आपकी साहित्यिक उपलब्धियाँ एवम सम्मान -: युग प्रतिनिधि सम्मान,सारस्वत सम्मान,अग्निवेश सम्मान,साहित्य शिरोमणि सम्मान, नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति (उपक्रम), दिल्ली (राजभाषा विभाग. गॄह मंत्रालय) द्वारा सर्वश्रेष्ठ काव्य रचना के लिये पुरस्कॄत. (2005)कायस्थ कुल भूषण सम्मान (अखिल भारतीय कायस्थ महा सभा),निर्मला देवी साहित्य स्मॄति पुरस्कार, इशरत किरत पुरी एवार्ड एवं अन्य अनेक.
सम्प्रति -: विकास अधिकारी (नेशनल इंश्योरेन्स कम्पनी-ग़ाज़िया बाद) सम्पर्क सूत्र -: `ग़ज़ल' 224,सैक्टर -1,चिरंजीव विहार.ग़ाज़िया बाद - २०१००२
ऐसे ही विलक्षण प्रतिभा के धनि श्री गोविन्द गुलशन जी की कुछ ग़ज़लें आप सबकी नज़र है...........
ग़ज़ल १.
दिल में ये एक डर है बराबर बना हुआ
मिट्टी में मिल न जाए कहीं घर बना हुआ
इक ’लफ़्ज़’ बेवफ़ा कहा उसने फिर उसके बाद
मैं उसको देखता रहा पत्थर बना हुआ
जब आँसुओं में बह गए यादों के सब नक़ूश
आँखों में कैसे रह गया मंज़र बना हुआ
लहरो ! बताओ तुमने उसे क्यूँ मिटा दिया
इक ख़्वाब का महल था यहाँ पर बना हुआ
वो क्या था और तुमने उसे क्या बना दिया
इतरा रहा है क़तरा समंदर बना हुआ
ग़ज़ल २.
इधर उधर की न बातों में तुम घुमाओ मुझे
मैं सब समझता हूँ पागल नहीं बनाओ मुझे
बिछुड़ के जीने का बस एक रास्ता ये है
मैं भूल जाऊँ तुम्हें तुम भी भूल जाओ मुझे
तुम्हारे पास वो सिक्के नहीं जो बिक जाऊँ
मेरे ख़ुलूस की क़ीमत नहीं बताओ मुझे
भटक रहा हूँ अँधेरों की भीड़ में कब से
दिया दिखाओ कि अब रौशनी में लाओ मुझे
चराग़ हूँ मैं , ज़रूरत है रौशनी की तुम्हें
बुझा दिया था तुम्ही ने तुम्ही जलाओ मुझे
ग़ज़ल ३.
रौशनी की महक जिन चराग़ों में है
उन चराग़ों की लौ मेरी आँखों में है
है दिलों में मुहब्बत जवाँ आज भी
पहले जैसी ही ख़ुशबू गुलाबों में है
प्यार बाँटोगे तो प्यार मिल जाएगा
ये ख़ज़ाना दिलों की दराज़ों में है
आने वाला है तूफ़ान फिर से कोई
ख़लबली-सी बहुत आशियानों में है
तय हुआ है न होगा कभी दोस्तो
फ़ासला वो जो दोनों किनारों में है
ठेस लगती है तो टूट जाते हैं दिल
जान ही कितनी शीशे के प्यालों में है
उसकी क़ीमत समन्दर से कुछ कम नहीं
कोई क़तरा अगर रेगज़ारों में है
ग़ज़ल ४.
लफ़्ज़ अगर कुछ ज़हरीले हो जाते हैं
होंठ न जाने क्यूँ नीले हो जाते हैं
उनके बयाँ जब बर्छीले हो जाते हैं
बस्ती में ख़ंजर गीले हो जाते हैं
चलती हैं जब सर्द हवाएँ यादों की
ज़ख़्म हमारे दर्दीले हो जाते हैं
जेब में जब गर्मी का मौसम आता है
हाथ हमारे , ख़र्चीले हो जाते हैं
आँसू की दरकार अगर हो जाए तो
याद के बादल रेतीले हो जाते हैं
रंग - बिरंगे सपने दिल में रखना
आँखों में सपने गीले हो जाते हैं
फ़स्ले-ख़िज़ाँ जब आती है तो ऐ गुलशन
फूल जुदा, पत्ते पीले हो जाते हैं
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