ज़ख्म अपनों का दिया,मुमकिन नहीं भर पायेगा
वक्त को पहचान कर जो शख्स चलता है नहीं
वक्त ठोकर की जुबां में ही उसे समझायेगा
शहर अंधों का अगर हो तो भला बतलाइये
चाँद की बातें करो तो, कौन सुनने आयेगा
जिस्म की पुरपेच गलियों में, भटकना छोड़ दो
प्यार की मंजिल को रस्ता, यार दिल से जायेगा
बन गया इंसान वहशी, साथ में जो भीड़ के
जब कभी होगा अकेला, देखना पछतायेगा
बैठ कर आंसू बहाने में, बड़ी क्या बात है
बात होगी तब अगर तकलीफ में मुस्कायेगा
फूल हो या खार अपने वास्ते है एक सा
जो अता कर दे खुदा हमको सदा वो भायेगा
नाखुदा ही खौफ लहरों से अगर खाने लगा
कौन तूफानों से फिर कश्ती बचा कर लायेगा
दिल से निकली है ग़ज़ल "नीरज" कभी तो देखना
झूम कर सारा ज़माना दिल से इसको गायेगा
(2)
दूर होंठों से तराने हो गये
हम भी आखिर को सयाने हो गये
जो निशाने साधते थे कल तलक
आज वो खुद ही निशाने हो गये
लूट कर जीने का आया दौर है
दान के किस्से, पुराने हो गये
भूलने की इक वजह भी ना मिली
याद के लाखों, बहाने हो गये
आइये मिलकर चरागां फिर करें
आंधियां गुजरे, ज़माने हो गये
साथ बच्चों के गुज़ारे पल थे जो
बेशकीमत वो ख़जाने हो गये
देखकर "नीरज" को वो मुस्का दिये
बात इतनी थी, फसाने हो गये
(3)
कभी वो देवता या फिर, कभी शैतान होता है
बदलता रंग गिरगट से, अज़ब इंसान होता है
भले हो शान से बिकता बड़े होटल या ढाबों में
मगर जो माँ पकाती है, वही पकवान होता है
गुजारो साथ जिसके जिंदगी,वो भी हकीकत में
हमारे वास्ते अक्सर बड़ा अनजान होता है
जहाँ दो वक्त की रोटी, बड़ी मुश्किल से मिलती है
वहां ईमान का बचना ,समझ वरदान होता है
उमंगें ही उमंगें हों, अगरचे लक्ष्य पाने की
सफर जीवन का तब यारो बड़ा आसान होता है
न सोने से न चांदी से, न हीरे से न मोती से
बुजुर्गों की दुआओं से, बशर धनवान होता है
कहीं बच्चों सी किलकारी, कहीं यादों की फुलवारी
मेरी गज़लों में बस "नीरज", यही सामान होता है
(4)
जी रहे उनकी बदौलत ही सभी हम शान से
जो वतन के वास्ते यारों गए हैं जान से
जीतने के गुर सिखाते हैं वही इस दौर में
दूर तक जिनका नहीं रिश्ता रहा मैदान से
आग में नफरत की जलने से भला क्या फ़ायदा
शौक जलने का अगर है तो जलो लोबान से
दोस्ती हरगिज न करिये ऐसे लोगों से कभी
आंख से सुनते हैं जो और देखते हैं कान से
कृष्ण को तो व्यर्थ ही बदनाम सबने कर दिया
राधिका का प्रेम तो था बांसुरी की तान से
पूछिये मत चांद सूरज छुप गये जाकर कहां
डर गये हैं जुगनुओं के तुगलकी फरमान से
लोग वो 'नीरज' हमेशा ही पसंद आये हमें
भीड़ में जो अक्लमंदों की मिले नादान से
*** चित्र सौजन्य- गूगल
नीरज गोस्वामी |
अपनी जिन्दगी से संतुष्ट,संवेदनशील किंतु हर स्थिति में हास्य देखने की प्रवृत्ति.जीवन के अधिकांश वर्ष जयपुर में गुजारने के बाद फिलहाल भूषण स्टील मुंबई में कार्यरत,कल का पता नहीं।लेखन स्वान्त सुखाय के लिए.
अपनी जिन्दगी से संतुष्ट,संवेदनशील किंतु हर स्थिति में हास्य देखने की प्रवृत्ति.जीवन के अधिकांश वर्ष जयपुर में गुजारने के बाद फिलहाल भूषण स्टील मुंबई में कार्यरत,कल का पता नहीं।लेखन स्वान्त सुखाय के लिए.
रुचियाँ :
साहित्य, सिनेमा, भ्रमण तथा लेखन।
पसंदीदा पुस्तकें:
राबिया, राग दरबारी, कागजी है पेराहन, अंधेरे बंद कमरे, सारा आकाश, सूरज का सातवां घोडा, साहब बीबी और गुलाम, ग़ालिब छुटी शराब, अन्या से अनन्या, नीड़ का निर्माण फिर, मधुशाला, शरद जोशी और हरिशंकर परसाई जी की लिखी प्रत्येक रचना, डा. ज्ञान चतुर्वेदी के लेख उपन्यास विशेष रूप से "बारा मासी", कृशन चंदर और मंटो की कहानियाँ, डा. वसीम बरेलवी, बेकल उत्साही, बशीर बद्र, कृशन बिहारी नूर, दुष्यंत कुमार की सभी गज़लें, ओशो साहित्य.