मोहम्मद शाहिद अख्तर
बीआईटी, सिंदरी, धनबाद से केमिकल इंजीनियरिंग में बी. ई. मोहम्मद शाहिद अख्तर छात्र जीवन से ही वामपंथी राजनीति से जुड़ गए। अपने छात्र जीवन के समपनोपरांत आप इंजीनियर को बतौर कैरियर शुरू करने की जगह एक पूर्णकालिक कार्यकर्ता बन गए। पूर्णकालिक कार्यकर्ता की हैसियत से आपने बंबई (अब मुंबई) के शहरी गरीबों, झुग्गीवासियों और श्रमिकों के बीच काम किया। फिल्हाल आप प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया (पीटीआई) की हिंदी सेवा 'भाषा' में वरिष्ठ पत्रकार के रूप में कार्यरत हैं।
शाहिद
अख्तर साहब समकालीन जनमत, पटना में विभिन्न समसामयिक मुद्दों के साथ-साथ
अंग्रेजी में महिलाओं की स्थिति, खास कर मुस्लिम महिलाओं की स्थिति पर कई
लेख लिख चुके हैं।
अनुवाद:
1. गार्डन टी पार्टी और अन्य कहानियां, कैथरीन मैन्सफील्ड, राजकमल प्रकाशन
2. प्राचीन और मध्यकालीन समाजिक संरचना और संस्कृतियां, अमर फारूकी, ग्रंथशिल्पी, दिल्ली
अभिरुचियाँ:
विविध विषयों पर पढ़ना, उनपर चर्चा करना, दूसरों के अनुभव सुनना-जानना और अपने अनुभव साझा करना, प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेना
संप्रति:
मोहम्मद शाहिद अख्तर
फ्लैट नंबर - 4060
वसुंधरा सेक्टर 4बी
गाजियाबाद - 201012
उत्तर प्रदेश
कविताएँ
(1)
खुश्क
खबरों के बीच
बोसीदा
अख्बारों के पन्नों से
झांकती,
झलकती
ये जिंदगी
हमें
क्या क्या
ना कह जाती है
भूख से
मरने की खबर
महज दो
दाने के लिए
बेटियों के
सौदे की खबर
थोड़े से
दहेज की खातिर
किसी दोशीजा
के जलने की खबर
किसी
रईसजादे की बेशकीमती कार के नीचे
किसी
फुटपथिए के कुचले जाने की खबर
और ऐसी
ढेर सारी घटनाएं
लेकिन क्या
ये सिर्फ खबर हैं
अख्बार
के किसी कोने को
भरने के
लिए?
भूख और
गरीबी से
बदरंग बेहाल
होती जिंदगी
चीखती
चिल्लाती पुकारती है
लेकिन हम
तो बस खबरनवीस हैं
मास्टर
ब्लास्टर के गुनगाण
और सहस्राब्दी
के महानायक के बखान में
कलम
घसीटते रहते हैं...
***
(2)
काश तुम्हारा दिल कोई अखबार होता
और मैं रोज खोलता उसे
कभी सुबह, कभी शाम
हाथ की लकीरों से ले कर
माथे की शिकन तक
शुरू से आखिर तक
हर्फ-दर-हर्फ सब पढ़ जाता
और जान लेता
सारा हाल-अहवाल तुम्हारा
काश तुम्हारा दिल कोई अखबार होता
पता चल जाता मुझे
कि आज कितने खुश हो तुम
या कितने उदास हो
और कितने मायूस हो तुम
कि आज तुम्हारे दिल की वादियों में
खिले हैं खुशी के फूल कितने
कि आज तुमने कोई तीर मारा है
कि आज तुम कुछ बुझे-बुझे से हो
कि किसी की याद, किसी का गम
आज तुम्हें सालता है
कि आज अपनी पेशानी की शिकनों से
लिखी है दर्द की कौन सी दास्तान तुमने
काश तुम्हारा दिल कोई अखबार होता
कि तुम्हारे उदास होने की
तुम्हारे गम की
और तुम्हारी परेशानियों की
खबरें झूठी निकलती
सियासी नेताओं के वादों की तरह
’इंडिया शाइनिंग’ की खबरों की
तरह...
***