रुख़ हवाओं का जिधर का है उधर के हम हैं ....
- निदा फ़ाज़ली
संक्षिप्त परिचय:
नाम : भरत तिवारी ‘दस्तकार’
पिता : स्व. श्री एस . एस. तिवारी
माता : स्व. श्रीमती पुष्प मोहिनी तिवारी
जन्म भूमि : फैज़ाबाद (अयोध्या) उत्तर प्रदेश
कर्मभूमि : नई दिल्ली
शिक्षा : डा. राम मनोहर लोहिया (अवध विश्वविद्यालय ) से विज्ञान में स्नातक
मैनेजमेंट में स्नातकोत्तर
अभिरुचि: कला , संगीत , लेखन (नज़्म, गीत, कविता) और मित्रता
संप्रतिः पि. ऍम. टी. डिजाइंसके ऍम. डी. आर्किटेक्ट और इंटीरियर डिजाईन में बेहद झुकाव तथा उसमे नई रचनात्मकता के लिए लगातार उधेड़बुन.
प्रकाशनः देश की कई पत्र पत्रिकाओं और ब्लोग्स में सतत प्रकाशन. खुद के ब्लॉग “दस्तकार” का पिछले २ सालों से सफलतापूर्वक संचालन
पता : बी – ७१ , त्रिवेणी , शेख सराय – १, नई दिल्ली , ११० ०१७
ईमेल :mail@bharttiwari.com
दूरभाष : 011-26012386
अपने बारे में : माँ मेरी हिन्दी की अध्यापिका थीं और उनका साहित्य से लगाव काफी प्रभाव डाल गया बचपन से ही अमृता प्रीतम , महादेवी वर्मा , कबीर और साथ ही जगजीत सिंह के गायन ने निदा फाज़ली, ग़ालिब की ओर मोड़ा शायद वहीँ से चिंतन की उत्पत्ति हुई जो अब मेरे लेखन का रूप लेती है
बेड साइड बुक्स :गुनाहों का देवता , निदा फाज़ली संग्रह, इलुजंस, द एल्कमिस्ट, ग़ालिब, गुलज़ार और भी हैं, लंबी लिस्ट है
(एक)
क्या वजह होगी
जो सन्नाटा
बन गया था जीवन
क्यों टूटा !
(दो)
तुम्हारी वो आवाज़
आज भी सुनाई देती है
जब कभी
हमारे तुम्हारे बीच का सन्नाटा बोलता है
(तीन)
तुम्हारी आँखें बोलती हैं
आखों का बंद मौन
सारे सन्नाटे को चुप कर देता है
और दिल एक जरिया बस
आवाज़ वैय्कुम में सफर नहीं करती
(चार)
मेरी एक चुप
हमारी सारी बातों को समेट गयी
तुम पूछ लेते
ये सन्नाटा ना होता तब
(पांच)
ये लड़ाई का सन्नाटा
अजीब होता है
बोलता है जैसे शोर
कर नहीं पाता दूर सन्नाटे को लेकिन
अपनी मौत को खुद तलाशता
गुम होने के लिए
(छह)
वैसे तुम कभी बोले नहीं
मैंने हमेशा सुना , फिर भी
कहीं इसी को प्यार की भाषा नहीं कहते
एक बार शायद कुछ कहा था तुमने
वो मैं सुनना नहीं चाहता था
उसे शायद प्यार की भाषा नहीं कहते होंगे
उसके बाद ही तो पैदा हुआ था
हमारा सन्नाटा
अब तक फैला है
(सात)
बंद कमरे की हवा
गीला लिहाफ तकिये का
इंतज़ार है
दरवाजे के खुलने का
शायद ताज़ी हवा उड़ा ले जाये
इस सीले सन्नाटे को
***
बहुत सुन्दर क्षणिकाएँ| तिवारी जी को बधाई|
ReplyDeletelovelyyyyyyyyyyyyy too good
ReplyDeleteयह सन्नाटा भी बहुत कुछ कह गया ...एक से बढ़ कर एक क्षणिकाएं
ReplyDeleteबहुत सुन्दर क्षणिकाएँ....
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति..के लिए आपको हार्दिक बधाई।
ये लड़ाई का सन्नाटा
ReplyDeleteअजीब होता है
बोलता है जैसे शोर
कर नहीं पाता दूर सन्नाटे को लेकिन
अपनी मौत को खुद तलाशता
गुम होने के लिए.......वाह बहुत सुन्दर लेखन जी !!Nirmal Paneri
hamesh ki tarah.............yeh chanikayein bhi behad umda hai.......kabhii kabhi maun kitna asardaar hota hai................bina kahe bahut kuch kah jata hai.....................aap yuun hi lihtey rahein.aur ham padhtey rahein..............dhanyawaaaaaaaaad
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ****
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको हार्दिक बधाई।
bahut khoob Bharat ji...sannate ki bhasha ko padhna bahut durooh karya hai...maine bhi kayi nbaar koshish ki hai...par aap poori tarah safal huye hain isme...
ReplyDeleteतुम्हारी वो आवाज़
आज भी सुनाई देती है
जब कभी
हमारे तुम्हारे बीच का सन्नाटा बोलता है
bahut badhiya.
bahut hi sundar blog aur kavitaye.....keep it up bhai..........
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर क्षणिकाएँ..........बधाई...!
ReplyDeleteभरत भाई, आपकी की ये क्षणिकाएं , जो एक क्षण में पढ़ डाली मैंने, मगर एक लम्बे समय तक मेरे मन-मस्तिष्क में गूंजती रही, इन 'सन्नाटों' की आहट....
ReplyDeletebadhai bhai bharat tiwari ji sundar kvitayen
ReplyDeleteबहुत सुन्दर... भारत जी ..आपके द्वारा फैलाये इस सन्नाटे ने तो हमारी बोलती बंद कर दी ..और यहाँ भी फ़ैल गया है एक सन्नाटा ... वाह ..:))
ReplyDeleteसन्नाटे की कहती , सन्नाटे को गुनती .. गाती , जीती सुन्दर क्षणिकाएं .. बधाई भैया
ReplyDelete'जब हम हुए चुप तो बोला सन्नाटा।' भरत ने वाकई सन्नाटे के भाव का खूबसूरत प्रयोग किया है। अच्छी क्षणिकाएं हैं, गहरा अहसास देने वाली। बधाई।
ReplyDeleteआपसी रिश्तों के बीच पनपते सन्नाटे के भाव को इन छोटी-छोटी क्षणिकाओं में खूबसूरत शब्द दिये हैं भरत ने। बहुत सुन्दर बन पड़े हैं ये काव्यांश। बधाई ।
ReplyDeleteमेरी एक चुप
ReplyDeleteहमारी सारी बातों को समेट गयी
तुम पूछ लेते
ये सन्नाटा ना होता तब-
निजी व्यथा एवं आपसी संबंधों के बारे में सलीके से कहतीं ये पंक्तियाँ आपकी परिपक्व लेखनी का परिचायक है. मेरी बधाई स्वीकारें -अवनीश सिंह चौहान
भरत जी ने छोटी छोटी क्षणिकाओं के माध्यम से जीवन के बहुत से अनुभवों का सार..हम सबके बीच रख दिया..बहुत नज़ाकत के साथ और बडी खूबसूरती के साथ..बधाई
ReplyDeleteये लड़ाई का सन्नाटा
ReplyDeleteअजीब होता है
बोलता है जैसे शोर
कर नहीं पाता दूर सन्नाटे को लेकिन
अपनी मौत को खुद तलाशता
गुम होने के लिए
बहुत खूबसूरत क्षणिकाएं ..... बधाई हो आपको
amazing visual imagery of pain SANNATA..
ReplyDeleteSirji, hamne to aap ko jis roop me Basti me Prayank sir ke saath dekha tha uska aaj taak gun gaan karte hai aur ab ye roop mere liye PUJYANIYA bana diya hai,Mera saare dost aap ke baare me janate hai lekin ab mai unko aap ke es roop ka darshan karauga.
ReplyDeleteAap ka Student....Muneendra Tripathi, Basti now Mumbai