Tuesday, December 21, 2010

दीपा जोशी की दो कविताएँ

संक्षिप्त परिचय
नाम : दीपा जोशी
जन्मतिथि : 7 जुलाई 1970
स्थान : नई दिल्ली
शिक्षा : कला व शिक्षा स्नातक, क्रियेटिव राइटिंग में डिप्लोमा और रेडियो राइटिंग में PG.
कार्यक्षेत्र : भारतवर्ष के हृदय ‘दिल्ली’ में सूचना व प्रसारण मंत्रालय में कार्यरत।
मासिक पत्रिकाओं व हिन्दी दैनिक में कुछ लघु लेखों व कविताओं का प्रकाशन।
अंग्रेज़ी में कुछ रचनाओं का प्रकाशन।
अन्य रुचि : संगीत सुनना व गुनगुनाना
वह एक फूल

खिला कहीं किसी चमन में
एक फूल सुन्दर
अनुपम थी उसकी आभा
विस्मयी थी उसकी रंगत

इतना सुगंधित कि
हर मन हर्षा जाता
अपने गुणों से
वह प्रकर्ति का उपहार था
कहलाता

ज्यों ज्यों समय बीता
वह पुष्प और महका
अपने सौन्दर्य से
उस बगिया का
केन्द्र बन बैठा

तभी एक रात
भयानक तूफान आया
अपने बल से जिसने
चट्टानों को भी सरकाया
तूफान के जोर को
वह फूल भी न सह पाया
पलक झपकते ही
धूल में जा समाया

मन चमन के दुर्भाग्य पर
पछताया
क्यों इतना सुन्दर कुसुम
वह न सम्भाल पाया
काल के जोर को
कोई
क्यूँ न थाम पाया

तभी चमन ने
अपनी महक से
जीवन का अर्थ समझाया
कुछ पल ही सही
उस कुसुम ने
चमन को महकाया
जब तक जिया
सभी के मन को लुभाया
अल्प ही सही
उसका जीवन सच्चा जीवन कहलाया
**

भ्रष्टाचार

मिला निमंत्रण
एक सभा से
आकर सभा को
सम्बोधित कीजिए
अपनी सरल व सुलझी
भाषा में
भ्रष्टाचार जैसी बुराई
पर कुछ बोलिए।

ऐसे सम्मान का था
ये प्रथम अवसर
गौरव के उल्लास में
हमने भी हामी भर दी
समस्या की गहनता को
बिना जाने समझे
हमने इक नादानी कर दी।

वाह वाही की चाह में
हमने सोचा
चलो भाषण की
रूप रेखा रच ले
अखबारों व पत्रिकाओं में
इस विषय में
जो कुछ छपा हो
सब रट लें।

जितना पढ़ते गए
विषय से हटते चले गएजो एक आध
मौलिक विचार थे भी
वो मिटते चले गए।

लगने लगा हमें
कि ये हमने क्या कर दिया
अभिमन्यु तो भाग्य से फँसा था
हमने चक्रव्यूह खुद रच लिया ।

देखते ही देखते
आ पहुँचा वो दिन
किसी अग्नि परीक्षा से
जो नही था अब भिन्न
तालियों की
गड़गड़हट से
हुआ हमारा अभिनंदन
घबराहट में र्धैय के टूटे सभी बंधन
ना जाने कैसे
रटा हुआ
सब भूल गए
कहना कुछ था
और कुछ कह गए।

मन के किसी कोने में
छिपे उदगार बोल उठे
खुद को मासुम
व सम्पू्र्ण समाज को
भ्रष्ट बोल गए।

उस दोषारोपण ने
सभा का बदल दिया रंग
उभर आई भीड़
धीरे धीरे होने लगी कम।

देखते ही देखते
वहाँ रह गए बस हम
और इस तरह
दुखद हुआ
उस महासभा का अंत
**

3 comments:

  1. vyng kvit me shilp v kthy ka nirvhn thik ho gya hai bdhai pr doosri kvita abhi bahut ksavt mangti hai kai jgh matr tuk bndi njr aati hai jis se kvita me hlka pn aagya hai
    nirntr abhyas se yh apne aap thik ho jayga nirntr abhyas kren meri shubhkamnyan hain

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  2. दीपा जोशी जी की दोनों कवितायें सहज, सरल और सशक्त अभिव्यक्तियाँ हैं..

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  3. कवितायें स्‍पष्‍ट भाव लिये हैं, पहली कविता आभास दे रही थी कि फूल प्रतीकात्‍मक है एक बेटी का लेकिन अंत में यह फूल ही रह गया।

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