(1)
प्रियतम के साथ
जब निश्चित रूप से
होता है मेरा मिलन,
तब मेरे लिये
मुझे कम लगता है
सुखमय स्वर्ग-भुवन ॥
*
उत्कण्ठा से विचलित था,
मेरा कोमल चञ्चल
धीरज-पल्लव टूट गया सर्वथा ॥
*
मेरी आँखें रातभर
प्रतीक्षा से बड़ी हो जाती थीं
अत्यन्त व्याकुल होकर ॥
*
चन्द्रमा के विरह से,
हृदय मेरा व्यथित हो उठता
प्रियतम के बिना वैसे ॥
*
कोयल की सुमधुर बोली,
तब लज्जा सहित विमोहित हो उठी
मेरी मौनता बड़ी भोली ॥
*
शुभ्र मुस्कान-शोभित
प्रेम-पुष्प उन्हें
तब अर्पण कर दिया मैंने ॥"
भाती अद्भुत उसकी उद्भावना ।
गूंगे मुख से बहाता
वाणी-गंगा की अमृत-धार ।
पाषाण के अंगों में जगाता
मञ्जुल सञ्जीवनी अपार ॥
लेखनी में उसकी छा जाती
सहस्र सूर्य-रश्मियों की लालिमा ।
अंशुमाला उज्ज्वलता फैलाती ;
हट जाती तिमिर-पटल की कालिमा ॥
वही कवि तो है क्रान्तदर्शी,
सार्थक उसकी रचना मर्मस्पर्शी ।
अतीन्द्रिय अतिमानस के राज्यों में विहर
भाती उसकी प्रतिभा सुमनोहर ॥
रस-रंगों के संगम की तरंगों से,
जीवन की विश्वासभरी उमंगों से
लिखता रहता कवि निहार चहुँ ओर,
कभी मधुर सरस, कभी तीता कठोर ॥
उसकी कुसुम-सी कोमल कलम
जब करने लगती सर्जना,
निकलती कभी संगीत संग गूँज छमछम,
फिर कभी स्वर्गीय वज्रों की गर्जना ॥"
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बादल तू ही, सुधा-जल तू ही्,
प्रभु हे ! हरि तू ही हरे सब घाम ।
हरेराम घनश्याम, हरि हे श्रीराम ॥ (१)
*
अन्दर तू ही, उपेन्दर तू ही,
सुन्दर तू ही, समुन्दर तू ही ।
प्रभु हे ! तेरा रूप नयनाभिराम ।
हरेराम घनश्याम, हरि हे श्रीराम ॥ (२)
*
निर्मल तू ही, समुज्ज्वल तू ही,
भक्त-आँखों का कज्जल तू ही ।
हरि हे ! तू ही सज्जन-शीश-ललाम ।
हरेराम घनश्याम, हरि हे श्रीराम ॥ (३)
*
भक्ति-सुधा का झरना बहे,
मन में रहे, ये रसना कहे ।
हरि हे ! सदा हरेकृष्ण हरेराम,
हरेराम घनश्याम, हरि हे श्रीराम ॥ (४)
*
इन्द्र-धनुषी सरगम तू ही,
जीवन-कला- सुसंगम तू ही ।
प्रभु हे ! तू ही ब्रह्म-नाद सुख-धाम ।
हरेराम घनश्याम, हरि हे श्रीराम ॥ (५)
*
ईश्वर तू ही, अनश्वर तू ही,
अम्बर तू ही, चराचर तू ही ।
प्रभु हे ! तुझे मेरा अनन्त प्रणाम ।
हरेराम घनश्याम, हरि हे श्रीराम ॥ (६)
*
जग-निर्माता, तू ही विधाता,
सबसे है तेरा अनमोल नाता ।
हरि हे ! तू ही आदि मध्य परिणाम ।
हरेराम घनश्याम, हरि हे श्रीराम ॥ (७)
*
तुझे मैं चाहूँ , तुझको बुलाऊँ,
तेरे बिन कैसे शोक भुलाऊँ ?
प्रभु हे ! फिर कैसे रहूँ निष्काम ?
हरेराम घनश्याम, हरि हे श्रीराम ॥ (८)
*
तेरे चरणों में खुशियाँ प्यारी,
तेरी माया है, ये दुनिया सारी ।
हरि हे ! ले भक्त-जनों को थाम ।
हरेराम घनश्याम, हरि हे श्रीराम ॥ (९)
*
जग में अकेला, तू ही निराला,
आनन्द-भरा सुबह का उजाला ।
प्रभु हे ! फिर तू ही शान्तिभरी शाम ।
हरेराम घनश्याम, हरि हे श्रीराम ॥ (१०)
*
हर दुःख में भी, रहे सुख में भी,
हृदय में गूँजे, मेरे मुख में भी ।
हरि हे ! तेरा मंगलमय शुभ नाम ।
हरेराम घनश्याम, हरि हे श्रीराम ॥ (११)
डॉ. हरेकृष्ण मेहेर
जन्म : ५ मई १९५६, सिनापालि (ओड़िशा)
पिता : कवि नारायण भरसा मेहेर
माता : श्रीमती सुमती देवी
मातृभाषा : ओड़िआ ।
राष्ट्रीयता : भारतीय ।
शिक्षा : रेवेन्शा महाविद्यालय कटक में अध्ययन पूर्वक उत्कल विश्वविद्यालय से बी.ए. संस्कृत आनर्स, प्रथम श्रेणी में प्रथम (१९७५) ; बनारस हिन्दु विश्वविद्यालय से तीन उपाधियाँ * * एम्.ए. संस्कृत, स्वर्णपदक प्राप्त (१९७७), पीएच्.डी. संस्कृत (१९८१), डिप्लोमा इन् जर्मन् (१९७९) ।
* खरियार साहित्य समिति, राजखरियार (१९९८)
(२) मातृगीतिकाञ्जलिः (मौलिक संस्कृत गीतिकाव्य)
(३) नैषध-महाकाव्ये धर्मशास्त्रीय-प्रतिफलनम्
(४) साहित्यदर्पण- अळङ्कार
(५) श्रीकृष्ण-जन्म
(६) श्रीरामरक्षा-स्तोत्र (शिवरक्षा-स्तोत्र सहित अनुवाद)
(७) शिवताण्डव-स्तोत्र
(८) विष्णु-सहस्र-नाम
(९) गायत्री-सहस्र-नाम
(१०) मनोहर पद्यावली (संपादित)
(११) स्वभावकवि गङ्गाधर मेहेर-कृत ओड़िआ “तपस्विनी” महाकाव्य का हिन्दी अनुवाद ।
(१२) स्वभावकवि गङ्गा्धर मेहेर-कृत "तपस्विनी" महाकाव्य का अंग्रेजी अनुवाद ।
ओड़िआ में : आलोचनार पथे, भञ्जीय काव्यालोचना, भञ्ज-साहित्यरे जगन्नाथ तत्त्व, घेन नैषध पराये, ओड़िआ रीति-साहित्यरे दार्शनिक-चिन्तन, निबन्धायन, कबिताबली, शिखण्डीकाव्य ।
अंग्रेजी में : Poems of the Mortals, Glory.
हिन्दी में : हिन्दी-सारस्वती, कुछ कविता-सुमन ।
कोशली में : कोशली गीतमाला ।
संस्कृत से हिन्दी : मातृगीतिकाञ्जलिः ।
संस्कृत से अंग्रेजी : शिवताण्डव-स्तोत्र ।
ओड़िआ से हिन्दी : कवि गङ्गाधर मेहेर-प्रणीत ‘प्रणय-वल्लरी’, ‘अर्घ्यथाली’, ‘कीचकवध’ काव्य ।
ओड़िआ से अंग्रेजी : कवि गङ्गाधर मेहेर-प्रणीत 'अर्घ्यथाली' ।
ओड़िआ से संस्कृत : तपस्विनी, प्रणयवल्लरी, अर्घ्यथाली ।
Sr.Reader & Head, Department of Sanskrit,
Government Autonomous College,
BHAWANIPATNA - 766001, Orissa (India)
Phone : +91-6670-231591
Mobile : +91-94373-62962
e-mail : meher.hk@gmail.com
बहुत सुन्दर रचनाएँ..बधाई !!
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