Archive for 11/1/11 - 12/1/11

विजेंद्र की कविताएँ



विजेन्द्र
 श्री विजेन्द्र निराला की काव्य परम्परा के प्रतिनिधि कवि हैं होने के साथ ही साथ एक प्रतिष्ठित चित्रकार भी हैं। विजेन्द्र जी चित्रकला को कविता का पूरक मानते हैं। यही कारण है कि उनके काव्य सृजन के भाव उनकी कृतियों में लय होते नजर आते हैं।
उनके काव्य-चित्र संग्रह 'आधी रात के रंग' में उनकी कविताओं के साथ उनके चित्रों का अनुपम तथा अद्वितीय संगम है। इसी संग्रह से आज आपके समक्ष प्रस्तुत है कुछ कविताएँ इसी आशा के साथ कि आप उनके तूलिका और कलम के समवेत भावों के अद्वितीय एवं मधुर मधुर प्रयोग का आस्वादन कर आनंदित होंगे...


१. कवि

मेरे लिए कविता रचने का
कोई खास क्षण नहीं।
मैं कोई गौरय्या नहीं
जो सूर्योदय और सूर्यास्त पर
घौंसले के लिए
चहचहाना शुरू कर दूँ।

समय ही ऐसा है
कि मैं जीवन की लय बदलूँ-
छंद और रूपक भी
एक मुक्त संवाद-
आत्मीय क्षणों में कविता ही है
जहाँ मैं-
तुम से कुछ छिपाऊं नहीं।
सुन्दर चीज़ों को अमरता प्राप्त हो
यही मेरी कामना है
जबकि मनुष्य उच्च लक्ष्य के लिए
प्रेरित रहें!
हर बार मुझे तो खोना ही खोना है
क्योंकि कविता को जीवित रखना
कोई आसान काम नहीं
सिवाय जीवन तप के।

जो कुछ कविता में छूटता है
मैंने चाहा कि उसे
रंग, बुनावट, रेखाओं और दृश्य बिंबों में
रच सकूँ।

धरती उर्वर है
हवा उसकी गंध को धारण कर
मेरे लिए वरदार!

गाओ, गाओ-ओ कवि ऐसा,
जिससे टूटे और निराश लोग
जीवन को जीने योग्य समझें।

हृदय से उमड़े हुए शब्द
आत्मा का उजास कहते हैं।
***

२. शिखर की ओर


जब भी मैंने देखा
शिखर की ओर
तुमने त्यौंरियाँ बदलीं
जब मैं चढ़ा
तुम ने चट्टानों के खण्ड
मेरी तरफ ढकेले।
कई बार मैं गिरा
और पीछे हटा
कई बार टूटा और रोया
कई बार फिर प्रयत्न किए
कि चट्टानी लहरों का
कर सकूँ सामना।
समय हर क्षण-
मेरी परीक्षा लेता रहा।
मेरे पंख कहाँ
जो आकाश में उडूँ
ऊबड-खाबड
पृथ्वी चल कर ही
चढूँगा पहाड़ और मँगरियाँ
ओ दैत्य-
हर बार तू मुझे
धकेलेगा नीचे
जीवन ही है सतत् चढना-
और मेरे जीवन में
कभी नहीं हो सकती
अंतिम चढ़ाई।
***

३. क्रौंच मिथुन
 


ओ, क्रौंच मिथुन
तुम कभी नहीं बिछुड़ते-
एक दूसरे से-
कभी दूर नही होते।
मैंने देखा अक्सर तुम्हें-
धान के भरे खेतों में
या दलदली
ज़मीन में
अपने आहार और आनंद के लिए
तुम्हें शान्त विचरते देखा है।
तुम्हारे जैसा प्रेम
यदि मनुष्यों के बीच
भी होता-
तो यह धरती
इतनी दुःखी और दुष्ट
न होती।
जब तुम उड़ते हो लयबद्ध
मंद-मंद
आकाशीय पंख फैलाए
तब मैंने तुम्हारी आवाज़ में
तूर्यनाद जैसी
मेघ गर्जन की ध्वनियाँ सुनी हैं।
प्रजनन क्षणों में
तुम आत्मविभोर होके
नृत्य करते हो
जैसे विराट प्रकृति का
अभिवादन कर रहे हो-
एक-दूसरे को मोहित करने के लिए।
तुम दिव्य किलोलें करते हो।
सरकण्डों और घास के
खेतों के बीच
तुम अपना नीड़
बुनते हो।
हिंस्र पशुओं से अपने शिशुओं की
रक्षा करते को
उनसे लड़ते हो...
ओ क्रौंच मिथुन
तुम वाल्मीकि की कविता में
अमर हो।
***


नोट- समस्त चित्र स्वयं विजेंद्र जी द्वारा उकेरे गए हैं.

Posted in | 7 Comments
Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

About this blog

आखर कलश पर हिन्दी की समस्त विधाओं में रचित मौलिक तथा स्तरीय रचनाओं को स्वागत है। रचनाकार अपनी रचनाएं हिन्दी के किसी भी फोंट जैसे श्रीलिपि, कृतिदेव, देवलिस, शुषा, चाणक्य आदि में माईक्रोसोफट वर्ड अथवा पेजमेकर में टाईप कर editoraakharkalash@gmail.com पर भेज सकते है। रचनाएं अगर अप्रकाशित, मौलिक और स्तरीय होगी, तो प्राथमिकता दी जाएगी। अगर किसी अप्रत्याशित कारणवश रचनाएं एक सप्ताह तक प्रकाशित ना हो पाए अथवा किसी भी प्रकार की सूचना प्राप्त ना हो पाए तो कृपया पुनः स्मरण दिलवाने का कष्ट करें।

महत्वपूर्णः आखर कलश का प्रकाशन पूणरूप से अवैतनिक किया जाता है। आखर कलश का उद्धेश्य हिन्दी साहित्य की सेवार्थ वरिष्ठ रचनाकारों और उभरते रचनाकारों को एक ही मंच पर उपस्थित कर हिन्दी को और अधिक सशक्त बनाना है। और आखर कलश के इस पुनीत प्रयास में समस्त हिन्दी प्रेमियों, साहित्यकारों का मार्गदर्शन और सहयोग अपेक्षित है।

आखर कलश में प्रकाशित किसी भी रचनाकार की रचना व अन्य सामग्री की कॉपी करना अथवा अपने नाम से कहीं और प्रकाशित करना अवैधानिक है। अगर कोई ऐसा करता है तो उसकी जिम्मेदारी स्वयं की होगी जिसने सामग्री कॉपी की होगी। अगर आखर कलश में प्रकाशित किसी भी रचना को प्रयोग में लाना हो तो उक्त रचनाकार की सहमति आवश्यक है जिसकी रचना आखर कलश पर प्रकाशित की गई है इस संन्दर्भ में एडिटर आखर कलश से संपर्क किया जा सकता है।

अन्य किसी भी प्रकार की जानकारी एवं सुझाव हेत editoraakharkalash@gmail.com पर सम्‍पर्क करें।

Search

Swedish Greys - a WordPress theme from Nordic Themepark. Converted by LiteThemes.com.