श्री नन्दकिशोर आचार्य का जन्म 31 अगस्त, 1945 को बीकानेर में जन्मे अनेक विधाओं में सृजनशील श्रीआचार्य को मीरा पुरस्कार, बिहारी पुरस्कार, भुवलेश्वर पुरस्कार, राजस्थान संगीत नाटक अकादमी एवं भुवालका जनकल्याण ट्रस्ट द्वारा सम्मानित किया गया है। महात्मा गाँधी अंतर्राष्ट्री हिन्दी विश्वविद्याल, वर्धा के संस्कृति विद्यापीठ में अतिथि लेखक रहे हैं ।
अज्ञेय जी द्वारा सम्पादित चौथा सप्तक के कवि नन्दकिशोर आचार्य के जल है जहां, शब्द भूले हुए, वह एक समुद्र था, आती है जैसे मृत्यु, कविता में नहीं है जो, रेत राग तथा अन्य होते हुए काव्य-संग्रह प्रकाशित हैं । रचना का सच, सर्जक का मन,अनुभव का भव, अज्ञेय की काव्य-तिर्तीर्ष, साहित्य का स्वभाव तथा साहित्य का अध्यात्म जैसी साहित्यालोचना की कृतियों के साथ-साथ आचार्य देहान्तर, पागलघर और गुलाम बादशाह जैस नाट्य-संग्रहों के लिये भी चर्चित रहे हैं । जापानी जेन कवि रियोकान के काव्यानुवाद सुनते हुए बारिश के अतिरिक्त आचार्य ने जोसेफ ब्रॉदस्की, ब्लादिमिर होलन, लोर्का तथा आधुनिक अरबी कविताओं का भी हिन्दी रूपान्तरण किया है । एम.एन. राय के न्यू ह्यूमनिज्म (नवमानवाद) तथा साइंस एण्ड फिलासफि (विज्ञान और दर्शन) का भी हिन्दी अनुवाद उन्होंने किया है ।
रचनात्मक लेखन के साथ-साथ्ा नन्दकिशोर आचार्य को अपने चिन्तनात्मक ग्रन्थों के लिए भी जाना जाता है । कल्चरल पॉलिटी ऑफ हिन्दूज और दि पॉलिटी इन शुक्रिनीतिसार (शोध), संस्कृति का व्याकरण, परम्परा और परिवर्तन(समाज- दर्शन), आधुनिक विचार और शिक्षा (शिक्ष-दर्शन), मानवाधिकार के तकाजे, संस्कृति की सामाजिकी तथा सत्याग्रह की संस्कृति के साथ गाँधी-चिन्तन पर केन्द्रित उन की पुस्तक सभ्यता का विकल्प ने हिन्दी बौद्धिक जगत का विशेष ध्यान आकर्षित किया है।
न गंतव्य चुना मैंने
न रास्ता
-प्रयोजन भी नहीं-
फिर भी यात्रा में हूँ |
ठीक कहते हो
चाहूँ तो रुक सकता हूँ यहीं
यह रुकना भी लेकिन
क्या होगा मेरा गंतव्य
लौट सकता हूँ
वह क्या होगी मेरी यात्रा?
मैंने कब चाही थी यात्रा-
कैसे चाहता?
यात्रा में हो कर ही तो
हुवा |
***
पानी कहता हूँ
कभी मुझे जब
कहनी होती प्यास
कहता हूँ सपना
कहना होता है जब सच
जो खो बैठा है आस
लेता हूँ तुम्हारा नाम
ढूँढ़ना होता है जब
ख़ुद का कोई मुक़ाम
पुकारता हूँ- ईश्वर
मृत्यु का करना होता
जब भी कोई बखान
व्यंजना में होता है सच
सच में नहीं होता जो
मिलने में जाता खो |
***
वह पत्ती
चित्र में लहरा रही है जो-
कौन बतलाये-
गिर रही है धरती की ओर
लहराती हुई
या उठ रही है
क्या चाहा था चित्रकार ने
पूछते ग़र सामने होता
पर वह नहीं है
जैसे नहीं है पेड़
न वह धरती
जिन के बीच लहराती है वह पत्ती
पेड़ के या धरती के होने के
कुछ मानी नहीं अभी
पूरी है पत्ती लहराते हुए
तनिक भी बिना यह सोचे
कहाँ से आ रही है वह
कहाँ को जा रही है
वह है
पत्ती है
और लहरा रही है
बस |
***
कवि प्रेम से भी अधिक
शब्द से प्रेम करता है
प्रेम मिल भी जाता है
कभी |
शब्द पर कभी नहीं मिलता
कविता कैसे हो तब?
रास्ता यही रहा केवल
कवि लिखे नहीं
कविता |
ख़ुद ही हो जाय
जिसे तुम लिखती हो
भाषा |
क्या पा लिया तुमने
मुझमे अपना शब्द?
***
आजकल अक्सर ही
सपने में भी
लिख जाती है कविता
जागते में खो जाती है
जागते में जो लिखता हूँ
वह सपना हो जाती है
निष्कर्ष यह निकला :
कविता होती तो है लेकिन
हो नहीं पाती है |
*****
(साभार- "चाँद आकाश गाता है")
डॉ. आचार्य जी की कवितायेँ पढ़ कर अच्छा लगा.. पहली कविता जीवन की यात्रा का प्रतीक बनकर उभरी है... पहली तीन पंक्तियाँ है सब कुछ कह जाती हैं... "न गंतव्य चुना मैंने
ReplyDeleteन रास्ता
-प्रयोजन भी नहीं-
फिर भी यात्रा में हूँ |"....
आखर कलश की उपलब्धि मानता हु कि इतने प्रतिष्टित कवियों को ब्लॉग की दुनिया में ला रहे हैं..
पुकारता हूँ- ईश्वर
ReplyDeleteमृत्यु का करना होता
जब भी कोई बखान
व्यंजना में होता है सच
सच में नहीं होता जो
मिलने में जाता खो |
बहुत सुंदर अनुभूति! नंद किशोर जी की कविताओं को पुन: यहां पढना पुन: उस कविता में होकर गुजरना है
बेहतरीन!
ReplyDeleteसभी रचनाएं एक से बढ़कर एक हैं, आखर कलश परिवार को इस प्रकाशन के लिए बधाई.
ReplyDeleteपाँचों कविताएँ बहुत भाव प्रवण..
ReplyDeleteचर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना कल मंगलवार 14 -12 -2010
ReplyDeleteको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.uchcharan.com/
फिर भी यात्रा में हूँ |
ReplyDeleteZeevan ki pagdandion par chalna hamari athak yatra ka sjeev chitr ..Bahut sunder