जन्म एक जनवरी 1957 को उत्तर प्रदेश में स्थित मऊ नाथ भंजन जनपद के गांव बड़ागांव में। शिक्षा काशी, प्रयाग और आगरा में। आगरा विश्वविद्यालय के ख्यातिप्राप्त संस्थान के. एम. आई. से हिंदी साहित्य और भाषा में स्रातकोत्तर की उपाधि। उत्तर भारत के प्रख्यात संत कवि दादू दयाल की कविताओं के मर्म पर शोध के लिए डाक्टरेट की उपाधि। कविता, कहानी, व्यंग्य और आलोचना में निरंतर सक्रियता। देश की प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिकाओं, वर्तमान साहित्य, अभिनव कदम,अभिनव प्रसंगवश, लोकगंगा, आजकल, मधुमती, समन्वय, वसुधा, शोध-दिशा में रचनाओं का प्रकाशन। ई-पत्रिका अनुभूति, रचनाकार, कृत्या और सृजनगाथा में कविताएं। कविता कोश, काव्यालय, गर्भनाल और महावीर में भी कवितयें। अंजोरिया वेब पत्रिका पर भोजपुरी में रचनाएं। फिलहाल पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय। आवास-158, एमआईजी, शास्त्रीपुरम, आगरा ( उत्तर प्रदेश)|
सूरज उगे, न उगे
चांद गगन में
उतरे, न उतरे
तारे खेलें, न खेलें
मैं रहूंगा सदा-सर्वदा
चमकता निरभ्र
निष्कलुष आकाश में
सबको रास्ता देता हुआ
आवाज देता हुआ
समय देता हुआ
साहस देता हुआ
चाहे धरती ही
क्यों न सो जाय
अंतरिक्ष क्यों न
जंभाई लेने लगे
सागर क्यों न
खामोश हो जाय
मेरी पलकें नहीं
गिरेंगी कभी
जागता रहूंगा मैं
पूरे समय में
समय के परे भी
जो प्यासे हों
पी सकते हैं मुझे
अथाह, अनंत
जलराशि हूं मैं
घटूंगा नहीं
चुकूंगा नहीं
जिनकी सांसें
उखड़ रही हों
टूट रही हों
जिनके प्राण
थम रहे हों
वे भर लें मुझे
अपनी नस-नस में
सींच लें मुझसे
अपना डूबता हृदय
मैं महाप्राण हूं
जीवन से भरपूर
हर जगह भरा हुआ
जो मर रहे हों
ठंडे पड़ रहे हों
डूब रहे हों
समय विषधर के
मारक दंश से आहत
वे जला लें मुझे
अपने भीतर
लपट की तरह
मैं लावा हूं
गर्म दहकता हुआ
मुझे धारण करने वाले
मरते नहीं कभी
ठंडे नहीं होते कभी
जिनकी बाहें
बहुत छोटी हैं
अपने अलावा किसी को
स्पर्श नहीं कर पातीं
जो अंधे हो चुके हैं लोभ में
जिनकी दृष्टि
जीवन का कोई बिम्ब
धारण नहीं कर पाती
वे बेहोशी से बाहर निकलें
संपूर्ण देश-काल में
समाया मैं बाहें
फैलाये खड़ा हूं
उन्हें उठा लेने के लिए
अपनी गोद में
मैं मिट्टी हूं
पृथ्वी हूं मैं
हर रंग, हर गंध
हर स्वाद है मुझमें
हर क्षण जीवन उगता
मिटता है मुझमें
जो चाहो रच लो
जीवन, करुणा
कर्म या कल्याण
मैंने तुम्हें रचा
आओ, अब तुम
मुझमें कुछ नया रचो
2.समय
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फूल के खिलने
और मुरझाने की
संधि पर
खड़ा रहता है
समय
पूरी तरह
खिला हुआ
एक फूल
मुरझाता है
और समय
दूसरी संधि पर
खिल उठता है
मौसम के दो चित्र
--------------------------- 1. गुस्साया सूरज
---------------------
सुबह का सूरज
अच्छा लगता है
लाल गुब्बारे की तरह
आसमान में उठता हुआ
अपनी मीठी रोशनी में
डुबोता पेड़ों को, फ़सलों को
झरता है खिड़की से
मेरे कमरे में
और फैल जाता है
बिस्तरे पर, फर्श पर
पर नहीं रहता वह
इसी तरह शांत और प्यारा
बहुत देर तक
धरती को नंगी देख
तमतमा उठता है वह
आगबबूला हो उठता है
क्यों काटे गये पेड़
क्यों रौंदे गये पहाड़
क्यों गंदी की गयीं नदियाँ
किसने सूर्य से मिले
वरदान को बदल
डाला भयानक अभिशाप में
अपने पागल स्वार्थ में
गुस्साया सूरज धरती के
पास आना चाहता है
बिलकुल पास
उसे सहलाना चाहता है
चूमना चाहता है
उसे वापस अपनी
दहकती गोंद में
उठा लेना चाहता है
जल रहा है सूरज
आदमी कब तक भागेगा
सूरज के ताप से
सूरज के क्रोध से
2. ओ बादल
----------------
जलते अधरों पर गिरीं बूंदें
तो छनछ्ना कर
उड़ गयीं पल भर में
इन्तजार में दहक रहा था मन
तन से उठ रहा था धुआं
नसों में बह रहा था लावा
ओ बादल तुम आए
शीतल बयार की तरह
मेरे आँगन में बरस गए
खूब भीगा मैं पहली बार
इस मौसम में
इतना भींगा कि भाप बन गया
पर अभी ठहरना कुछ दिन
कुछ और दिन रहना
मेरे आस-पास
तब तक
जब तक मैं भाप से
फिर चमकती
बूंदों में नहीं बदल जाता
***
जन्म- 19 जून, 1964 को बिहार के शेखपुरा जिला के चेवारा में।
पिता/माता- जनाब हसन इमाम और माँ सईदा खातून।
शिक्षा- स्कूली शिक्षा श्री कृष्ण उच्च विद्यालय, चेवारा (शेखपुरा)। इंटर रांची युनिवसिर्टी के तहत रांची कालेज से । ग्रेजुएशन भागलपुर युनिवसिर्टी के रमाधीन कालेज (शेखपुरा)। व्यवसायिक शिक्षा पटना के आईआईबीएम से होटल प्रबंधन में पोस्ट ग्रेजुएशन।
लेखन- उर्दू और हिंदी में समान रूप से लेखन। लघुकथाएँ, कविता, कहानी, समीक्षा और सम-सामयिक लेखन। साहित्य-संस्कृति पर नियमित लेखन।
पत्रकारिता- लंबे समय से पत्रकारिता। 1981 से जनसत्ता में बतौर खेल पत्रकार करियर की शुरुआत। इससे पहले सेंटिनल (गुवाहाटी), अमृत वर्षा (पटना), दैनिक हदिुंस्तान (पटना) और उर्दू ब्लिट्ज (मुंबई) से जुड़ाव। बतौर खेल पत्रकार विश्व कप क्रिकेट, विश्व कप हाकी, एकदिवसीय व टैस्ट क्रिकेट मैचों, राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय फुटबाल मैचों, राष्ट्रीय टेनिस, एथलेट्किस वालीबाल, बास्केटबाल सहित दूसरे खेलों की रिपोर्टिंग।
इलेक्ट्रानिकमीडिया- एटीपी चैलेंजर टेनिस, राष्ट्रीय बास्केटबाल, कोलकाता फुटबाल लीग, राष्ट्रीय एथलेटिक्स का दूरदर्शन के नेशनल नेटवर्क पर लाइव कमेंटरी। कविताएँ-इंटरव्यू दूरदर्शन पर प्रसारित। आकाशवाणी के लिए लंबे समय तक सहायक प्रोड्यूसर (अंशकालिक) के तौर पर काम किया। कविताएँ-कहानियाँ कोलकाता व पटना, गुवाहाटी के आकाशवाणी केंद्र से प्रसारित।
प्रकाशन- लधुकथा संग्रह मुखौटों से परे और कविता संग्रह नवपल्लव का संपादन।
संपादन- साहित्यक पत्रिका श्रृंखला व सनद का संपादन।
सम्मान- साहित्य व पत्रकारिता के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए कवि रमण सम्मान, रणधीर वर्मा स्मृति सम्मान, सृजन सम्मान और रामोदित साहु सम्मान।
कभी-कभी ही कोई तारीख़
बन जाती है इतिहास
और याद रह जाती है सालों तक
ठीक 9/11 की तरह
हालांकि उस दिन न सरकारें बदलीं
न कहीं बगावत हुई
न ही ऐसा कुछ घटा
जिससे दहल जाती दुनिया
लेकिन फिर भी सत्ताइस जून की तारीख़
एक इतिहास की तरह गड़ गई
अमेरिका के सीने में
जिसे अमेरिका चाह कर भी
इतिहास के पन्नों से अलग नहीं कर पाएगा
एक तारीख़ फिर बनी इतिहास
और सुपर पावर के सीने पर
छोड़ गई अपनी धमक यह भी इतिहास है कि
पहले मैदानों पर लड़ी जाती थी लड़ाइयां
लेकिन अब ऐसा नहीं होता
जंग अब थोपी जाती है छोटे देशों पर
और सुपरपावर बन कर दुनिया को धमकाने के लिए
दी जाती है जंग की धमकी
जंग अब मैदानों पर नहीं
जंग व्हाइट हाउस से लड़ी जाती है
और छोटे देशों पर
दागे जाते हैं मिसाइल
अपनी दादागिरी के लिए
भेजे जाते हैं बेड़े
और विमानों से गिराए जाते हैं बम
मैदानों का सारा गणित बदल गया है
और भूमिका भी मैदानों पर अब खेले जाते हैं खेल
जहां हथियारों के बिना होते हैं
बराबर के मुकाबले
मजबूत और कमज़ोर खिलाड़ियों को मिलते हैं
जीतने के लिए बराबर के मौक़े
मैदानों पर न गोलियां चलती हैं
न मिसाइल का होता है डर
न होते हैं टैंक
और न ही तनी होती हैं बंदूक़ों की नलियां
लेकिन फिर भी लड़ी जाती है जंग
कला से, कौशल से, ताक़त से और रणनीति से
खेल के मैदान पर कोई ‘मित्र देश’
किसी की मदद को नहीं आता
बस दो ही टीमें होती हैं आमने-सामने
सुपर पावर अमेरिका हो या फिर छोटा सा देश घाना
अपने-अपने कला-कौशल से
जीत के लिए उतरते हैं मैदानों पर
किसी बाहरी ताक़त की मदद के बिना
इसलिए खेल के मैदानों पर
कभी-कभी बनता है इतिहास
और कोई-कोई तारीख़
बन जाती हैं इतिहास दक्षिण अफ्रीका के स्टेनबर्ग स्टेडियम पर
विश्व कप फुटबाल में
सत्ताइस जून को घाना ने रचा इतिहास
सुपर पावर अमेरिका को फतह कर
उसने दिखाई थी अपनी ताक़त
फुटबाल के मैदान पर
न मिसाइलें चलीं
न राकेट दागे गए
न आसामानों पर दनदनाते रहे अमेरिकी वायुसेना के विमान
बस था तो फुटबाल का जनून और
कुछ कर गुजरने की ललक
जिसने रातोंरात घाना को
दुनिया के नक्शे पर ला खड़ा किया आरपार के इस मुक़ाबले में
काले-कलूटे खिलाड़ियों ने
अपने से कहीं ताक़तवर मुल्क को
हर तरह से टक्कर दी
और अतिरिक्त समय में खिंचे इस मैच में
तेज़ तर्रार स्ट्राइकर असामोह ग्यान ने
मध्य पंक्ति से उछाली गेंद को
अमेरिकी हाफÞ में अपनी छाती पर उतारा था
और फिर बाएं फ्लैंक से तेज़ फर्राटा लगाता हुआ
अमेरिकी डिफेंस को छकाते हुए
बाक्स के ठीक ऊपर से
बाएं पांव से दनदनाता शाट लगा कर गोल भेद दिया था
अमेरिकी गोलची कुछ समझता
गेंद इससे पहले ही जाल के बाएं कोने में उलझी नाच रही थी
और घाना इस गोल का जश्न मना रहा था
हताश, मायूस अमेरिकी
जाल में तैरती गेंद को
बस देख भर रहे थे
इस एक गोल से घाना इतिहास का हिस्सा बन गया था
और अमेरिका हार कर
मुक़ाबले से बाहर हो गया था आमने-सामने और बराबरी की लड़ाई में
व्यक्ति हो या देश
सुपर पावर की आंखों में आंखें डाल कर
उसकी बाहें मरोड़ कर
उसे मुक़बाले से बाहर कर देता है
जैसा उस दिन घाना ने किया था कभी-कभी ही कोई तारीख़
बन जाती है इतिहास
और याद रह जाती है
सालों तक
***
शिक्षा-लोक-प्रशासन में पंजाबयूनिवर्सिटी से स्नातकोत्तर उपाधि (1993), भारतीय विद्या भवन सेपत्रकारिता में डिप्लोमा।
अभिरूचि-प्रकृतिप्रेम और कला के प्रति बचपन से अनुराग । कॉलेज जमाने से साहित्य औरसंस्कृति के प्रति रूझान । पत्रकारिता जीवन का पहला लगाव था जो आजतक साथहै। खाली समय में जलरंगों, रंगमंच, संगीत और स्वाध्याय से दोस्ती ।
मीनाक्षीको सुचेता से मिले अभी एक वर्ष ही बीता होगा परन्तु इतने कम समय में भी उनमेघनिष्टता इतनी होगई थी मानो बचपन से हीएक दूसरे को जानती हो .सुचेतापहली बार मीनाक्षी से किसी काम के सिलसिले में उसके घर परमिलने आईथी. सुचेता को किसी से मालूम पड़ा था कि मीनाक्षी कई वर्षों से वहाँपरराजनैतिकऔर सामाजिक तौर पर सक्रिय है इसलिए कोई भी काम होता तो वहमीनाक्षी के पास आ जाती थी .वैसे भी सुचेता अपने पति और बच्चोंके साथ नई- नई उसजगह पर रहने आई थी इसलिए उसकी ख़ास किसी से ख़ासजान- पहचाननहीं थी . मीनाक्षी नेउसके कई छोटे- मोटे काम करवा कर दिए थे इसलिए सुचेता के मन में मीनाक्षी के लिएख़ास जगह और सम्मान था .
धीरे- धीरे उनकी दोस्ती गहरी होती गईक्योंकिएक तो दोनों हमउम्र थीऔर घर की परिस्थितियाँ एक जैसी होने से वे एक दूसरे से दिल खोल कर बातें कर लेती थी . दोनों का मायके का माहौल काफीस्वच्छंदथा , बिरादरी भी मेल खाती थी औरससुराल का माहौल अपेक्षाकृतकाफी संकुचित था . दोनों की बातचीत का मुद्दा भी अक्सरघर की परेशानियों को लेकर ही होता था .यद्यपि मीनाक्षी अपने कार्य क्षेत्र में काफी व्यस्त रहती थी और किसी सेज्यादा बात नहीं कर पाती थी परन्तु पता नहीं ऐसा क्या था किवह जब भी समय मिलताथाअपने दिल की हर बात सुचेता से कर लेती थी.
मीनाक्षी की विचारधारा को सुनकर अक्सर सुचेता कहती थी ," मीनाक्षी , तुम बहुतहीगुणीहोने के साथ साथ दूसरों की हमदर्द भी हो . तुम्हारे विचार इतनेपरिपक्व औरस्वच्छंदहै ."
मीनाक्षी उसकी बात का उत्तर देते हुए कहती थी ," क्या करूँ सुचेता मुझे अपनीउम्र के हिसाब से जीवन का गहरा अनुभव हो गया है और दुनिया को बहुत नजदीक से देखा हैमैंने . शायद यही कारण है किमै किसी पर विश्वास नहीं कर पाती और अपने दिल कीबातें खुल कर नहीं कर पाती ."
.जब भी वे मिलती तो अक्सर आम औरतों की तरह ही अपने पतियों की खामियां निकालनेलगती. मीनाक्षी सुचेता से अपने मन की बात बताते हुए कहने लगती , " कमल कभी भी मेरीभावनाओं को समझनहीं पाए. मैंने उनसे कभी भी बड़ी- बड़ी खुशियों की उम्मीद नहीं कीपर उन्होंने कभी भी कहने के वास्ते भी मुझे ऐसीकोई ख़ुशी नहीं दी जिसे मै अपनेजीवन की मीठी याद के रूप में संझो सकूँ ."
सुचेता उसकी हाँ में हाँ मिलाते हुए कहती थी ," मीनाक्षी तुम सही कहती हो यहाँभी यही हाल है मेरे पति भी ऐसे ही हैं बस एक मशीन से ज्यादा मुझेकुछ नहीं समझतेजैसे हम इंसान न हो कर एक चलता फिरता पुर्जा हों ,और जैसेभावनाएं तोकोई मायनेनहीं रखती .बस घर, बच्चों को संभालना और फिर बिस्तर पर भी हँसते- हँसते उनकी इच्छापूरी करो और अपनी तकलीफ बताने का तो कोई हक़ ही नहीं है हमे .जब देखो मेरे मायकेवालो पर कटाक्ष करते रहते हैं . कई बार तो मन इतना परेशान हो जाता है कि दिल करताहै कि सब कुछ छोड़ कर कहीं चले जाऊं पर इन मासूम बच्चों का ध्यान करके सब्र का घूँटपीना पड़ता है ."
इस तरह दोनों सहेलियांजब भी समय होता तो एक दूसरे से मन की बातें कर अपने आपको हल्का महसूस करती और फिर सेअपनी घरगृहस्थीको संभालने में व्यस्त होजाती.
मगर वह दिन बाकी दिनों जैसा नहीं था आज मीनाक्षी का जन्मदिन था और सुचेता सुबहसे ही मीनाक्षी को मिलकर उसके जन्मदिन की शुभकामनाएँदेने के लिए व्याकुल थी .पर जबसुचेता ने मीनाक्षी को विशकरने के लिएफोन किया तो उसे लगा कि मीनाक्षी पहले कीतरह उसे मिलने को व्याकुल नहीं थी .सुचेता बीते कुछ दिनों से ही महसूस कर रही थी किमीनाक्षी कुछ बदल सी गई है वह इस बात को समझ नहीं पा रही थी कि आखिर इस बदलाव कीवजह क्या है .वैसे तो सुचेता जानती थी कि घर की परेशानियों की वजह से वह उलझी रहतीहै और उसके पति से भी उसकी आये दिन किसी न किसी बात को लेकर नोंक- झोंक चलती रहतीहै .उसे मालूमथा कि उसके मन मेंअपने पति के लिए बिलकुल आत्मीयता शेष बचीनहीं है . वह तो एक समझौता किए बैठीहै .
उसकी नजरों में मीनाक्षी एक बहुत ही आदर्शसंस्कारी और पढ़ेलिखेहोने के साथ ही आधुनिक विचारों वाली समझदारमहिला थी . शहर में उसकी अच्छी खासीपहचानऔर रुतबा था .सब लोगों की नजरों में बहुत ही दृढ़विचारों वाली और अनुशासनप्रिय थी .राजनैतिकऔर सामाजिकसंगठनमें उसका वर्चस्व साफ़नजर आता था . वह हर कार्य क्रम में जहां तक हो सकता था अपने पति के साथ ही जाती थीशायद यह सामाजिक क्षेत्र में एक मजबूरी के तहत था अन्यथा लोग औरत पर कीचड़ उछालनेमें देर नहीं लगाते ..सुचेता ने उसके सूनेपन को कई बार महसूस किया था वह बाहर सेखुद को जितना ही सशक्त और मजबूत दर्शाती थी अन्दर से वह उतनी हो खोखली नजर आतीथी.
मीनाक्षी को मिलने को आतुर सुचेता जल्दी से तैयार हुई , उसने गिफ्ट पैक कियाऔर उसके घर पहुँच गई . सुचेता ने उसके घर की काल बेल बजाई , मीनाक्षी ने जैसे हीदरवाजा खोला तो वह उसे शुभकामनाएँ देने के लिए उसके गले से लग गई जैसे कि पता नहींकितनेबरसो बाद मिल रही हो . सुचेता ने उसे उपहार दिया तो मीनाक्षी ने कहा , " अरे ! इसकी क्या जरूरत थी तुम्हारी शुभकामनाएँही बहुत है मेरे लिए "
दोनों सहेलियांहमेशा की तरह शयनकक्ष में आकर आराम से बैठ गई . आज कुछ अलग हीलग रही थी मीनाक्षी . हल्केनीले रंग के सलवार सूट में उसका गोरा बदन कुछ ज्यादाही खिल रहा था . सुचेता से कहे बिना रहा नहीं गया ,
" अरे क्या बात ? आज तो मैडम कुछ ज्यादा ही निखरी नजर आ रही है , लगता है आजसुबह ही तुम्हे तुम्हारे जन्मदिन का उपहार भैया से मिल गया है "
मीनाक्षी ने उसकी बात का कोई उत्तर नहीं दिया औरना ही कोई प्रतिक्रिया व्यक्तकी .फिर दोनों इधर- उधर की बातों में व्यस्त हो गई . कुछ देर बाद मीनाक्षी नेसुचेता से पूछा , ' अच्छा ये बता तूँ क्या लेगी ? बातें तो बाद में भी होती रहेगी .चाय बनाऊंयाकाफ़ीलेना पसंद करोगी . "
" चल ऐसे कर चाय ही बना ले . मै भी आती हूँ तेरी मदद करने '" यह कहकर वह भीरसोईघर में उसके पीछे- पीछे आ गई
मीनाक्षी नेचाय का पानी रख दिया और एक प्लेट में गाजर का हलवा डालने लगी औरसुचेता को देते हुए बोली ," ये ले मुँह मीठा कर , देख तो कैसा बना है मैंने अपनेहाथों से बनाया है"
एक उचित मौका पाकर सुचेता मीनाक्षी से पूछने लगी ," एक बात कहूँ अगर बुरा नमानोगी . पता नहीं मुझे ऐसाक्योंलगता है कि कोई न कोई ख़ास बात है जो तुममुझसे छिपा रही हो . हो न हो वह तुम्हारे दिल पर बोझ बनकर तुम्हे दुखी कर रही है .क्या वह बात तुम मुझे नहीं बताओगी? "
मीनाक्षी ने अपने चेहरे की भाव भंगिमा बदलते हुए अपने अंतर्मन के दुःख कोटालने कीचेष्टाकी .
सुचेता ने मीनाक्षी के चेहरे को अच्छी तरह सेपढ़लिया था . हो न होमीनाक्षी उससे कोई न कोई बात अवश्य छिपा रही है और भीतर ही भीतर वह किसीअंतर्द्वंद्व से जूझ रही है .वह कुछ कहना तो जरूर चाहती है मगर वह शब्द उसके होंठोंपर आकर रुक जाते है .
.सुचेता माहौल को कुछ हल्का करने के लिए मजाक करते हुए पूछने लगी ," आज कमलभैया ने तोहफे में तुम्हे क्या दिया है "
इस बात का मीनाक्षी क्या उत्तर देती फिर अनमने भाव से कहने लगी ,
" सुचेता तुम अच्छी तरहसे तो इनके स्वभाव को जानती हो , तोहफा तो क्या उन्होंने तो अच्छे से मुझे विशभीनहीं किया . खैर तूँ छोड़ इन बातों को , अब तो मैंने किसी तरह की उम्मीद करना भीछोड़ दिया है . मै तो कई वर्षो से अपना जन्मदिन भी नहीं मनाती हूँ इसीलिए " .
" अरे वाह! आज तो चमत्कार हो गया ,इतना स्वादिष्ट हलवा है जैसे कि तुमने अपनीसारीमिठास इसी में घोल दी हो . आज क्या सूझी हमारी प्यारी सहेली को हलवा बनाने की . कोई ख़ास मेहमान आ रहा है क्या ?"
चाय तैयारहोते ही मीनाक्षी ने एक ट्रे में कप रखे और साथ में कुछ नमकीन भीडाल ली और फिर से दोनों शयन कक्ष में आकर बैठ गई .
सुचेता ने बातों के सिलसिले को जारी रखते हुए ,
" चल ऐसाकरते हैं , हम कल हीदोनों बाजार चलते है, तुम भी अपने मन पसंद कीकोई चीज ले लेना औरमुझे भी कुछ काम है . इस बहाने थोड़ा घूमना- फिरना भी हो जाएगा .वैसे भी इन आदमी लोगो के साथखरीददारीकरने में कहाँ मजा आता है ऐसे लगताहै कि जैसे कोई सजा काटने आएहो "
तुम अपना मन उदास मत करो . तुम्हे कौन-साकोईकमी है किसी चीज की" .
सुचेता की धीरज बंधाने वाली बातें सुनकर जैसे कि मीनाक्षी के सब्र का बाँध टूटगया हो . वह काफी भावुक होते हुए कहने लगी , " तुमठीक कहती हो सुचेता , पर प्यारसे दिया हुआ एक फूल भी बहुत होता है . जिस इंसान के लिए हम अपना सब कुछ कुर्बान करदेते हैं उससे उम्मीद तो बनी ही रहती है . उसके द्वारा कहे दो मीठे बोल भी अमृत सेकम नहीं होते ".
मीनाक्षी की शादी कमल से हुए तकरीबन १२ साल का समय बीत गया था और उसके १० वर्षका बेटा भी था .
वह आगे कहने लगी ,
" तुझे तो पताहै कि मेरा कार्य क्षेत्र कैसा है आएदिन किस तरह के लोगो सेमेरा पाला पड़ता है , और ऐसे लोगो से मै कभी भी अपने मन की बात करने की सोच भी नहींसकती . ये लोग तो दूसरों की मजबूरी का फायदा लेना जानते है बस . घर की और बाहर कीजिम्मेवारियां निभाते- निभाते मै भीतर हीभीतर बुरी तरह उकता गई हूँ . एक खालीपनहर समय कचोटता रहता है .आज तक जो भी इंसान संपर्क में आये सब अपना स्वार्थ पूराकरते हुए नजर आये . उनकी गन्दीनजरें हर समय मेरे जिस्म को घूरती हुई नजर आती है .किसी के बारे में कोई नहीं सोचता . हर कोई अपना उल्लू सीधा करना चाहता है . हर कोईबाहर की खूबसूरती को देखता है मन में क्या है कोई नहीं जानना चाहता? .दुनिया केअजीबोगरीब रंग- ढंग देख करमेरेसामान्यव्यवहार में भी काफी बदलाव आता जारहा था परये सारीबातें मै किसे बताती . बस अन्दर ही अन्दर सब बातें दबाती गई " .
सुचेता बड़े ही ध्यान से सारी बातें सुन रही थी .उसे एक ही बात रह- रह करपरेशान कर रही थी कि आखिर मीनाक्षी में इतना बदलाव किस कारण से है. आज कल वह कुछखोई - खोई सी रहती है .न ज्यादा किसी से बात करती है न ही पहले की तरह अपने सास-ससुर की शिकायतेंकरती हैं.
सुचेता से रहा नहीं गया तो पूछ ही बैठी ,
" आज कल मैडम कहाँ खोई रहती है , किसी से ज्यादा बात भी नहीं करती न ही कहींआती- जाती हो . मै ही हर बार तुम्हारे घर आती हूँ . तुम भी कभी अपने कदम मेरे घर परडाला करो . मुझेकई पहचान वाले लोगतुम्हारे बारे में पूछ चुके हैं कि क्या बात आजकल तुम्हारी सहेलीनजर ही नहीं आती ? "
मीनाक्षी क्या उत्तर देती ,
" कुछ नहीं सुचेता बस आज कल कुछ लिखने का काम शुरू किया हुआ है और जरा कुछकिताबेंपढनेमें व्यस्त थी "
सुचेता मन ही मन जानती थी कि मीनाक्षी में काफी हुनर है और उसे बाकी औरतों कीतरह इधर- उधर खड़े हो कर गप्पे मारना ,चुगलियाँ करना पसंद नहीं है .वह हमेशा हीकिसी न किसी सृजन कार्य में व्यस्त रहती थी .पिछले कुछ समय से वह सामाजिकऔरराजनैतिकक्षेत्र में भी पहले की तरह सक्रिय नहीं थी . आज कल उसकाज्यादा समय घर के और बच्चों के काम काज के इलावा तरह- तरह कीकिताबेंपढनेऔर कंप्यूटर पर ही बीतता था .उसे वैसे भी बेवजह बात करना पसंदनहीं था .वह बातों में कम औरकर्म करने में ज्यादा विश्वास करती थी और कुछ न कुछकरने में खुद को व्यस्त रखती थी.
मीनाक्षी से कोई प्रत्युत्तर न पाकर सुचेता ने फिर से पूछा ,
" तुमने ये लिखने- पढनेका नयाशौंककहाँ से पाल लिया है , उसकेअलावातुम पहले से भी कम बोलती हो .ऐसा लगता है हर समय किसी तरह केविचारों में खोई रहती हो .एक बात और कहूँ कि तुम्हारे में एक अजीब सा बदलाव आ गयाहै . पहले से भी ज्यादा खूबसूरत दिखने लगी हो . चेहरा तो देखो मानो सुर्ख हो गया है . अजीब सी रौनक और चमक चेहरे पर आ गई है . मुझे भी इसका राज बताओ , कि आखिर बातक्या है ?" .
मीनाक्षी सोच रही थी कि सुचेता तो आज उसके पीछे हाथ धो कर पड़ गई है. अब वहउससे झूठ किस तरह बोले .शायद किसी ने उसकी दुखती रग पर हाथ रख दिया हो . मन ही मनवह खुद भी बेचैन थी किसी से अपने मन की बातें करने के लिए, पर कशमकश में थी कि किसतरह अपने दिल का हाल सुनाये .क्या जो उस पर बीत रही है वह सही है या गलत? . सही-गलत के इसी उधेड़-बुनमें तो वह कई दिनों से झूल रही थी.
कहीं यह उसका पागलपन तो नहीं ,मगर दुनिया जो भी सोचे जो भी समझे उसे ये नयाअहसास बहुत ही सुखदायक लग रहा था .उस अहसास के आगे रूपया पैसा रुतबा दुनियादारी सबफीके लग रहे थे .
उसे लग रहा था मानो जिस सुख की तलाश में वह इतने वर्षों से भटक रही थी वहभगवान् शिव कीकृपासे उसकी झोली में आ गिरा हो .काफी कोशिश करके भी वहअपने मन की बात को जुबान तक नहीं ला पा रही थी . सुचेता से उसकी चुप्पी बर्दाश्तनहीं हो रही थी . वह ये तो देख रही थी कि मीनाक्षी कुछ कहना तो चाहती है मगर कहनहीं पा रही है . उसकी झिझक देख कर सुचेता से रहा नहीं गया ,
" देखो मीनाक्षी, अगर तुम नहीं बताना चाहती तो तुम्हारी मर्जी . लगता है तुममुझपर अभी भी पूरी तरह भरोसा नहीं करती हो . मै भी तो अपने दिल की हर बात सबसेपहले तुम्हे ही तो बताती हूँ . "
सुचेता की ये बात सुनकर मीनाक्षी को आखिरकार अपनी जुबान खोलनी ही पड़ी ,
" सुचेता , कहाँ से शुरू करूँ कुछ समझ नहीं आ रहा. एक इंसान है जो किसीदेवदूत से कम नहींहै . मै उस इंसान से कभी मिली नहीं हूँ . बस इंटरनेट के द्वाराबातचीत शुरू हुई थीऔर अब फोन पर भी अक्सर बात होती रहती है . मुझे नहीं पता क्यासही है क्या गलत है ? बस इतना जानती हूँ वह जो कोई भी है दिल का सबसे अच्छा इंसानहै . मैंने इतनी दुनिया देखी है पर इस तरह का देवता स्वरुप इंसान नहीं देखा . वहमेरे दर्द को .मेरी भावनाओं को समझता है .मेरे मन के खालीपन को जानता है .वह हर समयमुझे अपने परिवार में खुश देखना चाहता है . मुझे मुस्कुराता देखने के लिए उसकी तड़पको मैंने महसूस किया है . पर हमारा समाज अभी भी शादी के बाद औरत के मन में किसीपरपुरुष के ख्याल को आने को भी पाप समझता है."
यह कहते हुए मीनाक्षी ने एक गहरी सांस भरी और चुप सी हो गई . सुचेता ने उसकी बात पर हामी भरते हुएकहा , " हाँ, मीनाक्षी तुम्हारी बात सही है पर मै ये मानती हूँ यदि किसी औरत को अपनेपति से वो प्यार ,वो इज्जत नहीं मिलती तो उसे क्या करना चाहिए? . क्या उसेहर समयरो- धोकर अपना जीवन बिताना चाहिए? . तब कौन सा समाज आगे आकर किसी का दर्द बांटताहै . क्या सच्चा प्रेमकरना कोई पाप है? क्या मीरा ने भगवान्कृष्णसेसच्चा प्रेम नहीं किया था ? मेरे हिसाब से प्रेम करने का कोई निर्धारित समय नहीं होसकता . "
" सुचेता , उसका मन भगवान् की किसी मूर्तिकी तरह ही पवित्रहै . हम दोनोंकी आत्माएं एक है . वह मेरे साथ न होकर भी हर समय मेरे पास होता है . वह तो निष्कामप्रेम की प्रतिमूर्ति है .............."
यह कहते ही उसकी आँखों में से भावुकता वशआंसू बहनेलगे औरछलकते आँसुओं सेभी उसने कहना जारी रखा ,
" सच बातबताऊँ सुचेता , मैंने इतनी बातें तो आज तक कभी खुद के साथ भी नहींकी. मेरे जीवन की कोई भी बात उससे छुपी नहीं है . उसने मुझपर पता नहीं क्याजादूकर दिया है उसकी बातों से मै सम्मोहितहो जाती हूँ .बेशक मै यदि उससे जीवनमें कभी मिल भी पाऊं या नहीं पर उसका गम नहीं है .उसके मेरे जीवन में आने से मेराअधूरापन औरसूनापन भर गया है .मेरी जरा सी भी तकलीफ उससे बर्दाश्त नहीं होती .उसकी बातों में अजीब सा अपनापन, अजीब सी कशिश है जितनी किसी के साथ रहने में भी नहो . कभी- कभी तो मुझे महसूस होता है कि वह मेरे आस- पास ही है .वह कुछ ना होकर भीमेरा सब कुछ है .जीवन के इस मौड़पर वह कभी एक गुरु की तरह मुझे आध्यात्मिक ज्ञानदेता है, तो कभी एक माता- पिता की तरह घरगृहस्थीके फर्ज निभाने की सीखदेता है , तो कभी एक दोस्त की तरह मेरे दर्द को बांटता है , तो कभी भाई- बहनों कीतरह मेरे साथ हँसता- मुस्कुराता है ,और कभी एक प्रेमी की तरह मुझ पर अपना सब कुछकुर्बान करने को तैयार हो जाता है " .
" अब तूँ ही बता क्या आज कल की दुनिया में ऐसा कोईइंसान मिल सकता है? . मुझे तो लगता है वह किसी दूसरी दुनिया से आया हुआकोई मसीहा है जिसे भगवान् नेमेरे लिए भेजा है . कभी - कभी लगता है कि मै कोई सपना तो नहीं देख रही , कहीं यहमेरी मात्र कल्पना तो नहीं ? ऐसा लगता है कोई पिछले जन्म का संबंध है जो मुझेउसकी तरफ खींच रहा है . एक इच्छा जरूर है कि भगवान्जीवन में यदि मिलने काएक मौकादे तो खुद को उनके चरणों में समर्पित कर दूँ ."
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ॐ श्री गणेशाय नमः ! या कुंदेंदु तुषार हार धवला, या शुभ्रवस्त्रावृता या वीणा वरदंडमंडितकरा या श्वेतपद्मासना | याब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवै सदा वन्दिता सा मां पातु सरस्वती भगवती निश्शेषजाढ्यापहा ||
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मिट्टी से भरी
फटे -पुराने कपड़ो की
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समुद्र था भी
रेत का इतराया
पानी देखता था
चेहरों का
या फिर
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पौरूष का ही
...
मन की उन्मुक्त उड़ान को शब्दों में बाँधने का अदना सा प्रयास भर है मेरा सृजन| हाँ, कुछ रचनाएँ कृत्या,अनुभूति, सृजनगाथा, नवभारत टाईम्स, कुछ मेग्जींस और कुछ समाचार पत्रों में प्रकाशित हुई हैं. हिन्दी साहित्य, कविता, कहानी, आदि हिन्दी की समस्त विधाएँ पढने शौक है। इसीलिये मैंने आखर कलश शुरू किया जिससे मुझे और अधिक लेखकों को पढने, सीखने और उनसे संवाद कायम करने का सुअवसर मिले। दरअसल हिन्दी साहित्य की सेवा में मेरा ये एक छोटा सा प्रयास है, उम्मीद है आप सभी हिन्दी साहित्य प्रेमी मेरे इस प्रयास में मेरा मार्गदर्शन करेंगे।