कुछ ग़ज़लें- श्रद्धा जैन

संक्षित परिचय:

नाम- श्रद्धा जैन 
जन्म- ८ नवम्बर १९७७ को विदिशा मध्यप्रदेश
शिक्षा- एम. एस. सी. केमेस्ट्री, एम ए हिंदी, बी ऐड

श्रद्धा जैन पिछले ११ सालों से सिंगापुर में निवासित, और फिलहाल ग्लोबल इंडियन इंटर नेशनल स्कूल में हिंदी भाषा की अध्यापिका के रूप में कार्यरत हैं. उनकी कुछ ग़ज़लें आपकी नज़र हैं.....
1.
कहाँ बनना, संवरना चाहती हूँ
मैं ख़ुशबू हूँ, बिखरना चाहती हूँ

अब उसके क़ातिलाना ग़म से कह दो
मैं अपनी मौत मरना चाहती हूँ

हर इक ख्वाहिश, ख़ुशी और मुस्कराहट
किसी के नाम करना चाहती हूँ

गुहर मिल जाए शायद, सोच कर, फिर
समुन्दर में उतरना चाहती हूँ

ज़माना चाहता है और ही कुछ
मैं अपने दिल की करना चाहती हूँ

है आवारा ख़यालों के परिंदे
मैं इनके पर कतरना चाहती हूँ

कोई बतलाए क्या है मेरी मंज़िल
थकी हूँ, अब ठहरना चाहती हूँ


2.
शीशे के बदन को मिली पत्थर की निशानी
टूटे हुए दिल की है बस इतनी-सी कहानी

फिर कोई कबीले से कहीं दूर चला है
बग़िया में किसी फूल पे आई है जवानी

कुछ आँखें किसी दूर के मंज़र पर टिकी हैं
कुछ आँखों से हटती नहीं तस्वीर पुरानी

औरत के इसी रूप से डर जाते हैं अब लोग
आँचल भी नहीं सर पे नहीं आँख में पानी

तालाब है, नदियाँ हैं, समुन्दर है पर अफ़सोस
हमको तो मयस्सर नहीं इक बूंद भी पानी

छप्पर हो, महल हो, लगे इक जैसे ही दोनों
घर के जो समझ आ गए ‘श्रद्धा’ को मआनी


3.
हश्र औरों का समझ कर जो संभल जाते हैं
वो ही तूफ़ानों से बचते हैं, निकल जाते हैं

मैं जो हँसती हूँ तो ये सोचने लगते हैं सभी
ख़्वाब किस-किस के हक़ीक़त में बदल जाते हैं

ज़िंदगी, मौत, जुदाई और मिलन एक जगह
एक ही रात में कितने दिए जल जाते हैं

आदत अब हो गई तन्हाई में जीने की मुझे
उनके आने की ख़बर से भी दहल जाते हैं

हमको ज़ख़्मों की नुमाइश का कोई शौक नहीं
कैसे ग़ज़लों में मगर आप ही ढल जाते हैं
**

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24 Responses to कुछ ग़ज़लें- श्रद्धा जैन

  1. भाई ये ग़ज़ल के उपर क्‍या विज्ञापन चढ़े हुए हैं। webweaver.nu ग़ज़ल पर छाया हुआ है।

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  2. औरत के इसी रूप से डर जाते हैं अब लोग
    आँचल भी नहीं सर पे नहीं आँख में पानी
    दुआ कीजिये कि इससे भयावह तस्वीर नहीं हो
    बहुत अच्छी ग़ज़लें. बधाई..

    ReplyDelete
  3. यूँ तो मुकम्मल शायरी लाजवाब है मगर आपकी तीसरी ग़ज़ल मुझे कुछ ज्यादा ही नायाब लगी. इस पेशकश के लिए आखर कलश को बहुत बहुत मुबारकबाद.

    ReplyDelete
  4. shraddha ji , saari gazale padh li hai ... ab ye soch raha hoon ki kis ki taareef jyaada ki jaaye aur kis ki kam ... mujhe to saari hi gazale pasand aayi...

    हर इक ख्वाहिश, ख़ुशी और मुस्कराहट
    किसी के नाम करना चाहती हूँ

    कुछ आँखें किसी दूर के मंज़र पर टिकी हैं
    कुछ आँखों से हटती नहीं तस्वीर पुरानी

    ज़िंदगी, मौत, जुदाई और मिलन एक जगह
    एक ही रात में कितने दिए जल जाते हैं

    आदत अब हो गई तन्हाई में जीने की मुझे
    उनके आने की ख़बर से भी दहल जाते हैं

    ye saare sher , bahut bahut bahut laazawaab hai ...

    badhayi kabool kare..

    vijay

    ReplyDelete
  5. तेरे आश'आर में देखा है 'श्रद्धा'
    तू रूठे को मनाना चाहती है।
    तीनों ग़ज़लें अच्‍छी हैं।

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  6. श्रद्धा जी का कलाम बहुत उम्दा होता है...
    यहां पेश की गई तीनों ही ग़ज़लें दिल को छूने वाली हैं.

    ReplyDelete
  7. अब उसके क़ातिलाना ग़म से कह दो
    मैं अपनी मौत मरना चाहती हूँ

    kyaa baat hai?

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  8. नरेंद्र व्यास, आप बहुत बड़ा काम कर रहे हैं, मेरे पास प्रशंसा के लिए शब्द नहीं हैं.
    श्रद्धा, ब्लॉग जगत की एक स्थापित-प्रतिष्ठित गजलकार हैं. उनकी गजलों पर कुछ कहना, सूरज को चराग दिखाना होगा.
    अलग से किसी शेर को रेखांकित करना बहुत कठिन है.
    नरेंद्र जी, आपके चयन की दाद देता हूँ.नरेंद्र व्यास, आप बहुत बड़ा काम कर रहे हैं, मेरे पास प्रशंसा के लिए शब्द नहीं हैं.
    श्रद्धा, ब्लॉग जगत की एक स्थापित-प्रतिष्ठित गजलकार हैं. उनकी गजलों पर कुछ कहना, सूरज को चराग दिखाना होगा.
    अलग से किसी शेर को रेखांकित करना बहुत कठिन है.
    नरेंद्र जी, आपके चयन की दाद देता हूँ.नरेंद्र व्यास, आप बहुत बड़ा काम कर रहे हैं, मेरे पास प्रशंसा के लिए शब्द नहीं हैं.
    श्रद्धा, ब्लॉग जगत की एक स्थापित-प्रतिष्ठित गजलकार हैं. उनकी गजलों पर कुछ कहना, सूरज को चराग दिखाना होगा.
    अलग से किसी शेर को रेखांकित करना बहुत कठिन है.
    नरेंद्र जी, आपके चयन की दाद देता हूँ.नरेंद्र व्यास, आप बहुत बड़ा काम कर रहे हैं, मेरे पास प्रशंसा के लिए शब्द नहीं हैं.
    श्रद्धा, ब्लॉग जगत की एक स्थापित-प्रतिष्ठित गजलकार हैं. उनकी गजलों पर कुछ कहना, सूरज को चराग दिखाना होगा.
    अलग से किसी शेर को रेखांकित करना बहुत कठिन है.
    नरेंद्र जी, आपके चयन की दाद देता हूँ.

    ReplyDelete
  9. खूबसूरत ग़ज़लें... वाह वाह बहुत खूब !

    ReplyDelete
  10. मैं जो हँसती हूँ तो ये सोचने लगते हैं सभी
    ख़्वाब किस-किस के हक़ीक़त में बदल जाते हैं
    *
    श्रद्धा जी ग़ज़लों का हर शेर एक नायाब मोती है। पर इस शेर में सारी कायनात का दर्शन समा गया है।

    ReplyDelete
  11. बहुत ही बेहतरीन गजले हैं... तीनो ही गजलों के (खासतौर पर पहली और तीसरी ग़ज़ल) के हर इक शेअर में जान है... बहुत खूब!

    ReplyDelete
  12. Shraddha Ji,

    Bahut Hi behtareen Ghazalen hai...waah maza aa gaya....

    कहाँ बनना, संवरना चाहती हूँ
    मैं ख़ुशबू हूँ, बिखरना चाहती हूँ

    अब उसके क़ातिलाना ग़म से कह दो
    मैं अपनी मौत मरना चाहती हूँ

    हर इक ख्वाहिश, ख़ुशी और मुस्कराहट
    किसी के नाम करना चाहती हूँ

    ज़माना चाहता है और ही कुछ
    मैं अपने दिल की करना चाहती हूँ
    Badhaai
    Surinder Ratti
    Mumbai

    ReplyDelete
  13. बेहतरीन ग़ज़लें। बधाई।

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  14. तालाब है, नदियाँ हैं, समुन्दर है पर अफ़सोस
    हमको तो मयस्सर नहीं इक बूंद भी पानी

    बहुत सुन्दर मनभावन गजल हैं .... आभार श्रद्धा जी ...

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  15. श्रद्धा जी की नायाब गज़लें पढवाने के लिए आखर कलश का आभार

    ReplyDelete
  16. गुहर मिल जाए शायद, सोच कर, फिर
    समुन्दर में उतरना चाहती हूँ

    छप्पर हो, महल हो, लगे इक जैसे ही दोनों
    घर के जो समझ आ गए ‘श्रद्धा’ को मआनी

    हश्र औरों का समझ कर जो संभल जाते है
    वो ही तूफ़ानों से बचते हैं, निकल जाते हैं

    बहुत ख़ूब!
    ख़ूबसूरत ग़ज़ल !

    ReplyDelete
  17. श्रद्धा जी को ब्लॉग जगत में कौन नहीं जानता...सीधे सरल लफ़्ज़ों में वो ढेर सी बातें अपनी गज़लों में कह जाती हैं, उनके अशआरों को दिल में उतरने का सीधा रास्ता मालूम है वो बिना इधर उधर भटके सीधे अपनी मंजिल पर पहुँचते हैं...इसीलिए उन्हें पढ़ना एक सुखद अनुभव होता है...
    उनकी गज़लों का चयन बेहतरीन किया है आपने नरेन्द्र जी आपके इस नेक काम की जितनी तारीफ़ की जाय कम है.

    नीरज

    ReplyDelete
  18. बहुत खूब !!! उम्दा ||
    तीनो गज़ल , एक से बढकर एक.....नायाब हैं ||
    तारीफ़ जो भी की जाये , कम हैं ||

    ReplyDelete
  19. सबसे पहले तो मैं नरेन्द्र जी और आखर कलश की संपादक टीम की आभारी हूँ जिन्होंने मुझे यहाँ स्थान दिया ..

    विजय वर्मा जी हालात तो बदतर हो हीरहे हैं लेकिन दुआ तो की ही जा सकती है .. आपने पढ़ा पसंद किया आभारी हूँ

    अश्विनी राय जी आपने ग़ज़ल पढ़ी और सराहना की .. तीसरी ग़ज़ल पसंद करने के लिए शुक्रिया

    विजय जी आपने ग़ज़ल के कुछ शेर खास पसंद किये शुक्रिया..

    तिलक राज जी शुक्रिया आपका शेर भी खूब रहा :-)

    शाहिद साहब हौसला अफजाई के लिए शुक्रिया

    अनामिका जी .. ग़ज़ल पढने और सराहने के लिए आभार

    ReplyDelete
  20. प्रदीप कान्त जी शुक्रिया शेर पसंद करने के लिए

    सर्वत जी ये आपका बड़प्पन है जो आप हम जैसे नए लिखने वालों को हौसला देते हैं शुक्रिया

    पद्म जी शुक्रिया

    राजेश जी शेर की रूह तक जाकर उसे सराहने के लिए शुक्रिया

    शाह नवाज़ जी शुक्रिया आपने गज़लें पढ़ी और पसंद की तो बहुत अच्छा लगा ..

    सुरिंदर जी अपनी उपस्थिति से हौसला बढ़ाने के लिए धन्यवाद

    शरद जी शुक्रिया


    महेंद्र भैया आपको बहुत दिन के बाद अपनी ग़ज़ल पर देख कर बहुत ख़ुशी हुई .. शुक्रिया


    राकेश जी बहुत बहुत धन्यवाद

    इस्मत जी ग़ज़लों को स्नेह देने के लिए शुक्रिया

    नीरज जी ग़ज़ल पर आपकी दस्तक की आदत हो गयी है बिना आपके कमी सी लगती है ..इसी तरह अपना स्नेह बनाये रखे

    अशोक समय निकल कर पढने और पसंद करने के लिए आभार

    ReplyDelete
  21. bahut hi khoobsurat gazlen...jinhe bar bar padhne ko jee chahe..badhai shradhha ji...

    ReplyDelete
  22. shrdda ji aap ki gazalon ko mai bahut pada hai kavita kosh per .aap gazal bahut lajabab likhati hai.aap ke mail per bahu bar comment e-email kiya lakin mail nahi gayaaap ka email shrddha8@gmail.com hi to hai.aap ki gazalon ko pada kar Galib ka ek sher yad yata hai ---aaina kyon na doon ki tamasa kahen use ,aisa kahan se layun ki tujhsa kahen jise.mera email-drdigvijaisingh@gmail.com. hai aap isper mail jaroor kijiyega.cell no.91-9415369918 hai

    ReplyDelete

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