बुलाकी दास 'बावरा' के तीन गीत

आदरजोग बावरा जी के गीत प्रकाशित कर 'आखर कलश' आज गौरवान्वित महसूस कर रहा है. श्री बावरा जी अपने समय के राजस्थान ही नहीं बल्कि पूरे भारत में चर्चित गीतकार रहे हैं. जिनकी कवि सम्मेलनों में भरपूर मांग रहती थी. श्री हरीश भादाणी,  श्री शिवराज छंगानी, श्री गौरीशंकर आचार्य 'अरुण' आदि का अपने समकालीन कवि और गीतकारों में एक अनुपम समूह था. हम आभारी हैं बावरा जी के सुपुत्र श्री संजय पुरोहित के जो स्वयं एक अच्छे कहानीकार और उद्दघोषक हैं, जिन्होंने वर्तमान में साहित्य से थोडा विरक्त हुवे जनकवि श्री बावरा जी के गीत प्रदान किये. - संपादकमंडल 


लेखक परिचय
नामः बुलाकी दास बावरा
पिता का नामः स्व. श्री सांगीदास पुरोहित
जन्म स्थलः ग्राम सिहडो तहसील फलोदी जिला जोधपुर
शैक्षणिक योग्यताः एम ए, बी एड, व्यायाम विशारद, साहित्यरत्न
प्रकाशित पुस्तकें-(१). वर्जनाओं के बीच (हिन्दी काव्य) १९७९
               (२). अंगारों के हस्ताक्षर(हिन्दी काव्य) १९८४
               (३). अपना देश निराला है(देशभक्ति गीत) १९८६
               (४). अधूरे स्वप्न(हिन्दी काव्य) १९९१
               (५). पणिहारी (राजस्थानी काव्य) १९९९
               (६). अपने आस-पास (हिन्दी काव्य) २००५
उपाधियां/सम्मानः  नगर विकास न्यास बीकानेर के हिन्दी भाषा का ’सूर्यकरण पारीक पुरस्कार’’ २००२, सोशल प्रोग्रेसिव सोसायटी, बीकानेर २००२, पुष्टिकर जागृति परिषद् २००२, राव बीकाजी संस्थान, बीकानेर के ’प.विद्याधर शास्त्री पुरस्कार’’ २००३,श्री जुबली नागरी भण्डार व हिन्दी विश्व भारती द्वारा सम्मान २००४।
विशेषः राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में लगभग ४० वर्षो से निरन्तर रचनाओं का प्रकाशन। गत २२ वर्षों से शिक्षा विभाग द्वारा प्रकाशित पुस्तकों का समीक्षा कार्य। आकाशवाणी बीकानेर से विगत लगभग २५ वर्षों से कविताओं का प्रसारण।
सम्प्रतिः सेवा निवृत्त वरिष्ठ अध्यापक (अंग्रेजी)
संपर्क:  ’’बावरा निवास’’ समीप सूरसागर, धोबी धोरा, बीकानेर (राजस्थान)
दूरभाषः 0151-22031२5 मोबाईल 09413481345
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अभिनन्दन

जीवन पर्व, प्रिये ! अभिनन्दन ।
प्रेरित-ज्योति, नूतन साधन ।।

भोर हृदय उन्माद छिपा
मृग ठुमक ठुमक डग धरता
ऊषा की लाली को लेकर,
अंधकार को हरता
द्रुम-दल-पल्लव में स्पंदन।
जीवन पर्व, प्रिये! अभिनन्दन

बीते पतझर में बसन्त
पुनि, लाया पावन बेला,
महक उठा मधुवासिन का घर
कोई नहीं अकेला
खोया-खोया, नभ का क्रन्दन।
जीवन पर्व, प्रिये ! अभिनन्दन

पुनर्मिलन प्रिय ! पुलिकित अम्बर,
शत-शत रंगी चादर ताने,
उर्मिल-आभा से रंजित भू-
प्रीति-स्वरों के बैठ सिराने
टूटे-टूटे, लगते बन्धन।
जीवन पर्व, प्रिये! अभिनन्दन

जीवन पर्व, प्रिये ! अभिनन्दन।
प्रेरित ज्योति, नूतन साधन।।
*******
संस्मृति

बस प्रणय की स्मृति ही साथ लेता जा रहा हूँ।
प्रीत की कुछ पंक्तियां कवि, साधना में जान पाया,
शुष्क अधरों पर न जाने कौन मृदु-मुस्कान लाया ?
आज जीवन गीत की मैं भावना पहिचान पाया,
अर्थ विरह में वेदना के गीत गाता जा रहा हूँ
बस प्रणय की स्मृति ही साथ लेता जा रहा हूँ

ज्वारमय हो शान्त सागर,घोर छा जाए अंधेरा,
मैं लहर की तर्जनों में भी सुनूं संगीत तेरा,
रागिनी के उन स्वरों से, जल उठे मन दीप मेरा,
आश की पतवार लेकर, नाव खेता जा रहा हूँ
बस प्रणय की स्मृति ही साथ लेता जा रहा  हूँ

बस तुम्हारी याद में ही जल रहा अतृप्त यौवन,
मिलन की अभिलाष में ही क्षीण जर्जर प्राण-आनन,
चांद की मधु-चांदनी में देख तेरी मौन चितवन,
अश्रु सिंचित, जीर्ण मधुवन को सजाता जा रहा हूँ
बस प्रणय की स्मृति ही साथ लेता जा रहा हूँ

कल्पने! मैं आज तुमसे प्रीत बन्धन जोड कर,
दीप सम जलता रहूँगा, जगत विषमता छोड कर,
निर्भीक होकर चल पडा मग-कण्टकों को मोड कर,
हर दिशा में, एक तेरी ज्योति देखे जा रहा हूँ
बस प्रणय की स्मृति ही साथ लेता जा रहा हूँ 
*******
ऐसा पावन प्यार तुम्हारा 

ऐसा पावन प्यार तुम्हारा
जैसे गंगा बीच किनारा

तुम आभा हो मैं छाया हूँ,
तुमसे ही कुछ हो पाया हूँ,
जन्म जन्म की उपलब्धी तुम
तेरी शक्ति एक सहारा
ऐसा पावन प्यार तुम्हारा
जेसे गंगा बीच किनारा

कमियों का संसार लिये हूँ
पीडा का आगार लिये हूँ
सम्बल की एकाकी सीमा
तिस पर तेरी सुषमित कारा
ऐसा पावन प्यार तुम्हारा
जैसे गंगा बीच किनारा

किस बन्धन से बांधूँ तुमको ?
किस साधन से  साधूँ  तुमको ?
तेरा साया शुभ्र ज्योत्सना
जिसकी महिमा लख-लख हारा
ऐसा पावन प्यार तुम्हारा
जेसे गंगा बीच किनारा

जीवन की हमराज तुम्ही हो
जीने का अन्दाज तुम्ही हो
संभव तुमसे संवर-संवर कर
किंचित दूर करूं अंधियारा
ऐसा पावन प्यार तुम्हारा
जैसे गंगा बीच किनारा
*******

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19 Responses to बुलाकी दास 'बावरा' के तीन गीत

  1. बावरा जी को पढने का अवसर देकर आपने बड़ा काम किया... तीनो गीत बहुत सुंदर हैं... जैसे हिंदी साहित्य में गीत की पारम्पर ख़त्म हो रही है.. उनके गीत हमे आशा बांधती है... खास तौर पर ये पंकित्य तो जयशंकर प्रसाद जी के गीतों जैसी लग रही हैं ..
    पुनर्मिलन प्रिय ! पुलिकित अम्बर,
    शत-शत रंगी चादर ताने,
    उर्मिल-आभा से रंजित भू-
    प्रीति-स्वरों के बैठ सिराने
    टूटे-टूटे, लगते बन्धन।
    जीवन पर्व, प्रिये! अभिनन्दन....
    बाकी दोनों गीत भी अच्छे हैं .. दूसरा गीत तो महादेवी के गीत जैसी लग रही हैं... शब्द काफी सरल और सहज हैं..
    "बस तुम्हारी याद में ही जल रहा अतृप्त यौवन,
    मिलन की अभिलाष में ही क्षीण जर्जर प्राण-आनन,
    चांद की मधु-चांदनी में देख तेरी मौन चितवन,
    अश्रु सिंचित, जीर्ण मधुवन को सजाता जा रहा हूँ
    बस प्रणय की स्मृति ही साथ लेता जा रहा हूँ"

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  2. बहुत ही सुन्दर रचनाये…………पढवाने के लिये आभारी हूँ।

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  3. Dear Editor
    i am very thankful for your this poetry post. its pure feelingful about true love so i want to say thanks to you after read this poems of Great poet Mr. Bulaki das Purohitji (Bawara ji)

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  4. बहुत ही सुन्दर रचनाये तीनो गीत बहुत सुंदर हैं

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  5. गीत तो आज भी लोकप्रिय हैं और गीतकार भी, स्‍वरूप परिवर्तन अवश्‍य हो गया है। प्रस्‍तुत गीत मधुर हैं परिपक्‍व हैं, आज की अंग्रेजी माध्‍यम से पढ़ी पीढ़ी के लिये पारंपरिक हिन्‍दी काव्‍य माधुर्य अवश्‍य नयी बात है।

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  6. behad khoobsoorat geet h....praanjal bhasha aur pavitr prem ke bhaavon ka anootha sangam..abhaar..

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  7. आदरणीय बुलाकी दास जी बावरा के शानदार 3 गीत प्रस्तुत कर आपने आखर कलश के पाठकोँ को धन्य कर दिया।बावरा जी देश भर मेँ अपने गीतोँ के माध्यम से धाक जमा चुके हैँ लेकिन अभी भी चुके नहीँ हैँ।
    मँच और साहित्यिक धरातल पर उनकी यकसां छाप है।उनका पणिहारी गीत लोकगीत की तर्ज पर लोगोँ की ज़ुबान चढ़ गया था।
    इस अनुपम प्रस्तुति के लिए संजय जी,नरेन्द्र जी व सुनील जी को साधुवाद!

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  8. आदरजोग बावरा जी नै पगेलागणा !
    आपरै गीतां मेँ आज भी बा'ई ठसक अर ठरको मौज़ूद है जको 8-9 वेँ सईकै मेँ होया करतो।बधायजै!

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  9. सम्माननीय और बहुमुखी प्रतिभा के धनी बावरा साहब को सादर प्रणाम और चरण स्पर्श. आप इतने गुणी हैं कि आपकी शान में जो कुछ भी कहाँ जाये, वो कम हैं...

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  10. janab baawara sahbapne or hamare dor ke eske geet kaar hn jinki mozudgi kisi bhi kavisammelan ke qamiyabi ki dalil h aap ke geet zindagi ke tamam pahaluno ka aaina dar h ye hamari khush nasibi h ki ham baawra sahab ke dor ke ham rah hn

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  11. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

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  12. शत शत नमन है , परम आदरणीय बावरा जी को … और उनकी चिर नवयौवना लेखनी को !
    एक शून्य उभरने लगा है , ऐसी जीवंत और शालीन प्रेमाभिव्यक्तिपरक शृंगारिक काव्य रचनाओं का सृजन करने वाले रचनाकारों का ।
    क्या ख़ूब लिखते हैं …
    बस तुम्हारी याद में ही जल रहा अतृप्त यौवन,
    मिलन की अभिलाष में ही क्षीण जर्जर प्राण-आनन,
    चांद की मधु-चांदनी में देख तेरी मौन चितवन,
    अश्रु सिंचित, जीर्ण मधुवन को सजाता जा रहा हूँ
    बस प्रणय की स्मृति ही साथ लेता जा रहा हूँ

    …कैसा बेजोड़ वाक्य -विन्यास है … अद्भुत !
    पुनर्मिलन प्रिय ! पुलिकित अम्बर,
    शत-शत रंगी चादर ताने,
    उर्मिल-आभा से रंजित भू-
    प्रीति-स्वरों के बैठ सिराने
    टूटे-टूटे, लगते बन्धन।
    जीवन पर्व, प्रिये! अभिनन्दन

    अतुलनीय ! अद्वितीय !
    तुम आभा हो मैं छाया हूँ,
    तुमसे ही कुछ हो पाया हूँ,
    जन्म जन्म की उपलब्धी तुम
    तेरी शक्ति एक सहारा
    ऐसा पावन प्यार तुम्हारा
    जेसे गंगा बीच किनारा

    तीनों गीत बहुत प्रेरणा दायी हैं , किसी भी छंदसाधक के लिए ।
    … आपके स्वास्थ्य के लिए परमपिता परमात्मा से प्रार्थना है !

    - राजेन्द्र स्वर्णकार
    शस्वरं

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  13. Excellent aakhar kalash editor group
    Bulakidass G ki kavita ko sunkar aur dekhker aacha lega hai.
    unki kavita ka jo jalwa hai woh sahi mayne me ek urjapun aur strong nazat aati hai.
    Thanks.
    Manmohan Vyas

    ReplyDelete
  14. uttam ,..Bahut hi umda rachanae .

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  15. भाई मनमोहनजी ने लिखा कि बावराजी की कविता सुन कर और देख कर अच्छा लगा …
    मैं सुनने के लिए लिंक या प्लेयर नहीं ढूंढ़ पाया … कृपया मदद करें …ताकि मैं भी आदरणीय बावराजी को सुन सकूं ।

    - राजेन्द्र स्वर्णकार
    शस्वरं

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  16. GEETON KE MEETHE-MEETHE SHABD MUN KO CHHOO GYE
    HAI.BADHAAEE AUR SHUBH KAMNA.

    ReplyDelete
  17. प्रिय संपादक जी, श्री बावरा जी की अतुलनीय कविताएं पढवाने के लिए आपका धन्‍यवाद और हार्दिक आभार, इन कविताओं को पढकर ऐसा लगता है कि जीवन की कई नई सच्‍चाइयों से रूबरू होते हैं, आपसे अनुरोध है कि बावरा जी की कुछ और रचनाओं को पढने का अवसर दें ताकि उत्‍क्रष्‍ट साहित्‍य का और रसास्‍वादन कर सकें. धन्‍यवाद

    ReplyDelete
  18. Hamara Bhai saab Sh. Rajendra G ki baat se shamat nahi hu. Ma tu aakhar kalash ka ek chotasa fain hu. mujhe jo aacha lega maine likh diya hai. Agar apko kavita ko sunana hai tu man ke taaro ko chadkar dekhe to aapko link ya player ki koi jaurat nahi hogi.
    Aap to mahan followers me aata hai. ma tu kuch bhi nahi aapka samane. Agar aap mere vichora se shamat nahi hai tu esliy sorry.

    ReplyDelete

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