Archive for 5/1/13 - 6/1/13

बस्ती का पेड़ - नन्द भारद्वाज

"पहले पहल सूखी थी, /कुछ पीली मुरझाई पत्तियां / फिर सूख गई पूरी की पूरी डाल / और तब से बदस्‍तूर जारी है / तने के भीतर से आती हुई /धमनियों का धीरे-धीरे सूखना" नन्द भारद्वाज की कविता- "बस्ती का पेड़"













बाहर से आने वाले आघात का
उलटकर कोई उत्तर नहीं दे पाता
पेड़
वह चलकर जा नहीं जा सकता
किसी निरापद जगह की आड़ में -

जड़ें डूबी रहती हैं
पृथ्वी की अतल गहराई में
वहीं से पोखता रहता है
वह हर एक टहनी और पत्ती में
जीवन संचार

ऐसा घेर-घुमेर छायादार पेड़
हजारों-हजार पंछियों का
रैन-बसेरा
पीढ़ियों की पावन कमाई
वह पानीदार पेड़
अब सूख रहा है भीतर ही भीतर
जमीन की कोख में,

कुदरत के कई रूप देखे हैं
इस हरियल गाछ ने
कई कई देखे हैं
छप्पन-छिनवे के नरभक्षी अकाल -
बदहवास बस्ती ने
सूंत ली सिरों तक
कच्ची सुकोमल पत्तियां
खुरच ली तने की सूखी छाल ,
उन बुरे दिनों के खिलाफ
पूरी बस्ती के साथ जूझता रहा पेड़
चौपाए आखिरी दम तक आते रहे
इसी की सिमटती छांह में !

पास की बरसाती नदी में
अक्सर आ जाया करता था उफान
पानी फैल जाया करता था
समूचे ताल में
लोग अपना जीव लेकर दौड़ आते
इसी के आसरे
और वह समेट लेता था
अपने आगोश में
बस्ती की सारी पीड़ाएं,


समय बदल गया
बदल गये बस्ती के कारोबार
नदी के मार्ग अब नहीं बहता जल
बारहों-मास,
बहुत संकड़ी और बदबूदार हो उठी हैं
कस्बे की गलियां
पुरानी बस्ती को धकेलकर
परे कर दिया गया है नदी के पाट में
और एक नया शहर निकल आया है
इस पुश्‍तैनी पेड़ के अतराफ,


ऊंचे तिमंजिलों के बीच
अब चारों तरफ से घिर गया है पेड़
जहां तहां से काट ली गई हैं
उस फैलती आकांक्षा के
बीच आती शाखाएं

अखरने-सा लगा है
कुछ भद्र-जनों को पेड़ का अस्तित्व
उनकी नजर में
वे अच्छे लगते हैं सिर्फ उद्यान में !

जब शहर पसरता है
उजड़ जाती हैं पुरानी बस्तियां
सिर्फ पेड़ जूझते रहते हैं
अपनी ज़मीन के लिए
कुछ अरसे तक .....

पेड़ आखिर पेड़ है
कुदरत का फलता-फूलता उपहार
वह झेल नहीं पाता
अपनों का ऐसा भीतरघात
रोक नहीं पाता
अपनी ओर आते हुए
जहरीले रसायन -

नमी का उतरते जाना
जमीन की संधियों में मौन
जड़ों का एक-एक कर
काट लिया जाना -
वह रोक नहीं पाता ......

पहले-पहल सूखी थी
कुछ पीली मुरझाई पत्तियां
फिर सूख गई पूरी की पूरी डाल
और तब से बदस्तूर जारी है
तने के भीतर से आती हुई
धमनियों का धीरे-धीरे सूखना -

इसी सूखने के खिलाफ
निरन्तर लड़ रहा है पेड़ -

क्या नये शहर के लोग
सिर्फ देखते भर रहेंगे
पेड़ का सूखना ? !

 ***
(चित्रछवि साभार गूगल)

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ग़ज़ल जैसी तेरी सूरत ग़ज़ल जैसी तेरी सीरत- अशोक मिज़ाज 'बद्र'

दीर्घ विराम के पश्चात् आखर कलश एक बार फिर आपसे मुख़ातिब है जनाब अशोक मिज़ाज 'बद्र' साहब की दो बेहतरीन ग़ज़लों के साथ। उम्मीद है आपको इनकी शायरी का अंदाज़ पसंद आएगा।।
(१)
ज़रा सा नाम पा जाएँ उसे, मंज़िल समझते हैं
बड़े नादान हैं मझधार को साहिल समझते हैं


अगर वो होश में रहते तो दरिया पार कर लेते,
ज़रा सी बात है लकिन कहाँ गाफिल समझते हैं।

अकेलापन कभी हमको अकेला कर नहीं सकता,
अकेलेपन को हम महबूब की महफ़िल समझते हैं

बड़े लोगों के चहरों पर शिकन भी आ नहीँ सकती,
कोई कालिख भी मल दे तो उसे वो तिल समझते हैं


अजब बस्ती है इस बस्ती में सब रंगदार हैं शायद,
शरीफों को तो वो पैदाइशी बुझदिल समझते हैं

मिज़ाज, अपना फ़क़ीराना है फिर भी शुक्र है यारो.
हमें भी लोग अपनी भीड़ में शामिल समझते हैं
 
(२)
बहुत से मोड़ हों जिसमें कहानी अच्छी लगती है,
निशानी छोड़ जाए वो जवानी अच्छी लगती है।

सुनाऊं कौन से किरदार बच्चों को कि अब उनको,
न राजा अच्छा लगता है न रानी अच्छी लगती है।


खुदा से या सनम से या किसी पत्थर की मूरत से,
मुहब्बत हो अगर तो ज़िंदगानी अच्छी लगती है।


पुरानी ये कहावत है सुनो सब की करो मन की,
खुद अपने दिल पे खुद की हुक्मरानी अच्छी लगती है

ग़ज़ल जैसी तेरी सूरत ग़ज़ल जैसी तेरी सीरत,
ग़ज़ल जैसी तेरी सादा बयानी अच्छी लगती है।


गुज़ारो साठ सत्तर साल मैदाने अदब में फिर,
क़लम के ज़ोर से निकली कहानी अच्छी लगती है

मैं शायर हूँ ग़ज़ल कहने का मुझको शौक़ है लेकिन,
ग़ज़ल मेरी मुझे तेरी ज़ुबानी अच्छी लगती है।
***
मिज़ाजनामा
--------------
नाम- अशोक "मिज़ाज"
मूल नाम- अशोक सिंह ठाकुर
जन्म तिथि- २३ जनवरी १९५७.
जन्म स्थान- सागर, मध्य प्रदेश.
शिक्षा- एम. एससी. रसायन शास्त्र.
पेशा- स्टेट बॅंक ऑफ इंडिया मे शाखा प्रबंधक.
कृतियाँ -
* समन्दरो का मिज़ाज ( १९९५ उर्दू लिपि)
* समन्दरो का मिज़ाज ( हिन्दी लिपि)
* सिग्नेचर ( हिन्दी लिपि)
* ग़ज़लनामा (उर्दू लिपि)
* आवाज़ (वाणी प्रकाशन, हिन्दी लिपि)
* एक ग़ज़ल संग्रह शीघ्र ही प्रकाशानाधीनसाहित्यिक योगदान-
* 'ग़ज़ल २०००' वाणी प्रकाशन, सह संपादन.
* ग़ज़ल यूनिवर्स में सह संपादन.
 पुरूस्कार -
* म.प्र. उर्दू अकादमी द्वारा शिफा ग्वालियरी पुरूस्कार
* अखिल भारतीय अंबिका प्रसाद दिव्य स्मृति पुरूस्कार
* हाजी गुलाम अली सम्मान
* माँ प्रभा देवी स्मृति सम्मान
* श्रीमती लीला देवी स्मृति सम्मान
* पं. ज्वाला प्रसाद ज्योतिषी सदभावना सम्मान
* गोहरे अदब सम्मान
* श्री तन्मय बुखरिया स्मृति सम्मान
* दाजी सम्मान
एवं कई संस्थाओं द्वारा सम्मान पत्र व प्रशस्ती पत्र.
 अन्य उपलब्धियाँ-
* प्रसार भारती द्वारा आकाशवाणी के सभी केंद्रों के लिए 'मान्य कवि' के रूप मे अनुबंधित.
* ई. टी.वी. उर्दू एवं डी. डी. उर्दू पर इंटरव्यू का प्रसारण.
* भोपाल दूरदर्शन, दिल्ली दूरदर्शन, लखनऊ दूरदर्शन से प्रसारण.
* अंतरराष्ट्रीय व अखिल भारतीय मुशायरों मे शिरकत.
 मुशायरे-
* पानीपत, चंडीगढ़, पटियाला, अंबाला में चार इंडो-पाक मुशायरे.
* दिल्ली, गाज़ियाबाद, बुलंदशहर, राँची, रौरकेला, कटक, हैद्राबाद, बुरहानपुर, कानपुर, अलीगढ़, रूरकी,
* झाँसी, ललितपुर, जबलपुर, कटनी, विदिशा, भोपाल सहित अनेक छोटे बड़े नगरों में अखिल भारतीय मुशायरों मे शिरकत.
 चर्चित आलेख-
* 'ग़ज़ल की बहरें और संस्कृत के छन्द'.

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