जन्म: १४ जुलाई १९७७
जन्म स्थान: परलीका, जिला हनुमानगढ़ राजस्थान
शिक्षा: एम ए राजस्थानी व राजनीति विज्ञान, बीजेएमसी
प्रकाशित कविता संग्रह: आंगन देहरी और दीवार, गीत-गुलशन व वीरों को सलाम
पुरस्कार-सम्मान: चंद्रसिंह बिरकाळी साहित्य पुरस्कार, सुगन साहित्य सम्मान, चौ दौलतराम सहारण
साहित्य एवं अवार्ड
पत्रकारिता: राजस्थान पत्रिका एवं दैनिक भास्कर के लिए संवाद संकलन
प्रसारण: आकाशवाणी से रचनाओं का निरंतर प्रसारण
संप्रति: अध्यक्ष, साहित्यग्राम संस्थान, परलीका। प्रदेश प्रचारमंत्री,अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति।
यात्रा: राजस्थानी भाषा की मान्यता के लिए प्रचार-प्रसार हेतु प्रदेश के आठ जिलों के हजारों गांवों में जनसंर्पक व पुस्तक विक्रय, मायड़भाषा रथयात्रा के साथ हनुमानगढ़ से दिल्ली तक राजस्थान के विभिन्न जिलों के गांवों कस्बों, शहरों से होते हुए रोमांचक यात्रा
पता: मु पो- परलीका, वाया- गोगामेड़ी, जिला- हनुमानगढ़ पिन- ३३५५०४
संर्पक सूत्र- ९८२९१-७६३९१
पिछली बरसात में
रोया
मेरा घर
छत को
आंख बना ।
अबके
आंधी में
उड़ गई
छप्पर की पगड़ी।
दीवारें
जर्जर
पर
कितनी है तगड़ी।
चांदनी
आंधी और बरसात
मेरे घर आने को
तरसते हैं सब
सूरज की पहली किरण
मेरे आंगन में आकर
खोलती है आंख।
चांदनी को
गोद में उठाकर
यही आंगन
रात भर करता है प्यार।
आंधी का झौंका
भाग कर घुसता है
मेरे घर में
बाबा के फटे कुत्र्ते की
हिलती बांह से
लगता है
आंधी हाथ मिला रही है
बाबा से।
आंधी
आंगन में घंटों
घूमचक्करी खेल कर
मेरे सोते हुए
मासूम बच्चों की
पुतलियों में
रुकने का प्रयास।
मेरी बीवी के गालों
बच्चों की जांघों
मां की झुर्रियों में
बरसात अपने रंग
खूब दिखाती है।
असल में
बरसात में मेरा घर
रोते हुए बच्चे को
अचानक आई
हंसी जैसा होता है।
तब मुझे लगता है
धूप-चांदनी
आंधी और बरसात
छोड़कर
नहीं जाना चाहते
मेरे घर को।
जिन्दगी
घास है
जिसे
वक्त का घोड़ा
चर रहा है
थोड़ा -थोड़ा।
(४) पुल
रात भर
गुजरती है दुनिया
इसके नीचे से
तीन सौ फिट लंबा
सात फिट चौड़ा
यह रेलवे पुल
शाम होते ही
उस भीखमंगे की
चारपाई बन जाता है।
अगर गालिब इसे
सोए हुए देखता तो
अपना शेर बदल देता ।
सूर तो
देख पाता नहीं
मगर इस पर
जरूर कोई
नई बात कहता।
यही पुल
होता अगर
कबीर के जमाने में
तो वह इसे
दुनिया की
सबसे बड़ी
खाट कहता ।
कोई फक्कड़
इससे भी आगे कहता;
इस पुल पर
सोने को
जीवन का
सबसे बडा+
ठाट कहता।
(५) छाते
वैसे तो
अपनी मर्जी के
मालिक हैं ये
पर हमारी नजरों में
आकाश में उड़ते
ये बादल
छाते हैं हमारे।
*******
-विनोद स्वामी
द्वारा श्री ओम पुरोहित 'कागद'
khoobsurat kavitaen h.
ReplyDeletebadhiyan aur shubhkamnaen.
VINOD SWAMI KEE SABHEE KAVITAAYEN ACHCHHEE HAIN.
ReplyDeleteDHERON BADHAAEEYAN.
sabhi kavitayen acchhi hain !
ReplyDeletekhas kar 'Zindagi" bahut acchhi lagi.
कमाल की रचनाएँ हैं, एक अलग अंदाज है विनोद जी की रचनाओ में, ताज़ी हवा के झोंके की तरह लगी ये रचनाएँ!
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