४५ मंसब मंजिल रोड,
कोहेफिजा, भोपाल
म.प्र. (४६२००१) 


Posted in | 10 Comments

डॉ. प्रभा मुजुमदार की कविताएँ


रचनाकार परिचय 
नाम:         डॉ. प्रभा मुजुमदार
जन्म तिथि:  10.04.57, इन्दौर (म.प्र.)
शिक्षा:        एम.एससी. पीएच.डी.(गणित)
सम्प्रति:तेल एवम प्राकृतिक गैस आयोग के आगार अध्ययन केन्द्र अहमदाबाद मे कार्यरत         
प्रथम काव्य संग्रह अपने अपने आकाश अगस्त 2003 मे प्रकाशित. तलाशती हूँ जमीन दूसरा काव्य संग्रह 2009 मे.

विभिन्न साहित्यिक पत्रिकाओं वागर्थ, प्रगतिशील वसुधा, नवनीत, कथाक्रम, आकंठ, उन्नयन, संवेद वाराणसी, देशज, समकालीन जनमत, वर्तमान साहित्य, अहमदाबाद आकार, देशज, पाठ, लोकगंगा, समरलोक, समय माजरा अभिव्यक्ति अक्षरा उदभावना आदि में प्रकाशित.
नेट पत्रिकाओं कृत्या, सृजनगाथा, साहित्यकुंज मे प्रकाशन
आकाशवाणी एवं दूरदर्शन से कविताओं का प्रसारण.
सम्पर्क :  डॉ. प्रभा मुजुमदार, ए-3,अनमोल टावर्स, नारानपुरा, अहमदाबाद-380063.
दूरभाष : 079/27432654 मो. 09426614714
****************************************************************************



शब्द
मिट्टी से सोच
आकाश की कल्पना
वक्त से लेकर
हवा, धूप और बरसात
उग आया है
शब्दों का अंकुर
कागज की धरा पर
समय के एक छोटे से
कालखंड को जीता
जमीन के छोटे से टुकडे पर
जगता और पनपता
फिर भी जुडा हुआ है
अतीत और आगत से
मिट्टी की
व्यापकता से.

मृग तृष्णा
अकसर जिया है मैंने
अपनी ही अधलिखी कहानियों
और अपूर्ण ख्वाबों को
सपनों में अश्वमेघ रचाकर
कितनी ही बार
अपने को चक्रवर्ती बनते देखा है
रोशनी हमेशा ही
एक क्रूर यंत्रणा रही है
दबे पाँवों आकर
चंद सुखी अहसासों
और मीठे ख्वाबों को
समेट कर
चील की तरह
पंजों में ले भागती हुई
एक खालीपन
और लुटे पिटे होने का दंश
बहुत देर तक
सालता रहता है
फिर किसी नये भुलावे तक. 

संतुलन
एक बिंदु पर आकर
मिलने के बाद
अलग अलग दिशाओं की ओर
भागती रेखाओं की तरह
जीने की बजाय
बेहतर नहीं है क्या
समानान्तर
साथ साथ चलना
निर्धारित दूरी की
मर्यादा बाँथे रखना
एक लम्बी राह तक
जो किसी अनन्त पर जाकर
एक हो जाती है. 

क्रमशः
टूटे दर्पण से
परावर्तित होकर
अपनी ही अलग अलग आकृतियाँ
धुंधलाती जा रही हैं 
एक आवाज जो
निर्जन खण्डहर की दीवारों से
प्रतिध्वनित होकर
बार बार गूँजती है
खामोश होने से पहले.
समय के लम्बे अन्तराल में
बहाव की दिशा बदलती हुई
एक नदी
सभ्यता के कितने ही
तटों को
पछे छोड चुकी है
वे जिंदा किले और
गूंजते हुए महल
खामोश खंडहरों में
बदल चुके हैं 
जिनके पीछे बहता हुआ
छोटा सा एक झरना
रेगिस्तान ने निगल लिया है.

मरीचिका
कुछ भी मिलने की खुशी
कुछ और पाने की
प्रत्याशा में
खत्म हो जाती है
अपने ही निमित्त
दबावों तले चटखते  
अभिलाषाएं
सितारों की तरह
जगमग रोशनी देने की बजाय
चट्टान बन कर
सीने पर बोझ की तरह
लद गई हैं
हल्के फुल्के
खुशी भरे लम्हें भी
कितनी कुशलता के साथ
हम बदल देते हैं
घुटन भरे तनाव में
सांस रोके
आशंकाओं से भरे
दहकते हुए
तो कभी सिसकते हुए
सुकून का
एक पल ढूँढते हैं
जो हर पल
हाथों से
फिसलता रहता है. 

निरन्तर
टूट कर भी
कहाँ टूटते हैं सपने
बस रह जाते हैं
मन के सुदूर कोने में
कुछ वक्त के लिये
मौन
और मुखरित हो जाते हैं
अवसर पाते ही.
एक सितारे के टूटने से
आकाश का विस्तार
कम नहीं हो जाता
आँसूओं की कुछ बूंदों से
नहीं बढता है
सागर का तल
बस कुछ हल्का
हो जाता है मन
चिंतन और मंथन की
अप्रिय प्रक्रिया से
गुजरने के लिये .
तूफानो से
उजडने के बाद
भूकंप से ढह जाने के बाद
दंगो . बाढ .बमों का
तांडव भुगतने के बाद भी
हर बार
उठ खडी होती हूँ मैं
संकल्प के साथ
संजीवनी के सहारे
नये सपनों को
सजाये हुए.
*******





Posted in | 11 Comments
Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

About this blog

आखर कलश पर हिन्दी की समस्त विधाओं में रचित मौलिक तथा स्तरीय रचनाओं को स्वागत है। रचनाकार अपनी रचनाएं हिन्दी के किसी भी फोंट जैसे श्रीलिपि, कृतिदेव, देवलिस, शुषा, चाणक्य आदि में माईक्रोसोफट वर्ड अथवा पेजमेकर में टाईप कर editoraakharkalash@gmail.com पर भेज सकते है। रचनाएं अगर अप्रकाशित, मौलिक और स्तरीय होगी, तो प्राथमिकता दी जाएगी। अगर किसी अप्रत्याशित कारणवश रचनाएं एक सप्ताह तक प्रकाशित ना हो पाए अथवा किसी भी प्रकार की सूचना प्राप्त ना हो पाए तो कृपया पुनः स्मरण दिलवाने का कष्ट करें।

महत्वपूर्णः आखर कलश का प्रकाशन पूणरूप से अवैतनिक किया जाता है। आखर कलश का उद्धेश्य हिन्दी साहित्य की सेवार्थ वरिष्ठ रचनाकारों और उभरते रचनाकारों को एक ही मंच पर उपस्थित कर हिन्दी को और अधिक सशक्त बनाना है। और आखर कलश के इस पुनीत प्रयास में समस्त हिन्दी प्रेमियों, साहित्यकारों का मार्गदर्शन और सहयोग अपेक्षित है।

आखर कलश में प्रकाशित किसी भी रचनाकार की रचना व अन्य सामग्री की कॉपी करना अथवा अपने नाम से कहीं और प्रकाशित करना अवैधानिक है। अगर कोई ऐसा करता है तो उसकी जिम्मेदारी स्वयं की होगी जिसने सामग्री कॉपी की होगी। अगर आखर कलश में प्रकाशित किसी भी रचना को प्रयोग में लाना हो तो उक्त रचनाकार की सहमति आवश्यक है जिसकी रचना आखर कलश पर प्रकाशित की गई है इस संन्दर्भ में एडिटर आखर कलश से संपर्क किया जा सकता है।

अन्य किसी भी प्रकार की जानकारी एवं सुझाव हेत editoraakharkalash@gmail.com पर सम्‍पर्क करें।

Search

Swedish Greys - a WordPress theme from Nordic Themepark. Converted by LiteThemes.com.