Archive for 12/1/11 - 1/1/12

सांवर दइया की कविताएं

                  

सांवर दइया
जब देखता हूं

जब देखता हूं
धरती को
इसी तरह रौंदी-कुचली
देखता हूँ
जव देखता हूँ आकाश को
इसी तरह अकड़े-ऎंठे
देखता हूँ
अब मैं
किस-किस से कहता फिरूँ
अपना दुख -
यह धरती : मेरी माँ !
यह आकाश : मेरा पिता !
***
बीजूका : एक अनुभूति

सिर नहीं
है सिर की जगह
औंधी रखी हंडिया
देह -
लाठी का टुकड़ा
हाथों की जगह पतले डंडे

वस्त्र नहीं है ख़ाकी
फिर भी
क्या मजाल किसी की
एक पत्ता भी चर ले कोई
तुम्हारे होते !
***

उल्टे हुए पड़े को देख कर

मेरी जड़ें
ज़मीन में कितनी गहरी हैं
यह सोचने वाला पेड़
आँधी के थपेड़ों से
उलट गया ज़मीन पर
कितने दिन रहेगा
तना हुआ मेरा पेड़-रूपी बदन ?

रोज़ चलती है
यहाँ अभावों की आँधी
धीरे-धीरे काटता है
जड़ों को जीवन

अब
यह गर्व फिजूल
मेरी जड़ें
ज़मीन में कितनी गहरी हैं ?
***

हत्भाग्य

गूंगा गुड़ के गीत गा रहा है
बहरा सराह रहा है
सजी सभा में
पंगुल पाँव सहला कर बोला -
मैं नाचूँगा ।

अँधा आगे आया
कड़क कर बोला -
तुमने ठेका ले रक्खा है
मुझे भी तो देखने दो !

कलाकार !
लो, सँभालो तुम्हारी क़लम !
***

छल

लोग कहते हैं
तू जिन्हें दाँत देता है
उन्हें चने नहीं देता
और जिन्हें चने देता है -
उन्हें दाँत !

पर मुझे तो तूने
दोनों ही दिए, दाँत और चने ।
दीगर है यह बात
कि इन दाँतों से
ये चने चबाए नहीं जाते ।
***
सूरज : चार चित्र

एक
पूरब : सागर अथाह
सूरज खेने वाला
भगा आता है ले कर
दिन-नाव ।

दो
रात : जुल्मों की राजधानी
अंधेरा : गुंडा
अकेला सूरज
जूझता है, जीतता है
मनाता है जीत उत्सव
पूरब किले खड़ा हो
उडाता है - सिंदूरी गुलाल ।

तीन
पूरब में सिंदूरी उजाला
जैसे जवान होती लड़की के
चेहरे पर आती रौनक

सिंदूरी सूरज
जैसे अभी-अभी बनवाया हो
सोने का नया टीका
भोर लड़की जवान होगी तब
काम आएगा

वह सोचती है-
कुदरत मां ।

चार
पूरब-चौक
खेले भोर-लड़की
सूरज गेंद ।
***

अनुवाद : नीरज दइया
नीरज दइया

सांवर दइया (10 अक्तूबर, 1948 - 30 जुलाई, 1992) कवि, कथाकार और व्यंग्य लेखक की हिंदी में “दर्द के दस्तावेज” (1978 ग़ज़ल संग्रह), “उस दुनिया की सैर के बाद” (1995 कविता-संग्रह), एक दुनिया मेरी भी (कहानी संग्रह) तथा राजस्थानी में अनेक पुस्तकें प्रकाशित हुई- प्रमुख कविता संग्रह है- मनगत, आखर री औकात, हुवै रंग हजार, आ सदी मिजळी मरै आदि । साहित्य अकादेमी से पुरस्कृत।

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डॉ. वर्तिका नन्दा की कविता- औरत

                    औरत

 












सड़क किनारे खड़ी औरत
कभी अकेले नहीं होती
उसका साया होती है मजबूरी
आंचल के दुख
मन में छिपे बहुत से रहस्य

औरत अकेली होकर भी
कहीं अकेली नहीं होती

सींचे हुए परिवार की यादें
सूखे बहुत से पत्ते
छीने गए सुख
छीली गई आत्मा

सब कुछ होता है
ठगी गई औरत के साथ

औरत के पास
अपने बहुत से सच होते हैं
उसके नमक होते शुरीर में घुले हुए

किसी से संवाद नहीं होता
समय के आगे थकी इस औरत का

सहारे की तलाश में
मरूस्थल में मटकी लिए चलती यह औरत
सांस भी डर कर लेती है
फिर भी

जरूरत के तमाम पलों में
अपनी होती है
***

डॉ. वर्तिका नन्दा एक मीडिया यात्री हैं। मीडिया अध्यापन, मीडिया प्रयोग और प्रशिक्षण इनके पसंदीदा क्षेत्र हैं। इस समय वर्तिका दिल्ली विश्व विद्यालय की स्थाई सदस्य हैं। इससे पहले वे 2003 में इंडियन इंस्टीट्यूट आफॅ मास कम्यूनिकेशन, नई दिल्ली में बतौर एसोसिएट प्रोफेसर( टेलीविजन पत्रकारिता) चयनित हुईं और यहां तीन साल तक अध्यापन किया। इन्होंने पीएचडी बलात्कार और प्रिंट मीडिया की रिपोर्टिंग को लेकर किए गए अपने शोध पर हासिल की है।
इन्होंने अपनी मीडिया प्रयोग की शुरूआत 10 साल की उम्र से की और जालंधर दूरदर्शन की सबसे कम उम्र की एंकर बनीं। लेकिन टेलीविजन के साथ पूर्णकालिक जुड़ाव 1994 से हुआ। इन्होंने अपने करियर की शुरूआत जी टीवी से की, फिर करीब 7 साल तक एनडीटीवी से जुड़ी रहीं और वहां अपराध बीट की हेड बनीं। तीन साल तक भारतीय जनसंचार संस्थान में अध्यापन करने के बाद ये लोकसभा टीवी के साथ बतौर एक्जीक्यूटिव प्रोड्यूसर जुड़ गईं। चैनल के गठन में इनकी एक निर्णायक भूमिका रही। यहां पर वे प्रशासनिक और प्रोडक्शन की जिम्मेदारियों के अलावा संसद से सड़क तक जैसे कई महत्वपूर्ण कार्यक्रमों को एंकर भी करती रहीं।
इसके बाद वर्तिका सहारा इंडिया मीडिया में बतौर प्रोग्रामिंग हेड नियुक्त हुईं और सहारा के तमाम न्यूज चैनलों की प्रोग्रामिंग की जिम्मेदारी निभाती रहीं।
इस दौरान इन्हें प्रिंट मीडिया के साथ भी सक्रिय तौर से जुड़ने का मौका मिला और वे मासिक पत्रिका सब लोग के साथ संयुक्त संपादक के तौर पर भी जुड़ीं। इस समय वे त्रैमासिक मीडिया पत्रिका कम्यूनिकेशन टुडे के साथ एसोसिएट एडिटर के रूप में सक्रिय हैं।
प्रशिक्षक के तौर पर इन्होंने 2004 में लाल बहादुर शास्त्री अकादमी में प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों के लिए पहली बार मीडिया ट्रेनिंग का आयोजन किया। इसी साल भारतीय जनसंचार संस्थान, ढेंकानाल में वरिष्ठ रेल अधिकारियों के लिए आपात स्थितियों में मीडिया हैंडलिंग पर एक विशेष ट्रेनिंग आयोजित की। इसके अलावा टीवी के स्ट्रिंगरों और नए पत्रकारो के लिए दिल्ली, जयपुर, भोपाल, रांची, नैनीताल और पटना में कई वर्कशॉप आयोजित कीं। आईआईएमसी, जामिया, एशियन स्कूल ऑफ जर्नलिज्म वगैरह में पत्रकारिता में दाखिला लेने के इच्छुक छात्रों के लिए आयोजित इनकी वर्कशॉप काफी लोकप्रिय हो रही हैं।
2007 में इनकी किताब लिखी- 'टेलीविजन और अपराध पत्रकारिता' को भारतेंदु हरिश्चंद्र अवार्ड मिला। यह पुरस्कार पत्रकारिता में हिंदी लेखन के लिए भारत का सूचना और प्रसारण मंत्रालय देता है। इसके अलावा 2007 में ही वर्तिका को सुधा पत्रकारिता सम्मान भी दिया गया। चर्चित किताब - 'मेकिंग न्यूज' (ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस से प्रकाशित ) में भी वर्तिका ने अपराध पर ही एक अध्याय लिखा है।
2009 में वर्तिका और उदय सहाय की किताब मीडिया और जन संवाद प्रकाशित हुई। इसे सामयिक प्रकाशन ने छापा है। यह वर्तिका की तीसरी किताब है। 1989 में वर्तिका की पहली किताब (कविता संग्रह) मधुर दस्तक का प्रकाशन हुआ था।
बतौर मीडिया यात्री इन्हें 2007 में जर्मनी और 2008 में बैल्जियम जाने का भी अवसर मिला। 2008 में इन्होंने कॉमनवैल्थ ब्रॉडकास्ट एसोसिएशन के चेंज मैनेजमेंट कोर्स को भी पूरा किया।
इन दिनों वे मीडिया पर ही दो किताबों पर काम कर रही हैं। हिंदुस्तान, जनसत्ता, प्रभात खबर आदि में मीडिया पर कॉलम लिखने के अलावा ये कविताएं भी आम तौर पर मीडिया पर ही लिखना पसंद करती हैं।
वर्तिका की रूचि मीडिया ट्रेनिंग में रही है। वे उन सब के लिए मीडिया वर्कशाप्स आयोजित करती रही हैं जो मीडिया को करीब से जानना-समझना चाहते हैं।

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