सजनवा हमारे
नयन बाण मारे
हम लजात जात
वो हँसत जात
जिया मा हिलोर उठत जात
सा रा रा रा ........
होली का हुडदंग
जागे मन मा तरंग
सजनवा को रंग डारूं
नयन कटार मारूं
पानी में डुबाय डारूं
मन की सब निकार डारूं
होरी के बहाने
सजना को रंग डारूं
सा रा रा रा ................ - वन्दना गुप्ता
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ॐ श्री गणेशाय नमः ! या कुंदेंदु तुषार हार धवला, या शुभ्रवस्त्रावृता या वीणा वरदंडमंडितकरा या श्वेतपद्मासना | याब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवै सदा वन्दिता सा मां पातु सरस्वती भगवती निश्शेषजाढ्यापहा ||
हां, आज ही, जरूर आयें
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नेता,अभिनेता...
दीवाली
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*दीवाली *
एक गंठड़ी मिली
मिट्टी से भरी
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कमरे की पंछेती पर पड़ी !
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खादी का कुर्ता ,
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नए घरोंदों की नीव में- दो बिम्ब
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*नतमस्तक हूं*
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मैने नहीं चखा
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थार में प्यास
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पानी देखता था
चेहरों का
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पौरूष का ही
...
मन की उन्मुक्त उड़ान को शब्दों में बाँधने का अदना सा प्रयास भर है मेरा सृजन| हाँ, कुछ रचनाएँ कृत्या,अनुभूति, सृजनगाथा, नवभारत टाईम्स, कुछ मेग्जींस और कुछ समाचार पत्रों में प्रकाशित हुई हैं. हिन्दी साहित्य, कविता, कहानी, आदि हिन्दी की समस्त विधाएँ पढने शौक है। इसीलिये मैंने आखर कलश शुरू किया जिससे मुझे और अधिक लेखकों को पढने, सीखने और उनसे संवाद कायम करने का सुअवसर मिले। दरअसल हिन्दी साहित्य की सेवा में मेरा ये एक छोटा सा प्रयास है, उम्मीद है आप सभी हिन्दी साहित्य प्रेमी मेरे इस प्रयास में मेरा मार्गदर्शन करेंगे।