परिचय:
नाम : जितेन्द्र ‘जौहर’
जन्म: 20 जुलाई,1971 (कन्नौज, उ.प्र.) भारत।
शिक्षा: एम. ए. (अंग्रेज़ी:भाषा एवं साहित्य), बी. एड., सी.सी.ए. / परास्नातक स्तर पर बैच टॉपर / अ.भा.वै.महासभाद्वारा ‘रजत-प्रतिमा’ से सम्मानित।
साहित्यिक गतिविधियाँ / उपलब्धियाँ
लेखन-विधाएँ: गीत, ग़ज़ल, दोहा, मुक्तछंद, हाइकू, मुक्तक, हास्य-व्यंग्य, लघुकथा, समीक्षा, भूमिका, आलेख, आदि।
हिन्दी एवं अंग्रेज़ी में समानान्तर लेखन।
सक्रिय योगदान: सम्पादकीय सलाहकार ‘प्रेरणा’(शाहजहाँपुर, उ.प्र.) विशेष सहायोगी ‘अभिनव प्रयास’ (अलीगढ़, उ.प्र.) एवं ‘विविधा’(उत्तराखण्ड)।
प्रसारण: ई.टी.वी. के लोकप्रिय कार्यक्रम ‘गुदगुदी’ में अनेक एपीसोड प्रसारित।
वीडियो एलबम में फ़िल्मांकित गीत शामिल।
सिटी चैनल्स पर सरस कव्य-पाठ।
काव्य-मंच: संयोजन एवं प्रभावपूर्ण संचालन के लिए विशेष पहचान। ओजस्वी व मर्यादित हास्य-व्यंग्यपूर्ण काव्य-पाठ का प्रभावी निर्वाह।
समवेत संग्रह: ‘हास्य कवि दंगल’ (धीरज पॉकेट बुक्स, मेरठ), ‘ग़ज़ल...दुष्यंत के बाद’ (वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली), ‘हिन्दुस्तानी ग़ज़लें’ भाग-1, 2 व 3 (ऋचा प्रकाशन, कटनी), ‘उ.प्र. काव्य विशेषांक’ (संयोग साहित्य, मुम्बई), ‘अष्टकमल’ (माण्डवी प्रकाशन, ग़ाज़ियाबाद), ‘हिन्दी साहित्य के जगमगाते रत्न’ भाग-1 (ॐ उज्ज्वल प्रकाशन, झाँसी), ‘कलम गूँगी नहीं’ (कश्ती प्रकाशन, अलीगढ़), ‘कुछ शिक्षक कवि’ (लक्ष्मी पब्लिकेशंज़, नई दिल्ली), ‘शब्द-शब्द मोती’ (प्रतिभा प्रकाशन, जालौन), ‘स्मृतियों के सुमन’ (पुष्पगंधा प्रकाशन, छ्त्तीसगढ़) सहित अनेकानेक महत्त्वपूर्ण समवेत संग्रहों में रचनाएँ संकलित।
अनुवाद: अंग्रेज़ी कथा-संग्रह ‘ऑफ़रिंग्स’ का हिन्दी अनुवाद।
संपादन: ‘अशोक अंजुम: व्यक्ति एवं अभिव्यक्ति’ (समग्र मूल्यांकनपरक कृति)। ‘अरण्य का सौन्दर्य’ (डॉ. इन्दिरा अग्रवाल के सृजन पर आधारित समीक्षा-कृति)। ’सरस्वती सुमन’ (त्रैमा.) का बहुचर्चित ‘मुक्तक/रुबाई विशेषांक’। ‘त्योहारों के रंग, कविता के संग’ (तैयारी में...)।
विशेष: अनेक काव्य-रचनाएँ संगीतबद्ध एवं गायकों द्वारा गायन। राष्ट्रीय/ प्रान्तीय/ क्षेत्रीय स्तर पर विविध साहित्यिक/सांस्कृतिक प्रतियोगिताओं के निर्णायक-मण्डल में शामिल।
उ. म. क्षे. सांस्कृतिक केन्द्र, (सांस्कृतिक मंत्रालय, भारत सरकार) एवं
‘स्टार इण्डिया फ़ाउण्डेशन’ द्वारा आयोजित कार्यशालाओं में ‘फोनेटिक्स’,
‘सेल्फ़-डेवलपमेण्ट’, ‘कम्यूनिकेशन एण्ड प्रेज़ेण्टेशन स्किल’, आदि विषयों पर कार्यशालाओं में रिसोर्स पर्सन/मुख्य वक्ता के रूप में प्रभावपूर्ण भागीदारी।
सम्मान/पुरस्कार: अनेक सम्मान एवं पुरस्कार (समारोहपूर्वक प्राप्त)। जैसे- पं. संतोष तिवारी स्मृति सम्मान, साहित्यश्री(के.औ.सु.ब. इकाई मप्र), नागार्जुन सम्मान, साहित्य भारती, महादेवी वर्मा सम्मान, आदि के अतिरिक्त विभिन्न प्रशस्तियाँ व स्मृति-चिह्न प्राप्त। प्रकाशित रचनाओं पर 500-600 से अधिक प्रशंसा व आशीष-पत्र प्राप्त।
सम्प्रति: अंग्रेज़ी-अध्यापन (ए. बी. आई. कॉलेज, रेणुसागर, सोनभद्र, उप्र 231218).
सम्पर्क: आई आर- 13/6, रेणुसागर, सोनभद्र, (उ.प्र.) 231218 भारत.
ईमेल: jjauharpoet@gmail.com
ब्लॉग: http://jitendrajauhar.blogspot.com/
ख़ुशामद का मिरे होठों पे, अफ़साना नहीं आया।
मुझे सच को कभी भी झूठ बतलाना नहीं आया।
हुनर अपना कभी मैंने, कहीं गिरवी नहीं रक्खा,
इसी कारण मेरी झोली में नज़राना नहीं आया।
भले ही मुफ़लिसी के दौर में फ़ाक़े किये मैंने,
मगर मुझको कभी भी हाथ फैलाना नहीं आया।
किसी अवरोध के आगे, कभी घुटने नहीं टेके,
मैं दरिया हूँ मुझे राहों में रुक जाना नहीं आया।
सियासत की घटाएँ तो बरसती हैं समुन्दर में,
उन्हें प्यासी ज़मीं पे प्यार बरसाना नहीं आया।
परिन्दे चार दाने भी, ख़ुशी से बाँट लेते हैं,
मगर इंसान को मिल-बाँट के खाना नहीं आया।
अनेकों राहतें बरसीं, हज़ारों बार धरती पर,
ग़रीबी की हथेली पर कोई दाना नहीं आया।
सरे-बाज़ार उसकी आबरू लु्टती रही ‘जौहर’
मदद के वास्ते लेकिन कभी थाना नहीं आया।
**
गगन के वक्ष पे मधुरिम मिलन की प्यास लिख देना।
धरा का दर्द में डूबा हुआ, इतिहास लिख देना।
निरन्तर क़ैद में बुलबुल के घायल पंख कहते हैं,
मेरे हिस्से में इक छोटा सही, आकाश लिख देना!
कभी मुफ़लिस की आँखों में, तुम्हें पतझड़ दिखायी दे,
नयन से सींचकर धरती पे तुम मधुमास लिख देना।
तुम्हें मज़लूम के लाचार अश्कों की क़सम ‘जौहर’
ग़ज़ल में सिसकियाँ भरता हुआ एहसास लिख देना।
**
"parinde char dane bhi khushi se baant lete hain
ReplyDeletemagar insaan ko mil baant kar khana nahinaaya"
bahut khoob jitendra ji ....badhai narendra ji.
हुनर अपना कभी मैंने, कहीं गिरवी नहीं रक्खा,
ReplyDeleteइसी कारण मेरी झोली में नज़राना नहीं आया।
हर शेर जितेन्द्र जी की काव्य कुशलता का परिचय देता है ....
आपकी झोली तो हुनर से भरी है जौहर जी ...
फैलेगी कैसे ....?
परिन्दे चार दाने भी, ख़ुशी से बाँट लेते हैं,
मगर इंसान को मिल-बाँट के खाना नहीं आया।
इंसानियत बांटते शब्द .....
तुम्हें मज़लूम के लाचार अश्कों की क़सम ‘जौहर’
ग़ज़ल में सिसकियाँ भरता हुआ एहसास लिख देना।
बेहतरीन एह्सास ....!!
क्या नागीनेदारी से शब्द शिल्पी जौहर जी ne तराशा है
ReplyDeleteयूं तराशा है उस्क्को शिल्पी ने
जान सी पड़ गई शिलाओं में
हर शेर अपने आप में बेमिसाल
दाद के साथ
किसी अवरोध के आगे, कभी घुटने नहीं टेके,
ReplyDeleteमैं दरिया हूँ मुझे राहों में रुक जाना नहीं आया।
जौहर साहब की दोनों ग़ज़लें बहुत उम्दा हैं.
लाजवाब!
ReplyDeleteवाह ...जौहर जी वाह....
ReplyDeleteहर शेर पर दाद निकली..आपकी शायरी को पढ़ना सुंदर अहसास को आत्मसात करना है....आभार...और बधाई....आपको..
नव वर्ष की मंगल कामनाएँ...और पुरस्कार के लियें भी बधाई....
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ReplyDeleteबेहद उम्दा शाइरी.
पहली ग़ज़ल ने लाजवाब कर दिया. पहली से उबरूं तो दूसरे की जड़ें मानस में जमाऊँ.
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दूसरी पढी ... वह भी बेहतरीन है.
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tum nyay ke mndir kee kahani likhna
ReplyDeletesooli pai chdoon us kee kahani likhna
tum khoon ko mere hi bnana syahi
asthi ko klm meri bna kr likhna
bahut 2 hardik bdhai
ग़ज़ल पर टिप्पणी देने लगा तो दिल ने ये बोला
ReplyDeleteग़ज़ल अच्छी लगीं मुझको बतौर-ए-खास लिख देना।
हुनर अपना कभी मैंने, कहीं गिरवी नहीं रक्खा,
ReplyDeleteइसी कारण मेरी झोली में नज़राना नहीं आया।
बहुत ख़ूब!
परिन्दे चार दाने भी, ख़ुशी से बाँट लेते हैं,
मगर इंसान को मिल-बाँट के खाना नहीं आया।
सच है सारी जंग ही इसी की है
गगन के वक्ष पे मधुरिम मिलन की प्यास लिख देना।
धरा का दर्द में डूबा हुआ, इतिहास लिख देना।
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति !
दोनों ही ग़ज़लें ख़ूबसूरत हैं
हुनर अपना कभी मैंने, कहीं गिरवी नहीं रक्खा,
ReplyDeleteइसी कारण मेरी झोली में नज़राना नहीं आया।
bahut sunder gazale hai .....badhai
nice
ReplyDeleteआप सभी विद्वज्जनों ने अपनी महत्वपूर्ण टिप्पणियों में उक्त ग़ज़लों के प्रति जो प्यार-दुलार उड़ेला है, उसके लिए हार्दिक आभार! मेरा एक शे’र आप... सबके लिए-
ReplyDeleteआपने प्यार हमको अपरिमित दिया।
शुक्रिया! शुक्रिया! शुक्रिया! शुक्रिया!
...........................................
नरेन्द्र भाई,
आपका शुक्रिया कि आपने ‘आखर कलश’ पर एक प्यारा-सा स्थान इन ग़ज़लों को भी दिया...! साथ ही, ईमेल से सूचित भी किया...वरना मुझे मालूम भी न हो पाता। इसके लिए भी आभार!
मैं इधर बीच अपनी एक किताब का फ़ाइनल प्रूफ़ देखने में व्यस्त चल रहा हूँ! त्रैमासिक ‘सरस्वती सुमन’ के ‘मुक्तक/रुबाई विशेषांक’ का काम पहले से ही हाथ में लिये हुए था। सो Net पर ज़्यादा नहीं आ पा रहा हूँ। इसे अन्यथा न लें!
सद्भावनाओं के साथ,
जितेन्द्र ‘जौहर’
JAUHAR SAHIB GAZAL KE JAUHAREE HAIN . EK SE BADH KAR HAIN UNKE SABHEE SHER . ACHCHHEE
ReplyDeleteSHAYREE KE LIYE UNKO MERA SALAAM .
जौहर साहब ,
ReplyDeleteगजलें बेहद उम्दा हैं..हर शेर में गहरे एहसास...बहुत बहुत बधाई आपको
बहुत ही उम्दा गज़लें. एक से बढ़ कर एक मिसरे जैसे मोती पिरोये हों.
ReplyDeleteजनाब नरेन्द्र साहिब
ReplyDeleteसादर प्रणाम
जनाब जितेन्द्र ‘जौहर’ साहिब की उम्दा गज़लों के लिये बधाई
एक शेइर तथा मिसारा-ए-सानी अपनी ओर से पेश-ए-खिदमत है ताकि गज़ल मुक्कमल हो जाए !
गज़ल के लिए तीन ,पांच ,सात ,नौ ,शेइर अनिवार्य हैं तथा इसी प्रकार एक मात्रा को निरस्त कर के अधिक से अधिक गज़ल
में शेइर कहे जा सकते हैं !
दूसरी बात प्यास ,इतिहास,एहसास का काफ़ीया आकाश नही हो साकता !
विदेशो में भगोड़े छुप गए जो लूट कर अस्मत
सभी अबलाएं रोती हैं उन्हे खत खास लिख देना
निरन्तर क़ैद में बुलबुल के घायल पंख कहते हैं
अभी है हौसला बाकी मेरा प्रयास लिख देना
धन्यवाद
कौन नहीं है जग में प्यासा इस अम्बर के नीचे
ReplyDeleteकिन्तु नहीं है ऐसा कोई स्नेह सुधा जो सींचे
अति दुर्लभ है सुधा को पाना सुधा पान अति दुर्लभ
इससे सुलभ काज नहीं कोई तनिक नहीं ये दुर्लभ
वाक् सुधा है तेरे मुख में अगर कहीं तू चाहे
जगत झुका ले निज चरणों में नई बना ले राहें
झुलस रही यहाँ की जनता सुन-सुन कर कटु वाणी
झुलस गयी अपनी धरती माँ झुलस गए सब ज्ञानी
वाक् सुधा की दो बूंदें ही होती जीवन दाता
वाक् सुधा से बन जाता है इक दूजे से नाता
मीठे बचन यदि बोलोगे सबके होगे प्यारे
नीरशता के इस तुंफा में बनोगे सबसे न्यारे|
----------सुरेश मिश्र-------
कौन नहीं है जग में प्यासा इस अम्बर के नीचे
ReplyDeleteकिन्तु नहीं है ऐसा कोई स्नेह सुधा जो सींचे
अति दुर्लभ है सुधा को पाना सुधा पान अति दुर्लभ
इससे सुलभ काज नहीं कोई तनिक नहीं ये दुर्लभ
वाक् सुधा है तेरे मुख में अगर कहीं तू चाहे
जगत झुका ले निज चरणों में नई बना ले राहें
झुलस रही यहाँ की जनता सुन-सुन कर कटु वाणी
झुलस गयी अपनी धरती माँ झुलस गए सब ज्ञानी
वाक् सुधा की दो बूंदें ही होती जीवन दाता
वाक् सुधा से बन जाता है इक दूजे से नाता
मीठे बचन यदि बोलोगे सबके होगे प्यारे
नीरशता के इस तुंफा में बनोगे सबसे न्यारे|
----------सुरेश मिश्र-------