जितना भी जला दे
सूरज
सुखा दे पवन
सूखी-फटी पपड़ियों में
झलक आता है
धरती का प्यार
जल के लिए-
गहरे कहीं जज़्ब है जो।
अँधेरा घना हो कितना
देख सकता हूँ मैं
उसको
कभी अन्धा लेकिन कर देता है
सूरज
कभी पाँखें जला देता है
बेहतर है मेरी अँधेरी रात
न चाहे रोशनी दे वह
दीखती रहती है
आकाश में गहरे कहीं मेरे
वह तारिका मेरी।
फूल सपना है
धरती का
आकाश की ख़ातिर
निस्संग है आकाश पर
खिल आने से उस के
जो एक दिन झर जाएगा
चुपचाप
धरती सँजोयेगी उसे
मुर्झाये सपनों से ही अपने
ख़ुद को सजाती है वह
जिनमें बसा रहता है
उस का खिलना
सपनों के खिलने-मुर्झाने की
गाथा है धरती-
अपने आकाश की ख़ातिर।
कभी वह फडफडाता है
झूमता है कभी-
फडफडाना-झूमना उस का
पर उस पर नहीं
-हवा पर है
झूमती है कभी
कभी जो फडफडाती है
हवा नहीं
पत्ता है लेकिन वह
-झर ही जाना है जिस को-
अपने झरने में भी लेकिन
हवा की मौज पर
लहराता, इतराता।
शब्द को
लय कर लेती हुई
ख़ुद में
ख़ामोशी क्या वही होती है
उस में जो खिल आती है
क्या हो जाता होगा
उस स्मृति का
शब्द के साथ जो
उस में घुल जाती है
तुम्हारा रचा शब्द हूँ
जब
और नियति मेरी
तुम्हारी लय हो जाना है-
ख़ामोशी हो चाहे
स्मृति मेरी
घुल रही है तुम में।
***
सन्दर्भ- केवल एक पत्ती ने- जितना दीखता है खिला
(वाग्देवी प्रकाशन, बीकानेर)
अज्ञेय जी द्वारा सम्पादित चौथा सप्तक के कवि नन्दकिशोर आचार्य के जल है जहां, शब्द भूले हुए, वह एक समुद्र था, आती है जैसे मृत्यु, कविता में नहीं है जो, रेत राग तथा अन्य होते हुए काव्य-संग्रह प्रकाशित हैं । रचना का सच, सर्जक का मन,अनुभव का भव, अज्ञेय की काव्य-तिर्तीर्ष, साहित्य का स्वभाव तथा साहित्य का अध्यात्म जैसी साहित्यालोचना की कृतियों के साथ-साथ आचार्य देहान्तर, पागलघर और गुलाम बादशाह जैस नाट्य-संग्रहों के लिये भी चर्चित रहे हैं । जापानी जेन कवि रियोकान के काव्यानुवाद सुनते हुए बारिश के अतिरिक्त आचार्य ने जोसेफ ब्रॉदस्की, ब्लादिमिर होलन, लोर्का तथा आधुनिक अरबी कविताओं का भी हिन्दी रूपान्तरण किया है । एम.एन. राय के न्यू ह्यूमनिज्म (नवमानवाद) तथा साइंस एण्ड फिलासफि (विज्ञान और दर्शन) का भी हिन्दी अनुवाद उन्होंने किया है ।
रचनात्मक लेखन के साथ-साथ्ा नन्दकिशोर आचार्य को अपने चिन्तनात्मक ग्रन्थों के लिए भी जाना जाता है । कल्चरल पॉलिटी ऑफ हिन्दूज और दि पॉलिटी इन शुक्रिनीतिसार (शोध), संस्कृति का व्याकरण, परम्परा और परिवर्तन(समाज- दर्शन), आधुनिक विचार और शिक्षा (शिक्ष-दर्शन), मानवाधिकार के तकाजे, संस्कृति की सामाजिकी तथा सत्याग्रह की संस्कृति के साथ गाँधी-चिन्तन पर केन्द्रित उन की पुस्तक सभ्यता का विकल्प ने हिन्दी बौद्धिक जगत का विशेष ध्यान आकर्षित किया है ।
naye andaj me saji sabhi kavitayen.
ReplyDeletebahut hi sunder
aapko bahut bahut badhai
saader
rachana
Sabhi rachnayen bahut achchhi lagin hardik badhai..
ReplyDeletesabhi rachnaayen behtareen, shubhkaamnaayen.
ReplyDeleteDr Nandkishor jee ki itni khubsurat rachnaen padne ko milin iske liye badhai deta hoon aapko tatha Nandkishor jee ko.
ReplyDeleteफूल सपना है
ReplyDeleteधरती का
आकाश की ख़ातिर
निस्संग है आकाश पर
खिल आने से उस के
जो एक दिन झर जाएगा
चुपचाप
बहुत ही अद्भुत कहा है। नंदकिशोर आचार्य को पढना मुझे हमेशा ही आंदोलित करता रहा है। कितनी गहन अनुभूति और गूढ रहस्य की परतें उनकी छोटी छोटी कविताओं में
अँधेरा घना हो कितना
ReplyDeleteदेख सकता हूँ मैं
उसको
कभी अन्धा लेकिन कर देता है
सूरज
..........बहुत अच्छी कवितायेँ हैं
गंभीर चिंतन व चेतना का प्रभाव कविताओं पर स्पष्ट है।
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