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एक नए अंदाज़ के साथ बहुत सुन्दर रचना प्रस्तुत किया है आपने! बहुत बढ़िया लगा! बधाई!
ReplyDeleteसहजता से कहन इन काव्य रचनाओं की विशेषता है।
ReplyDeleteइन रचनाऒं को कविताएं कहना बेईमानी होगी।
ReplyDeleteसूक्तियाँ रचीं हैं-----आपने---बहुत-बहुत बधाई!
सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी
बहुत खूबसूरत..हर रचना....
ReplyDeleteआसमान छूकर.....वापस लौटी तो पाया,
जो दो बालिश्त जमीन थी अपनी...वो भी अपनी न रही...
और-
संधि के क्षण......बीत जाने के बाद
युद्ध हो या न हो.......शांति कभी नही रहती...
ज़िन्दगी का दर्स देती हुई नज़्में.
लेखिका और प्रस्तुतकर्ता बंधुओं को बधाई.
क्रांति जी की उपर्युक्त कविताएं शिल्प एवं संवेदना के स्तर पर सराहनीय है।
ReplyDeletesabhi rachnayen sunder abhivyakti.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया .....रचना हर एक पंक्तियों में गहरे भाव व्यक्त है
ReplyDeleteकवयित्री क्रान्ति की सभी कविताएँ संवेदनाओं से ओतप्रोत हैं...." मोड़ " कविता में ....कि जब भी पलट कर देखूं / कोई तो हाथ हिलाता हुआ दिखे ..और इसी तरह " घर " कविता में ....हम अपने घर में / अँधेरे में भी चल लेते हैं......कविताएँ बार - बार पढ़ने को मन करता है.... हार्दिक बधाई. http://deendayalsharma.blogspot.com
ReplyDeleteअनूठी शैली,अनूठी अभिव्यक्ति॥
ReplyDeleteबधाई।
सत सिया के दोहे ज्यौं नाविक के तीर
ReplyDeleteदेखन में छोटे लगे घाव करे गम्भीर
कम शब्दों में गहरे भावों को अभिव्यक्त किया है कीर्ति जी ने
साधुवाद ..!
आशा पाण्डे ओझा
सबसे अलग अंदाज़ ………………।बहुत ही भावमयी रचनायें…………………।सभी एक से बढ्कर एक्।
ReplyDeleteआखर कलश को एक और बेहतर प्रस्तुति के लिये साधुवाद! क्रांति जी की सभी रचनाएँ साहित्य की कसौटी पर भाव तथा कला पक्ष दोनो ही दृष्टि से खरी उतरती है। बधाई।
ReplyDeleteक्रांति जी ! बड़ोदरा और अहमदावाद में आपसे हुईं भेटें साँसों का पाथेय हैं. आपके असाधारण रचनाशीलता, शब्द सामर्थ्य, अनूठा चिंतन और कथ्य पर पकड़ स्वयं सिद्ध है. अंतरजाल पर आपका अभिनन्दन.
ReplyDeleteकांति जी ,आप की कवितायेँ जीतनी छोटी हैं उतनी ही मारक.आप को हार्दिक बधाई.
ReplyDeleteनतमस्तक हूँ। न्यूनतम शब्दों में संपूर्ण दर्शन की अभिव्यक्ति कैसे की जाती है इसका सटीक उदाहरण।
ReplyDeleteबहुत-बहुत बधाई।
बहुत सुन्दर भाव, कम शब्दों में दिल को छू लेने वाले प्रसंग.
ReplyDeleteबधाई
क्रांति जी!
ReplyDeleteवन्दे मातरम.
आपका दूरभाष आया, चर्चा कर स्मृतियाँ जीवंत हो उठीं. आपके काव्य संकलन और काव्य नाटक जेता अनूठी कृतियाँ हैं. आपकी अनुमति हो तो जेता को दिव्यनर्मदा पर प्रस्तुत करूँ. वड़ोदरा से नलिनी जी भी सतत संपर्क में रहतीं हैं. किसी साहित्यिक आयोजन मेंफिर आपसे साक्षात् की प्रतीक्षा है. डॉ. कनाते को नमन.
कम शब्दों में दिल को छू लेने वाली भावाभिव्यक्तियां...आपके साथ साथ आखर कलश को भी बधाई एक और बेहतरीन प्रस्तुति के लिये।
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