
आपका ब्लॉग “उड़नतश्तरी” हिन्दी ब्लॉगजगत का विश्व में सर्वाधिक लोकप्रिय नाम है एवं आपके प्रशांसकों की संख्या का अनुमान मात्र उनके ब्लॉग पर आई टिप्पणियों को देखकर लगाया जा सकता है.
आपका लोकप्रिय काव्य संग्रह ‘बिखरे मोती’‘ वर्ष २००९ में शिवना प्रकाशन, सिहोर के द्वारा प्रकाशित किया गया. लघु उपन्यासिका ’सफर की सरगम’ एवं कथा संग्रह ‘द साईड मिरर’ (हिन्दी कथाओं का संग्रह) प्रकाशन में है और शीघ्र ही प्रकाशित होने वाला है.
सम्मान: आपको सन २००६ में तरकश सम्मान, सर्वश्रेष्ट उदीयमान ब्लॉगर, इन्डी ब्लॉगर सम्मान, विश्व का सर्वाधिक लोकप्रिय हिन्दी ब्लॉग, वाशिंगटन हिन्दी समिती द्वारा साहित्य गौरव सम्मान सन २००९ एवं अनेकों सम्मानों से नवाजा जा चुका है.
समीर लाल का ईमेल पता है: sameer.lal@gmail.com
माँ!!
तेरा
सब कुछ तो दे दिया था तुझे
विदा करते वक्त
तेरा
शादी का जोड़ा
तेरे सब जेवर
कुंकुम, मेंहदी, सिन्दूर
ओढ़नी
नई
दुल्हन की तरह
साजो
सामान के साथ
बिदा
किया था...
और हाँ
तेरी छड़ी
तेरी ऐनक,
तेरे नकली दांत
पिता
जी ने
सब कुछ ही तो
रख दिये थे
अपने हाथों...
तेरी
चिता में |
लेकिन
फिर भी
जब से लौटा हूँ घर
बिठा कर तुझे
अग्नि रथ पर
तेरी छाप क्यों नजर आती है?
वह धागा
जिसे तूने मंत्र फूंक
कर दिया था जादुई
और बांध दिया था
घर
मौहल्ला,
बस्ती
सभी को एक सूत्र में
आज
अचानक लगने लगा है
जैसे टूट गया वह धागा
सब कुछ
वही तो है
घर
मौहल्ला
बस्ती
और वही लोग
पर घर की छत
मौहल्ले का जुड़ाव
और
बस्ती का सम्बन्ध
कुछ ही तो नहीं
सब कुछ लुट गया है न!!
हाँ माँ !
सब कुछ
और ये सब कुछ
तू ही तो ले गई है लूट कर
मुझे पता है
जानता हूं न बचपन से
तेरा लुटेरापन |
तू ही तो लूटा करती थी
मेरी पीड़ा
मेरे दुख
मेरे सर की धूप
और छोड़ जाती थी
अपनी लूट की निशानी
एक मुस्कान
एक रस भीगा स्पर्श
और स्नेह की फुहार
अब सब कुछ लुट गया है!!
स्तम्भित हैं
पिताजी तो
यह भी नहीं बताते
आखिर
कहां लिखवाऊँ
रपट अपने लुटने की
घर के लुटने की
बस्ती और मौहल्ले के लुटने की
और सबसे अधिक
अपने समय के लुट जाने की...
***
आज फिर रोज की तरह
माँ याद आई!!
माँ
सिर्फ मेरी माँ नहीं थी
माँ
मेरे भाई की भी
माँ थी
और भाई की बिटिया की
बूढ़ी दादी..
और
मेरी बहन की
सिर्फ माँ नहीं
एक सहेली भी
एक हमराज...
और फिर उसकी बेटियों की
प्यारी नानी भी वो ही...
उनसे बच्चों सा खेलती नानी...
वो सिर्फ मेरी माँ नहीं
गन्सु काका की
माँ स्वरुप भाभी भी
और राधे ताऊ की
बेटी जैसी बहु भी...
दादा की
मूँह लगी बहू
दादी की आदेशों की पालनकर्ता
उनकी परिपाटी की मूक शिष्या..
उन्हें आगे ले जाने को तत्पर...
और नानी की
प्यारी बिटिया
वो थी
अपनी छोटी बहिन और भाईयों की दीदी
और अपनी दीदी की नटखट छुटकी..
नाना का अरमान
वो राधा की सहेली ही नहीं
माँ सिर्फ मेरी ही नहीं..
उसकी बेटी की भी
माँ थी...
माँ
कितना कुछ थी..
बस और बस,
माँ सिर्फ माँ थी..
हर रुप में..
हर स्वरुप में..
मगर फिर भी
सिर्फ मेरी ही नहीं...
माँ हर बार
सिर्फ माँ थी.
अब
माँ नहीं है
इस दुनिया में...
वो मेरे पिता की
पत्नी, बल्कि सिर्फ पत्नी ही नहीं
हर दुख सुख की सहभागी
उनकी जीवन गाड़ी का
दूसरा पहिया...
अब
पिता छड़ी का सहारा लेते हैं..
और फिर भी
लचक कर चलते हैं...
माँ!!
जाने क्या क्या थी
माँ थी
मेरा घर
वो गई
मैं बेघर हुआ!
***
-समीर लाल ’समीर’