1.
नयन हो गए आज फिर सजल ।
याद वो आने लगे प्रतिपल ।
टूट के बरसा अबके सावन
सहमा-सिहरा घर का आँगन
हाल ये उनसे कह दे मन
हरिया गयी है पीर चंचल
याद वो आने लगे प्रतिपल।
प्राण वेदना विकल सघन सी
पली बढ़ी फैली है वन सी
विगत कथाएँ छाई घन सी
कठिन है कोई जाए बहल
याद वो आने लगे प्रतिपल।
प्रेम जागा भोर-सा
मिट चले सारे अँधेरे ।
बौराए बन फागुन - से
मदमस्त मेरे
स्वप्न - कुञ्ज
गले - पिघले प्रतिपल
ऊष्ण श्वासों से
पाषाणी - पुंज
नशा साँझ का
खुमार बन चढ़ा सवेरे ।
प्रेम जागा भोर - सा
मिट चले सारे अँधेरे ।
मेरे आँगन चुपके - चुपके
खुसर-फुसर तुलसी लहराए
आहट उनकी सुन
मन की चिरिया पर फहराए
रूप ने उनके
डाले हृदय में डेरे ।
प्रेम जागा भोर - सा
मिट चले सारे अँधेरे ।
मुझ से मेरे राम छिन रहे हैं।
प्रेम पगे हैं जिनसे जन मन
गोकुल वृंदा श्याम छिन रहे हैं।
भूलूं स्वयं को अपने घर में
घर के सारे काम छिन रहे हैं।
बाजारों की चमक दमक में
तीरथ गंगा धाम छिन रहे हैं।
रोम-रोम में रमने वाले हे! मेरे भगवान् छिन रहे हैं.
चैन सिंह शेखावत
व्याख्याता(हिंदी)
रा.उ.मा.वि.,समेजा
जिला-श्रीगंगानगर (राज.)
namaskaar...
ReplyDeletenarendra vyas ji ne aapke blog par bheja...
padh ka bahut hee cahha laga shekhaawat ji...
aise hee likhte rahiye..
WAH SA CHAIN SINGH JI SHEKHAWAT ! JORDAR LIKHI KAVITAYEN !LAGE RAHO!! AAKASHWANI PAR BHI AAPKI KAVITAYEN ASARDAR THIN ! BADHAAI HO !
ReplyDeleteAAPKA SCHOOL SAMEJA HAI YA SAMEJA KOTHI ? Dr.MANGAT BADAL JI SE BHI MILNA HOTA HOGA !UN SE GEET-KAVITAYEN -PARICHY-PHOTO LE KAR AAKHAR KALASH KO BHEJO ! KABHI SHRI KARANPUR BHI JA AAO ! WAHAN SHRI JANAK RAJ JI PAREEK SE MILO ! UNKI RACHNAYEN YAHAN JAROOR BHEJO ! YE BAHUT BADA KAM HO JAYEGA !
ReplyDeleteभूलूं स्वयं को अपने घर में
ReplyDeleteघर के सारे काम छिन रहे हैं।
बहुत अच्छी भावनाएं और उतने अच्छे ही शब्द. कागद जी ने अच्छे सुझाव दिए हैं. हो सके तो अमल करियेगा.
-prithvi
TIPPANIYAN BHI AAJ KAL "APNE AADMI" KE LIYE HO RAHI HAIN. AB DEKHO YE NAYA KAVI HAI OR ISKA SAMPARK BAHUT KAM HAI TO TIPPANIYAN BHI KAM AAI HAIN ! KAMAL HAI !!
ReplyDeleteKYA HOGA IS JAGAT KA ?
बहुत अच्छे गीत हैं और गीतिका भी।
ReplyDelete@ओम पुरोहित 'कागद' जी
आपका कहना काफी हद तक ठीक है कि टिप्पणियॉं भी आदान-प्रदान का विषय हो गयी हैं, यही दु:खद सत्य है लेकिन कुछ समस्यायें और भी हैं। अगर इस ब्लॉग पर एक दिन में एक ही रचना लगे (और वह भी छोटी) तो आप पायेंगे कि पाठक संख्या बढ़ रही है। वस्तुत: किसी ब्लॉग पर रोज चार-पॉंच रचनायें लगना भारी पड़ जाता है पाठकों के लिये। प्रवृत्ति सीमित और सटीक वाचन की है। छोटी और सार्थक रचनायें लगें तो लोग पढ़ेंगे वरना बिना पढ़े टिप्पणी दे भी गये तो अर्थहीन है।