Wednesday, June 19, 2013

वह इक आम सी लड़की- शाहिद अख्तर की कविताएँ


सवालों के खोटे सिक्‍के


आंख का यह आसमान
क्‍यों इस तरह पिघलता है कि
ख्‍वाबों के खूंटों से
सरक-सरक कर
गिर जाती है नींद?

सदियों के इंतजार के बाद भी
क्‍यों तेरे मिलन की बेला
जमाने से उलझती हुई
सब्‍ज परबत की अलगनी पे
टंगी रह जाती है?
क्‍यों इंतजार की बास मारती
किसी कलुटा की तरह
अरमानों का पेट फुलाए
किसी मोरी के किनारे उकडूं बैठे
उलटियां करती रहती है जिंदगी?

रात के बंजर शिकनआलुदा बिस्‍तर पर
करवटें बदलते बदलते
क्‍यों वक्‍त अचानक चला जाता है
मुझे तन्‍हा छोड़
किसी रईस का बिस्‍तर गर्म करने ?

क्‍यों मेरा महबूब
तमाम मन्‍नतों के बावजूद
दिल की इस काल कोठरी पर
पोतता रहता है
शब-ए-हिज्र की स्‍याही?
क्‍यों जेहन की इस बोसीदा सी झोली में
खनखनाते रहते हैं
बस ऐसे ही सवालों के
ये खोटे बेकार सिक्‍के?
***



वह इक आम सी लड़की

वह इक आम सी लड़की
रोज सुबह सवरे
कॉफी का प्‍याला पीते हुए
कुछ सोचती जाती है
अपने बारे में
अपने सपनों के बारे में ...

वह सोचती रहती है
दुनिया जहान के बारे में
कालेज की राह में
घूरते लड़कों के बारे में
पड़ोस के उस लड़के के बारे में
जो उस बहुत भाता है
उसे देखने का मन तो करता है
लेकिन कभी कभार ही दिखता है
वह इक आम सी लड़की
गुपचुप सी बैठी
कॉफी के प्‍याले को देखती रहती है
काफी की चुस्कियों के संग
वह डालती रहती है अपने सपनों में रंग
ना जाने कितने रंगों से
सजाती है अपने सपने का संसार

वह इक आम सी लड़की
ना जाने कब से गुम है अपने ख्‍यालों में
दफत:अन, किचन से पुकारती है मां
हड़बड़ाती हुई उठती है
और छलक जाती है प्‍याले से काफी

कभी दामन पे काफी का दाग सहेजे
कभी बिखरे सपनों को दामन में समेटे
हर रोज दौड़ती रहती है
आंगन से किचन
और किचन से आंगन
वह इक आम सी लड़की
काफी के प्‍याले
और किचन के बीच
ना जाने कितनी दूरी है
वहां ही कैद हो जाती है
जिंदगी भर दौड़ती रह जाती है
वह इक आम सी लड़की
***

दफ्त:अन दिल मेरा गिरा

फिर कोई घटा उठी
फिर कोई सदा चली
फिर आकाश में बिछी
आवारा बादलों की कश्तियां
फिर यहां वहां बिखरा नूर तेरा
फिर कहीं रंगीन हुआ मंजर कोई
फिर आई नसीम-ए-सबा
लिए उनका पैगाम
फिर आई मश्‍क सी खुशबू तेरे बदन की
फिर गूंजा कहीं कोई नग्‍मा
फिर आंखों से छलका
पलकों पर ठहरा
ओस सा, आस का एक नन्‍हा कतरा
फिर क‍हीं एक हूक सी उठी
और ना जाने कहां गिरा
दिल मेरा, दफ्त:अन
***
- शाहिद अख्‍तर
बीआईटी, सिंदरी, धनबाद से केमिकल इं‍जीनियरिंग में बी. ई. मोहम्‍मद शाहिद अख्‍तर छात्र जीवन से ही वामपंथी राजनीति से जुड़ गए। अपने छात्र जीवन के समपनोपरांत आप इंजीनियर को बतौर कैरियर शुरू करने की जगह एक पूर्णकालिक कार्यकर्ता बन गए। पूर्णकालिक कार्यकर्ता की हैसियत से आपने बंबई (अब मुंबई) के शहरी गरीबों, झुग्‍गीवासियों और श्रमिकों के बीच काम किया। फिल्‍हाल आप प्रेस ट्रस्‍ट ऑफ इंडिया (पीटीआई) की हिंदी सेवा 'भाषा' में वरिष्‍ठ पत्रकार के रूप में कार्यरत हैं।
शाहिद अख्तर साहब समकालीन जनमत, पटना में विभिन्‍न समसामयिक मुद्दों के साथ-साथ अंग्रेजी में महिलाओं की स्थिति, खास कर मु‍स्लिम महिलाओं की स्थिति पर कई लेख लिख चुके हैं।
अनुवाद:
1. गार्डन टी पार्टी और अन्‍य कहानियां, कैथरीन मैन्‍सफील्‍ड, राजकमल प्रकाशन
2. प्राचीन और मध्‍यकालीन समाजिक संरचना और संस्‍कृतियां, अमर फारूकी, ग्रंथशिल्‍पी, दिल्‍ली
अभिरुचियाँ:
विविध विषयों पर पढ़ना, उनपर चर्चा करना, दूसरों के अनुभव सुनना-जानना और अपने अनुभव साझा करना, प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेना
संप्रति:
मोहम्‍मद शाहिद अख्‍तर
फ्लैट नंबर - 4060
वसुंधरा सेक्‍टर 4बी
गाजियाबाद - 201012
उत्‍तर प्रदेश

1 comment:

  1. शाहिद अख़्तर साहब को पढ़ना सदा से एक अनुभव होता है. इन तीनों रचनाओं की व्यापकता को भरपूर आकाश मिला है.
    सादर

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