सुशीला शिवराण (श्योराण) |
कार्यक्षेत्र- अध्यापन एवं हिन्दी साहित्य, कविता पठन एवं लेखन। पिछ्ले २० वर्षों से अध्यापन के क्षेत्र में। मुंबई और कोच्ची में नेवल पब्लिक स्कूल, बिरला पब्लिक स्कूल, पिलानी, डी.ए.वी. गुड़गाँव से अपनी शिक्षण-यात्रा करते हुए आजकल सनसिटी वर्ल्ड स्कूल, गुड़गाँव में अध्यापनरत। इसके अतिरिक्त खेलों एवं भ्रमण में रुचि। कविताएँ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित।
तुंग शिखर
तिरते हैं बादल
ज्यों पाखी दल
२)
तारा-चूनर
सीली रेत बिछौना
रही सुध ना!
३)
रोशन जहां
उम्मीदों का दीप तू
खो गया कहाँ?
४)
सर्वस्व वारे
स्व खो हमें सँवारे
माँ, और कौन?
५)
स्टापू-लंगड़ी
लुढ़के कुछ कंचे
यादों की गली !
६)
रचाते ब्याह
सजा गुड्डे-गुड़िया
हम बाराती !
७)
तुम्हारे बिन
कतरा कर खुशी
कहती विदा!
८)
बसा मुझ में
चाहत मिलन की
कस्तूरी प्रीत!
९)
ख्वाहिशें मेरी
भटकें दिन-रैन
तुम बेपीर !
१०)
कजरा नैन
मृगी -सी चितवन
छला है जग !
***
सुंदर हाइकु ! हाइकु " तारा-चूनर/ सीली रेत बिछौना/ रही सुध न " प्रकृति-सौंदर्य से अभिभूत मन की अभिव्यक्ति है; तो " तुम्हारे बिन / कतराकर ख़ुशी/ कहती विदा" अनुपस्थित प्रिय के विछोह की अवस्था को प्रकट करता है; " बसा मुझमें / चाहत मिलन की / कस्तूरी प्रीत " प्रेम पा लेने-लुटा देने को तत्पर हृदय की आतुरता दर्शाता है; " ख्वाहिशें मेरी / भटकें दिन-रैन / तुम बेपीर " गिले-शिकवे के अंदाज़ में प्रिय की अन्यमनस्कता उदासीनता पर तंज़ कसता है ! इन सभी ने मन मोह लिया !
ReplyDeleteसुशीला जी के सभी हाइकु बहुत भावपूर्ण हैं , ताज़गी लिये हुए ।
ReplyDeleteहाइकु का संज्ञान लेने और विसतृत टिप्पणी के लिए आपका ह्रदय से आभार। आप जैसे विद्व जन की टिप्पणी मन को संबल दे कर प्रोत्साहन का काम करती है। शुक्रिया।
ReplyDeletebahut umda haiku rache hain Shushila ji ne unhe hardik shubhkamnayen
ReplyDeleteबहुत सुंदर हाइकू, सुशीला जी !
ReplyDeleteइतने महिनों के विराम के पश्चात आखर कलश को फिर से पढ़ना सुखद है....आशा है इस बार इस यात्रा में कोई अवरोध नहीं आयेगा...
ReplyDeleteसुशीला जी, बधाई आपको...सभी हाइकू बड़े ही अच्छे हैं।
स्टापू-लंगड़ी
ReplyDeleteलुढ़के कुछ कंचे
यादों की गली !
Sushila ji ke sabhi haiku pathniy hain.
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