२००२ में अमेरिका जाने से पूर्व आप भारत में एक रेडियो कलाकार के रूप में कई नाटकों और विचार-गोष्ठियों में भी सम्मिलित रहीं हैं। आपकी रचनायें भी समय-समय पर विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुईं। अमेरिका में आप नार्थ कैरोलिना विश्वविद्यालय में हिंदी अध्यापन से जुड़ गईं।
अब तक आपके दो काव्य-संकलन “पहली किरण” और “मानस-मन्थन” प्रकाशित हो चुके हैं और एक अन्य प्रकाशनाधीन है। पिछले पाँच वर्षों से आप विभिन्न जाल-पत्रिकाओं से भी प्रकाशित हो रहीं हैं। उन्होंने अमेरिका के नॉर्थ कैरोलिना यूनिवर्सिटी एट चैपल हिल में हिंदी भाषा का अध्यापन कार्य किया है। न्यूयॉर्क में 2007 में हुए विश्व हिंदी सम्मेलन में भी हिस्सा लिया है। वे अंतर्राष्ट्रीय विश्व समिति तथा हिंदी न्यास संस्थाओं के सांस्कृतिक कार्यक्रमों से भी जुड़ी हुई हैं।
(1)
अग्नि रेखा
कुछ तो कह के जातीं तुम ।
अनगिन प्रश्न उठे थे मन में
उत्तर रहे अधूरे
मरुथल में पदचिन्हों जैसे
स्वप्न हुए न पूरे ।
उलझी जिन रिश्तों की डोरी
थोड़ा तो सुलझातीं तुम ।
कुछ तो कह के जातीं तुम ।
किस दृढ़ता से लांघ ली तूने
संस्कारों की अग्नि रेखा
देहरी पर कुछ ठिठकी होंगी
छूटा क्या, क्या मुड़ के देखा ?
खुला झरोखा रखा बरसों
जाने को आ जातीं तुम।
कुछ तो कह के जातीं तुम ।
आकांक्षाओं का पर्वत ऊँचा
चढ़ते-चढ़ते सोचा क्या?
जिस आँचल की छाँह पली
उस आँचल का सोचा क्या?
ममता की उस गोदी का
मान तो रख के जातीं तुम ।
कुछ तो कह के जातीं तुम ।
कुछ तो....
***
(2)
अस्तित्व
कुछ नहीं हुआ..
उसके जन्म पर
न ढोल, न बधाई
न भेंट, न आरती
न पूजन, न रीत
कोई नहीं आया--
उसके आने पर
न दादी, न नानी
न मौसी, न मामी
भेज दी थी
एक अनमनी आशीष
एक ठंडी सांस, सब ने
क्योंकि..
वह थी अवाँछित, उपेक्षित
अपनी माँ की तीसरी बेटी
किन्तु वह....
है, वह थी, वह रहेगी
लड़ेगी हर आग से,
छल से, प्रताड़ना से
झूठे अनुबंधों से,
अनुचित प्रतिबंधों से
ढूँढ़ेगी वह..
अपना क्षितिज
अपना सूर्य, अपनी दिशाएँ
जिएगी वह..
हर युग में, हर काल में
हर परिस्थिति में, हर समाज में
यह लड़ाई केवल उसकी है !
***
(3)
ताप
मेरी पीड़ा का गहन ताप
तुम पल भर न सह पाओगे,
पलकों का किनारा टूटा तो,
तिनके सा बह जाओगे ।
माना तुम इक पर्वत से
अटल, अडिग बलवान हुए
क्षण भर के मेरे कंपन से
टूट-टूट गिर जाओगे ।
गहन अंधेरा हर सकने का
सूरज सा है मान तुझे,
घनघोर घटा बन जाऊँ तो
पल भर में छिप जाओगे ।
अन्तर मन के सागर में
कैसा इक तूफ़ान छिपा,
अधर सिले खुल जाएँ तो
निश्वासों में मिट जाओगे ।
***
Manney Narendra ji
ReplyDeleteaapka bahut bahut abhar Is amanch par sahitya sarita ke nirjhar jharne ki sashakt kalamkar Sashi Padhaji ko padhwane ke liye
कोई नहीं आया--
उसके आने पर
न दादी, न नानी
न मौसी, न मामी
भेज दी थी
एक अनमनी आशीष
एक ठंडी सांस, सब ने
क्योंकि..
वह थी अवाँछित, उपेक्षित
अपनी माँ की तीसरी बेटी
Nari hriday ki komal bhavnaon ko kalam band karne ki sakshamta hamari Shashi ji ne bakhookhi kalam ki zubani nibhayi hai. Shabdon ki ravani, unki bunavat evam kasavat shabdon ke aakar mein bakhoobi hamein ahsason se jodne mein safal rahi hai. Dher shubhkamnaon ke saath
उलझी जिन रिश्तों की डोरी
ReplyDeleteथोड़ा तो सुलझातीं तुम ।
कुछ तो कह के जातीं तुम ।
किस दृढ़ता से लांघ ली तूने
संस्कारों की अग्नि रेखा
देहरी पर कुछ ठिठकी होंगी
छूटा क्या, क्या मुड़ के देखा
SHASHI ji anutha aur man mohak
अपना क्षितिज
अपना सूर्य, अपनी दिशाएँ
जिएगी वह..
हर युग में, हर काल में
हर परिस्थिति में, हर समाज में
यह लड़ाई केवल उसकी है !
ji sahi kaha aapne keval uski ladai hai aur vo vijayi hogi nishchay hi .
aapki kavitayen ,geet ,sansmaran bahuut hi achchhe hote hain
saader
rachana
antr mn ki pida ki sundr abhivykti sadhuvad
ReplyDeletepr antha n len knya bhroon ko le kr kuchh jyada hi hlla ho rha hai yh srkar ka asli muddo se dhyan htane ka ek trika hai lekhk ise isi roop me dekhen is ka vitnda vad n bnye
pun: shubhkamnayen
main swym do putriyon ka pita hoon aur ldki ke dukh ka dnsh jhel rha hoon
शशि पाधा जी की कवितायेँ नारी के अस्तित्व ... उसकी पीड़ा को उसकी टीस को को नई भूमिका में अंकित करती हुई कवितायेँ है इतिहास के सारे करुण व कठोर पृष्ठ जिसमे नारी मन की व्यथा लिखी हो ..आपकी कविता पढ़ते हुवे एका एक सामनेआ जाते हैं.. आपकी कविताओं में उसी पृष्ठों की कुछ झलक देखने को मिली बहुत खूब !
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