बाल स्म्रतियां
बाल अनुरूप आलेख
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उसके पिता ने कई बार समझाया --बेटा घर में आया मेहमान भगवान् होता है I उससे नमस्ते करनी चाहिए । इससे वे खुश होते हैं ,आशीर्वाद देते हैं जिसमें उनका प्यार घुला रहता हैI इसके असर से बिगड़े काम भी बन जाते हैं Iपर वह बुत की तरह बैठा रहता ।
जैसे -जैसे धीरू बड़ा हो रहा था ,उसके पिता की चिंता भी बढ़ रही थी -कहीं धीरू स्वभाव से हमेशा के लिए दब्बू न बन जाये इएक दिन वे अपने मित्र से सलाह लेने गये । उनके ड्राइंगरूम में घुसते ही धीरू ने चुप्पी साध ली ।
-पिता ने कहा ,बेटा -अपने अंकल को नमस्ते करो ।
धीरू ने जल्दी से 'नमस्ते 'कहा और धम्म से सोफे में घुस गया। मन ही मन अपनी खैर मनाई-चलो जान छूटी ।
अंकल ने पूछा -क्या तुम नमस्ते का अर्थ जानते हो ?
-नहीं अंकल !धीरू ने जमीन पर आँखें गडाते हुए धीरे से कहा ।
-जब तुम किसी से नमस्ते करते हो तो उससे कुछ कहते हो ।
-मैं तो कुछ नहीं कहता ।
-कहने के लिए जरूरी नहीं कि मुंह खोला जायेI बिना बोले भी बहुत कुछ कहा जा सकता है । हाथ जोड़ते समय तुम कह रहे होते हो -आप बड़े हैं ,मैं छोटा हूं । मैं आपका आदर करता हूं ।
-मैं तो नमस्ते के अर्थ से अनजान था । मुझसे बार -बार कहा जाता -नमस्ते करो ,नमस्ते करो । पर कारण किसी ने नहीं बताया Iआपका तो मैं आदर करता हूं । आपको नमस्ते अवश्य करूंगा । धीरू ने बड़ी शर्मिन्दगी से कहा ।
-नमस्ते करने का भी एक कायदा होता है ,केवल कहने से ही काम नहीं चलता ।
-वह कायदा क्या है ?
-दोनों हाथों की हथेलियों को जोड़कर अपनी छाती के आगे लाना चाहिए और नमस्ते कहकर प्रणाम करना चाहिए ।
-इसका मतलब मेरी समझ से बाहर है ।
-इसका मतलब है हमारे दिलों का मिलन हो जाये । प्रेम और नम्रता से हाथ बढ़ाने का यह सबसे अच्छा तरीका है । अंकल ने समझाया ।
-अब तो मैं सबसे नमस्त्ते करूंगा ।
अंकल के चेहरे पर मुस्कान फैल गयी I धीरू के पिता भी मुस्करा रहे थे I अपने दोस्त की चतुराई पर इठलाते हुए वे घर लौट गये ।
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प्रेरणाप्रद कहानी है। अच्छी लगी।
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