Sunday, October 9, 2011

सतीश छिम्पा की कविताएँ

समकालीन कवि सतीश छिम्पा के काव्य संसार में प्रेमानुभूति की गहराइयाँ हैं और इन गहराइयों में डूबी प्रेम की कथा लहर दर लहर उठकर अथाह से अनंत तक का सफ़र करती हुई अनकहे, अनछुवे और अलौकिक प्रेम की कथा का अनंत सागर बन जाती हैं. मुलाहिजा फरमाईयेगा....

१. एक लडकी

एक लड़की
सो रही है मेरे भीतर
गहरी नींद में
रात तक के लिए |
वह-
उठ जाएगी
आधी रात को
मेरे भीतर
कुछ सपनों
कुछ यादों के साथ|
तब-
मैं सो जाऊँगा
और
लड़की पढ़ेगी
पाब्लो नेरुदा की कविताएँ
जो लिखी थीं उसने
हमारे लिए ही
चिली के पहाड़ों पर बैठकर |
यादें खेलेंगी आँगन में
और सपने
सो जायेंगे
ठन्डे पड़े
चूल्हे के पास |

२. इस अँधेरे में

रात गहरी है
खामोश |
तुम आओगी तो दिखाऊँगा तुम्हें
अँधेरे के
जादुई तमाशे |
तुम्हारे सुनहरे बालों में टांक दूंगा
रात का स्याहपन
और-
माथे को हल्के से चूम
उतार दूंगा
रात की ठंडी गहराईयों में
तुम्हारी देह की खुशबू से
भू-मंडल को
नहला दूंगा
घोल दूंगा तुम्हें
रात के इस अँधेरे में
अपनी देह के साथ |

३. बुल्लेशाह

सदियाँ गुज़र गईं
तब कहीं
आज उतारा धरती पर
बुल्लेशाह
टहला मेरे भीतर
गुनगुनाता काफीयाँ
रच दी
कुछ और नज़्में
मैं देखता एकटक
अपलक आभा !
आँखों में बस गया
आभे का विस्तार
संग रमता थार
प्यार
अपार !

४. प्रीत के शब्द

शब्द-
जहां थक जाते हैं
हारते हैं
एक
सन्नाटा !
निःशब्द
मैं पसर जाता चहुँदिश |

बातें-
फिर भी होतीं
आँखों की भाषा
प्रीत के शब्दों में |
***
सतीश छिम्पा
पुराना वार्ड न.३
त्रिमूर्ति के पीछ, सूरतगढ़ (राजस्थान)
दूरभाष- ०९८२९६-७६३२५ 

Monday, October 3, 2011

डॉ. नंदकिशोर आचार्य की कविताएँ

१. जल के लिए

जितना भी जला दे

               सूरज

सुखा दे पवन

सूखी-फटी पपड़ियों में

         झलक आता है

धरती का प्यार

जल के लिए-

गहरे कहीं जज़्ब है जो।



२. मेरी अँधेरी रात

अँधेरा घना हो कितना

देख सकता हूँ मैं

           उसको

कभी अन्धा लेकिन कर देता है

                            सूरज

कभी पाँखें जला देता है

बेहतर है मेरी अँधेरी रात

न चाहे रोशनी दे वह

दीखती रहती है

आकाश में गहरे कहीं मेरे

वह तारिका मेरी।



३. सपना है धरती का

फूल सपना है

    धरती का

आकाश की ख़ातिर



निस्संग है आकाश पर

खिल आने से उस के

जो एक दिन झर जाएगा

                  चुपचाप



धरती सँजोयेगी उसे

मुर्झाये सपनों से ही अपने

ख़ुद को सजाती है वह

जिनमें बसा रहता है

उस का खिलना



सपनों के खिलने-मुर्झाने की

गाथा है धरती-

अपने आकाश की ख़ातिर।



४. हवा पर है

कभी वह फडफडाता है

झूमता है कभी-

फडफडाना-झूमना उस का

पर उस पर नहीं

-हवा पर है

झूमती है कभी

कभी जो फडफडाती है



हवा नहीं

पत्ता है लेकिन वह

-झर ही जाना है जिस को-

अपने झरने में भी लेकिन

हवा की मौज पर

लहराता, इतराता।



५. ख़ामोशी हो चाहे

शब्द को

लय कर लेती हुई

            ख़ुद में

ख़ामोशी क्या वही होती है

उस में जो खिल आती है



क्या हो जाता होगा

उस स्मृति का

शब्द के साथ जो

उस में घुल जाती है



तुम्हारा रचा शब्द हूँ

                  जब

और नियति मेरी

तुम्हारी लय हो जाना है-

ख़ामोशी हो चाहे

स्मृति मेरी

घुल रही है तुम में।

***
सन्दर्भ- केवल एक पत्ती ने- जितना दीखता है खिला

(वाग्देवी प्रकाशन, बीकानेर)

श्री नन्‍दकिशोर आचार्य का जन्‍म 31 अगस्‍त, 1945 को बीकानेर में जन्‍मे अनेक विधाओं में सृजनशील श्री आचार्य को मीरा पुरस्‍कार, बिहारी पुरस्‍कार, भुवलेश्‍वर पुरस्‍कार, राजस्‍थान संगीत नाटक अकादमी एवं भुवालका जनकल्‍याण ट्रस्ट द्वारा सम्‍मानित किया गया है। महात्‍मा गाँधी अंतर्राष्ट्री हिन्‍दी विश्वविद्याल, वर्धा के संस्कृति विद्यापीठ में अतिथि लेखक रहे हैं ।
अज्ञेय जी द्वारा सम्‍पादित चौथा सप्‍तक के कवि नन्‍दकिशोर आचार्य के जल है जहां, शब्‍द भूले हुए, वह एक समुद्र था, आती है जैसे मृत्यु, कविता में नहीं है जो, रेत राग तथा अन्‍य होते हुए काव्‍य-संग्रह प्रकाशित हैं । रचना का सच, सर्जक का मन,अनुभव का भव, अज्ञेय की काव्‍य-तिर्तीर्ष, साहित्‍य का स्‍वभाव तथा साहित्‍य का अध्‍यात्‍म जैसी साहित्‍यालोचना की कृतियों के साथ-साथ आचार्य देहान्‍तर, पागलघर और गुलाम बादशाह जैस नाट्य-संग्रहों के लिये भी चर्चित रहे हैं । जापानी जेन कवि रियोकान के काव्‍यानुवाद सुनते हुए बारिश के अतिरिक्‍त आचार्य ने जोसेफ ब्रॉदस्‍की, ब्‍लादिमिर होलन, लोर्का तथा आधुनिक अरबी कविताओं का भी हिन्‍दी रूपान्‍तरण किया है । एम.एन. राय के न्‍यू ह्यूमनिज्म (नवमानवाद) तथा साइंस एण्‍ड फिलासफि (विज्ञान और दर्शन) का भी हिन्‍दी अनुवाद उन्‍होंने किया है ।
रचनात्‍मक लेखन के साथ-साथ्‍ा नन्‍दकिशोर आचार्य को अपने चिन्‍तनात्‍मक ग्रन्‍थों के लिए भी जाना जाता है । कल्‍चरल पॉलिटी ऑफ हिन्‍दूज और दि पॉलिटी इन शुक्रिनीतिसार (शोध), संस्कृति का व्‍याकरण, परम्‍परा और परिवर्तन(समाज- दर्शन), आधुनिक विचार और शिक्षा (शिक्ष-दर्शन), मानवाधिकार के तकाजे, संस्कृति की सामाजिकी तथा सत्‍याग्रह की संस्कृति के साथ गाँधी-चिन्‍तन पर केन्द्रित उन की पुस्‍तक सभ्‍यता का विकल्‍प ने हिन्‍दी बौद्धिक जगत का विशेष ध्‍यान आकर्षित किया है ।