लिखना इनका शौक है और पेशा भी। शायद यही वजह है कि खुश रहते हैं। हालांकि, वे इस बात से पूरी तरह सहमत नहीं हैं। उन्हें अपने शौकिया और पेशवर लेखन में एका स्थापित करने की कोई जल्दबाजी भी नहीं दिखती। उनसे पूछने पर वे एक ही बात कहते हैं कि ‘उडती रेत, बहता पानी तपता सूरज साथी है, इनसे है मेरा सांसों-दम, इतनी मेरी थाती है।’ नाटक, कहानी और कविता की चार कृतियों के इस रचनाकार का मुखर पक्ष है पत्रकारिता। एक पत्रकार के रूप में बीकानेर संवाद से शुरू हुए सफर में निर्भय कलम, दैनिक लोकमत और दैनिक भास्कर शामिल है।
बीकानेर मूल के हरीश बी. शर्मा का जन्म 9 अगस्त 1972 को कोलकाता में हुआ। पत्रकारिता में स्नातक और हिंदी में स्नातकोत्तर हरीश इन दिनों राजस्थानी भाषा में एमए करने के प्रयास में है। अपने पहले राजस्थानी कविता संग्रह ‘थम पंछीडा’ के शीर्षक से ही चर्चा में आए हरीश का दूसरा कविता संग्रह भी ‘फिर मैं फिर से फिरकर आता’ भी खासा चर्चित रहा। इसके अलावा किशोर वय के पाठकों के लिए लिखा उनका कहानी संग्रह ‘सतोळियो’ है। हिंदी और राजस्थानी में लगभग 2॰ नाटक लिख चुके शर्मा के अधिकांश नाटक मंचित हैं। इन नाटकों में ‘हरारत’, ‘भोज बावळो मीरां बोलै’, ‘ऐसो चतुर सुजान’, ‘सलीबों पर लटके सुख’, ‘सराब’, ‘एक्सचेंज’, ‘जगलरी’, ‘कठफोडा’, ‘अथवा-कथा’, ‘देवता’, ‘गोपीचंद की नाव’, ‘प्रारंभक’ ‘पनडुब्बी’ प्रमुख हैं।
शिमला, जयपुर, अजमेर और बीकानेर में मंचित इन नाटकों को समान रूप से दर्शकों की सराहना मिलती रही है। क्रियेटिव राइटर के रूप में पहचान बनाने वाले हरीश बी. शर्मा दैनिक भास्कर से जुडे पत्रकार हैं। इस लिहाज से वर्तमान में दैनिक भास्कर, हनुमानगढ क्लस्टर एडीशन के प्रभारी हैं। विभिन्न सरकारी, गैरसरकारी संस्थानों से समय-समय पर सम्मानित हरीश बी. शर्मा संतोषानंद और निदा फाजली के साथ हुई मुलाकात को बडा सम्मान मानते हैं। हालांकि उनकी मुलाकात के अफसानों में अमिताभ बच्चन, धर्मेन्द्र, राज बब्बर, सन्नी देओल, बॉबी देओल, अक्षय कुमार, प्रीति जिंटा, करीना कपूर, गोविंद नामदेव, गुलशन ग्रोवर, मिलिंद सोमन, असरानी, राजू श्रीवास्तव जैसी सेलीब्रिटी शामिल है तो टॉम ऑल्टर, चंद्रप्रकाश द्विवेदी, गोविंदाचार्य जैसी शख्सियतों से जुडे कई प्रसंग हैं।
ब्लॉग लेखन में सक्रिय हरीश बी. शर्मा की अपनी साइट हरीशबीशर्मा डॉट कॉम है तो मरुगंधा पर भी हरीश की रचनाएं उपलब्ध हैं। राजस्थान श्रमजीवी पत्रकार संघ के बीकानेर जिला अध्यक्ष रहे हरीश बी. शर्मा ने विजेता स्टार ऑर्गेनाइजेशन की स्थापना की है। ‘हमारे फन के बदौलत हमें तलाश करे, मजा तो तब है के शोहरत हमें तलाश करे’ मुन्नवर राणा के इस शेर से खासे प्रभावित हरीश बी. शर्मा मानना है कि सृजन के क्षण खास नहीं होते हैं, खास अनुभूतियां होती हैं जो सृजन की प्रेरणा बनती है।
क्योंकि आदमी हैं हम
(एक)
मैं सरयू तट पर नाव लेकर
आरण्यक में एक से दूसरी शाख पर झूलते
लंका में अस्तित्त्वबोध के शब्द को संजोए
अपनी कुटिया में रामनाम मांडे
अलख जगाए-धूनी रमाए
प्रतीक्षा करता हूं-प्रभु की
और निष्ठुर प्रभु आते ही नहीं।
(दो)
चाहता हूं प्रभु
फिर तुम्हें एक लंबा वनवास मिले
अपने परिवार से होकर अलग
तुम वन-वन भटको
रात-रात भर सीते-सीते करते जागो
फिर जब सीता मिले
उसको भी त्यागो
(तीन)
हे राम!
पुरुषोत्तम की यह उपाधि
तुम्हे यूं ही नहीं दी गई है
मर्यादा के, साक्षात सत्य के अवतार थे तुम तो
तभी तो तुम पुरुषोत्तम कहलाए।
विश्वसुंदरी की तरह चलवैजयंती भी नहीं है यह उपाधि
जो हर साल किसी और को मिल जाए
क्या तुम्हें इतना भी पता नहीं है!
(चार)
प्रभु!
इतने स्वार्थी मत बनो
मानवता के नाते आओ
हे अवतार! हे तारणहार!
हमें इन अमानुषों
समाजकंटकों से बचाओ
कब तक हम
इन दानवों से लड़ सकते हैं
आखिर तो बाल-बच्चेदार हैं
परिवार-घरबार, भरापूरा संसार है
कैसे बिखरती देख सकती हैं
मेरी इंसानी आंखें यह सब
(पांच)
वादा रहा
आपका संघर्ष व्यर्थ नहीं जाने दूंगा
मंदिर बनवाऊंगा, मूर्तियां लगवाऊंगा
मानवता के प्रति आपकी भूमिका के पेटे
एक वाल्मीकी, हाथों-हाथ अपॉइंट करवा दूंगा
वक्त-जरूरत
तुलसीदास जैसों की सेवाएं भी ली जाएंगी
आप आइये जरूर खूब महिमा गाई जाएंगी।
***
जीवन को
धूप-छांव का सहकार कहो
या दाना चुगती चिड़ियों के साथ
नादां का व्यवहार
पागल के हाथ पड़ी माचिस-सी होती है जिंदगी
दीवाली की लापसी, ईद की सिवइयां
क्रिसमस ट्री पर सजे चॉकलेट्स से
बहुत मीठी होती है जिंदगी
जिसे जीना पड़ता है
लेकिन सुधी पाठक ज्यादा माथा नहीं दुखाते
किताब बंद करते होते हैं
जब समाप्त लिखा आता है।
***
फड़फड़ाते कागजों के हाथों
'आखा' देकर, पवित्रता की पैरवी करती
दंतकथाएं सुनाती बुढ़ियाएं
कितनी ही तीज-चौथ करवा चुकी है
लेकिन अब ये पेपरवेट कम होने लगे हैं
उड़ने लगे हैं कथा के कागज
चौड़े आने लगा है चंदामामा से धर्मेला
तीज-चौथ आज भी आती है
भूखे पेट रहकर, आखा हाथ मे रखकर
बची-खुची बुढ़ियाएं तलाश, कथाएं फिर सुनी जाती है
फिर होती है ऐसे पतियों पर बहस
घंटों चलती है - उस जमाने पर टीका-टिप्पणी
सीता और द्रोपदी के दुख-सुख पर चटखारे
चलनी की आड़ से देखे चांद की
खूबसूरती भी शेयर की जाती है
'हम ही क्यों रखें व्रत'
ऐसी सुगबुगाहट भी होती है
कुछ ऐसी बातों पर ध्यान नहीं देते
कहते हैं-बाकी है अभी बहुत कुछ
कुछ कहते हैं-खेल ही अब शुरू होगा बराबरी का
जब कुछ भी नहीं रहेगा चोरी-छाने
***
-हरीश बी शर्मा
'हम ही क्यों रखें व्रत'
ReplyDeleteऐसी सुगबुगाहट भी होती है
कुछ ऐसी बातों पर ध्यान नहीं देते
कहते हैं-बाकी है अभी बहुत कुछ
कुछ कहते हैं-खेल ही अब शुरू होगा बराबरी का
जब कुछ भी नहीं रहेगा चोरी-छाने
बहुत सुंदर हरीश जी!
हरीश जी कविताएं हमें जिंदगी के करीब ले जाती हैं, आभार।
ReplyDelete---------
ध्यान का विज्ञान।
मधुबाला के सौन्दर्य को निरखने का अवसर।
बहुत सुन्दर कविता , । आपका ब्लाग bolg world .com में जुङ गया है ।
ReplyDeleteकृपया देख लें । और उचित सलाह भी दें । bolg world .com तक जाने के
लिये सत्यकीखोज @ आत्मग्यान की ब्लाग लिस्ट पर जाँय । धन्यवाद ।
बहुत सुन्दर कविता , । आपका ब्लाग bolg world .com में जुङ गया है ।
ReplyDeleteकृपया देख लें । और उचित सलाह भी दें । bolg world .com तक जाने के
लिये सत्यकीखोज @ आत्मग्यान की ब्लाग लिस्ट पर जाँय । धन्यवाद ।