और लहरों का
गोल-गोल
फैलते जाना....
कितना मन को लुभता है...,.
मगर कोई यूं ही
लहरो के चक्रव्यूह में
फंस जाए तो
जान गवा दे..!!
यू ही 'प्यार'...
कितना प्यारा है ये शब्द....
“प्यार.......”!!
जब तक ये मिलता रहे
सब स्वर्ग सा लगता है..
जैसे ही गम, जुदाई और डर
दामन छु जाते है प्यार का..
प्यार भी एक जान लेवा,
लहरों के चक्रव्यूह सा
रूप अख्तियार कर लेता है...,.
और कर देता है..
कयी जिंदगियां तबाह..!!
कैसा रिश्ता है लहरों का,
प्यार का, और
चक्रव्यूह का...!
मगर सतह मरूस्थल सी है
और तासीर उस रेगीस्तान जैसी..
जो प्यासा है प्यार के लिए..
मै तुम से दूर रह कर
खुद को भुलाये रहता हूँ ..
उमडते सागर की
कल-कल करती लहरों सा
लोगो की भीड़ में
सवयं को उलझाये रहता हूँ .
मगर पाता हूँ जब भी
तुम्हें अपने करीब..
भूल जाता हूँ सीमायें
बिखर जाता हूँ ,
छुपा लेना चाहता हूँ खुद को
तुम्हारे दामन में.
पिघला देना चाहता हूँ ..
जर्द पड़ी दिवारों की
बर्फ को..
गरम सांसो की महक में..
मुक्त होना चाहता हूँ
विषाक्त, छीछ्लेदार
जिंदगी की केंचुल से
मैं जानता हूँ
मगर अनियंत्रित हो जाता हूँ
तुम्हारे करीब आने की आकांक्षा
उदिग्न हो जाती है
और मन
में डूब जाता है.
मनः स्थिती की
इस यात्रा से गुजरता हुआ
मैं खो देता हूँ
खुद के आत्म-बळ को.
शरमिंदा हूँ मैं स्वयं से
जो प्रेम लोलुपता में फंसा
भूल जाता हूँ
आज मैं ...
अपनी क्षुद्रता के लिए
क्षमा याचना भी नही कर सकता
डूबा हूँ अपने ही अहम में..
और कुचला जा रहा हूँ ..
खुद-ब- खुद ही
अपने संताप के पहियों में.
हो सके तो
मुझे क्षमा करना.
***
अद्भुत्……………एक से बढ कर एक है।
ReplyDeleteयह करीबियत का मामला नहीं है. जिससे डर नहीं होता वहाँ बदतमीजी चल जाया करती है. जो सार्वजनिक है, जिसपर सभी का अधिकार है उसे हम हलके में लेते हैं. इसलिये उसे कोसना, दुत्कारना, फटकारना सभी कुछ चलता है.
ReplyDeleteपर संदेशवाहकों को अपमानित करना, क़त्ल करना कभी भी अपनी और न ही दूसरों की संस्कृति में रहा है. अपवाद कहीं भी मिल सकते हैं. जब हनुमान जी रावण के दरबार में संदेशवाहक बनकर गये तो विभीषण द्वारा बचाए गये उसी कल्चर की दुहाई देकर.
धर्म दूतों को भी संदेशवाहक मान सकते हैं.
बिग बोंस का दिल तो बड़ा होता है, वह छोटी-मोटी बात से खफा नहीं होता. और वह छोटे-मोटे दंड नहीं देता, वह प्राकृतिक आपदाओं में अपने क्रोध का इज़हार करता है.
आपकी इस लघु-शंका के बाद मुझे विचारों का अव-शिष्ट त्यागना पड़ रहा है.
पहली टिप्पणी जल्दबाजी में गलत पोस्ट हो गयी
ReplyDeleteमुझे क्षमा करना.
आपके शब्दों का व्यूह
आपके भावों के समूह
के सम्मुख इतना दुरूह
नहीं है कि उसे समझा न जा सके. — मेरी आत्मा कहती है.
तीनों रचनाएँ बहुत गहरे भावों को व्यक्त करते हुए ,...सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeletein dino anamikaji bahut badhiya likh rahi hain aur unka pratisthik bloggeron me shumar ho raha hai.. aaj ki unki teeno kavitayen taajgi bhari hain aur naye tarah se kahi gai hain.. sharir ka attma se samvaad manoviagyanik kavita hai.. wahin sagar kee pyas.... pyar ke liye.. bahut sunder laga... badhai.. akhar kalsh ki pratishta ke anuroop kavita
ReplyDeleteतीनो रचनाये बहुत अच्छी लगी
ReplyDeleteबधाई
उमदा ख़यालात को कविताओं में सँजोया गया है
ReplyDeleteबधाई
एक शे’र याद हो आया है हाज़िर है
मैं तो सहरा हूँ मगर मुझको है इतना मालूम
डूब जाता है क़रीब आके समंदर मुझमें
कुछ व्यस्तताओं के चलते ब्लॉगजगत को जरुरी समय न देने का अफसोस रहता है. यहाँ भी देर से ही आ ही पाया....
ReplyDeleteतीनों ही रचनाएँ उत्कृष्ट!! वाह!
सागर तो हूँ ..
मगर सतह मरूस्थल सी है
और तासीर उस रेगीस्तान जैसी..
जो प्यासा है प्यार के लिए..
वजनदार पंक्तियाँ.
तुम्हारा नाम अनामिका है या सुनीता, पहले यह बताओ। कविताएं बड़ी अच्छी लिख रही हो, ज्यादा अच्छी लिखने पर कई बार नजर लग जाती है, सम्भाल कर रखना अपने आपको। हा हा हाहा।
ReplyDeleteबेहद ख़ूबसूरत और उम्दा
ReplyDeletebahut khoob.............
ReplyDeletemohtarma anamika saheba batini [apne ndr ki andar]ki kavit karn be had mush kil hai or vo aapne ki uske liye mubarakbad
ReplyDeleteबहुत अच्छी कविता।
ReplyDeleteआत्मा से बातें...
ReplyDeleteचक्रव्यूह और प्यार....
मुझे क्षमा करना...
ये रचनाएं अनामिका जी की लेखन प्रतिभा का प्रमाण है.
नरेन्द्र जी, सुनील जी आपको बधाई
कैसा रिश्ता है, लहरों का, प्यार का और चक्रव्यूह का. बहुत सधा हुआ सवाल है, जो उत्तर नहीं मांगता. यह आत्मरचित व्यूह है शायद, जो न कैद करता है, न बाहर निकलने देता है. लहरें अगर भीतर हों तो न तैरने का अवसर देंगी, न डूबने का. ऐसा ही होता है प्यार. वह बांधता भी नहीं और मुक्त भी नहीं करता है. है न.
ReplyDeleteचक्रव्यूह ..
ReplyDeleteथीं इस कदर घुमेंरियां दरिया के घाव में
बुझती बदन की आग क्या मैं डूबता मिला
अनामिकाजी,
ReplyDeleteआपकी कविताएं अच्छी है, खुशी हुई | धन्यवाद |
आप सभी ने अपनी अपनी टिप्पणियां देकर मेरा मनोबल बढ़ाया है इसके लिए मैं आप सब की बहुत बहुत आभारी हूँ. आगे भी आपका साथ यूँ ही मिलता रहेगा आशा करती हूँ.
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति!
ReplyDeleteहिन्दी हमारे देश और भाषा की प्रभावशाली विरासत है।
rchnaon me gahrai hai
ReplyDeletebadhaai
dr.ved vyathit faridabad
09868842688
email -dr.vedvyathit@gmail.com