Thursday, July 29, 2010

डा. सुभाष राय की कविताएँ

रचनाकार परिचय

जन्म एक जनवरी 1957 को  उत्तर प्रदेश में स्थित मऊ नाथ भंजन जनपद के गांव बड़ागांव में। शिक्षा काशी, प्रयाग और आगरा में।  आगरा विश्वविद्यालय के ख्यातिप्राप्त संस्थान के. एम. आई. से हिंदी साहित्य और भाषा में स्रातकोत्तर की उपाधि। उत्तर भारत के प्रख्यात संत कवि दादू दयाल की कविताओं के मर्म पर शोध के लिए डाक्टरेट की उपाधि। कविता, कहानी, व्यंग्य और आलोचना में निरंतर सक्रियता। देश की प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिकाओं, वर्तमान साहित्य, अभिनव कदम,अभिनव प्रसंगवश, लोकगंगा, आजकल, मधुमती, समन्वय, वसुधा, शोध-दिशा में रचनाओं का प्रकाशन। ई-पत्रिका अनुभूति, रचनाकार, कृत्या  और सृजनगाथा में कविताएं। कविता कोश, काव्यालय, गर्भनाल और महावीर में भी कवितयें। अंजोरिया वेब पत्रिका पर भोजपुरी में रचनाएं। फिलहाल पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय। आवास-158, एमआईजी, शास्त्रीपुरम, आगरा ( उत्तर प्रदेश)|
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1. मुझमें तुम रचो
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सूरज उगे, न उगे
चांद गगन में
उतरे, न उतरे
तारे खेलें, न खेलें

मैं रहूंगा सदा-सर्वदा
चमकता निरभ्र
निष्कलुष आकाश में
सबको रास्ता देता हुआ
आवाज देता हुआ
समय देता हुआ
साहस देता हुआ

चाहे धरती ही
क्यों न सो जाय
अंतरिक्ष क्यों न
जंभाई लेने लगे
सागर क्यों न
खामोश हो जाय

मेरी पलकें नहीं
गिरेंगी कभी
जागता रहूंगा मैं
पूरे समय में
समय के परे भी

जो प्यासे हों
पी सकते हैं मुझे
अथाह, अनंत
जलराशि हूं मैं
घटूंगा नहीं
चुकूंगा नहीं

जिनकी सांसें
उखड़ रही हों
टूट रही हों
जिनके प्राण
थम रहे हों
वे भर लें मुझे
अपनी नस-नस में
सींच लें मुझसे
अपना डूबता हृदय
मैं महाप्राण हूं
जीवन से भरपूर
हर जगह भरा हुआ

जो मर रहे हों
ठंडे पड़ रहे हों
डूब रहे हों
समय विषधर के
मारक दंश से आहत
वे जला लें मुझे
अपने भीतर
लपट की तरह
मैं लावा हूं
गर्म दहकता हुआ
मुझे धारण करने वाले
मरते नहीं कभी
ठंडे नहीं होते कभी

जिनकी बाहें
बहुत छोटी हैं
अपने अलावा किसी को
स्पर्श नहीं कर पातीं
जो अंधे हो चुके हैं लोभ में
जिनकी दृष्टि
जीवन का कोई बिम्ब
धारण नहीं कर पाती
वे बेहोशी से बाहर निकलें
संपूर्ण देश-काल में
समाया मैं बाहें
फैलाये खड़ा हूं
उन्हें उठा लेने के लिए
अपनी गोद में

मैं मिट्टी हूं
पृथ्वी हूं मैं
हर रंग, हर गंध
हर स्वाद है मुझमें
हर क्षण जीवन उगता
मिटता है मुझमें
जो चाहो रच लो
जीवन, करुणा
कर्म या कल्याण

मैंने तुम्हें रचा
आओ, अब तुम
मुझमें कुछ नया रचो

2. समय
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फूल के खिलने

और मुरझाने की

संधि पर


खड़ा रहता है

समय

पूरी तरह

खिला हुआ

एक फूल

मुरझाता है

और समय

दूसरी संधि पर

खिल उठता है





मौसम के दो चित्र
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1. गुस्साया  सूरज
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सुबह का सूरज
अच्छा लगता है
लाल गुब्बारे की तरह
आसमान में उठता हुआ
अपनी मीठी रोशनी में
डुबोता पेड़ों को, फ़सलों को
झरता है खिड़की से
मेरे कमरे में
और फैल जाता है
बिस्तरे पर, फर्श पर

पर नहीं रहता वह
इसी तरह शांत और प्यारा
बहुत देर तक

धरती को नंगी  देख
तमतमा उठता है वह 
आगबबूला हो उठता है

क्यों काटे गये पेड़
क्यों रौंदे गये पहाड़
क्यों गंदी की गयीं नदियाँ
किसने सूर्य से मिले
वरदान को बदल
डाला भयानक अभिशाप में
अपने पागल स्वार्थ में

गुस्साया सूरज धरती के
पास आना चाहता है
बिलकुल पास
उसे सहलाना चाहता है
चूमना चाहता है
उसे वापस अपनी
दहकती गोंद में
उठा लेना चाहता है

जल रहा है सूरज

आदमी कब तक भागेगा
सूरज के ताप से
सूरज के क्रोध से


2. ओ बादल
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जलते अधरों पर गिरीं बूंदें
तो छनछ्ना कर
उड़ गयीं पल भर में
इन्तजार में दहक रहा था मन
तन से उठ रहा था धुआं
नसों में बह रहा था लावा

ओ बादल तुम आए

शीतल बयार की तरह
मेरे आँगन में बरस गए
खूब भीगा मैं पहली बार
इस मौसम में
इतना भींगा कि भाप बन गया

पर अभी ठहरना कुछ दिन

कुछ और दिन रहना
मेरे आस-पास
तब तक
जब तक मैं भाप से
फिर चमकती
बूंदों में नहीं बदल जाता

***

Monday, July 26, 2010

शाहिद अख्‍तर की दो कविताएँ
















चंद शब्‍दों से नहीं बनती है कविता

महज चंद शब्‍दों और चंद बिंबों से
नहीं बनती है कविता
कविता कोई भात नहीं
कविता कोई सब्‍जी नहीं
कि शब्‍दों को धोया
बिंबों का मसाला डाला
और चढ़ा दिया भावनाओं के
चूल्‍हे की आंच पर।
कविता भिन्‍न है
बहुत भिन्‍न है
आप अगर चाहते हैं
उसे किसी फार्मुले में बांधना
तो कोई ठीक नहीं कि वह तोड़ दे बंधन
कोई हैरत नहीं कि आप कहना चाहें कुछ
और वह कह दे कुछ और बातें

आखिर जब महंगाई आसमान पर हो
और शहर पर भूख का शासन
और हर तरफ मचा हो हाहाकार
शब्‍द और कविता
किसी अभिनेत्री के नितंबों का
राग तो अलाप नहीं सकती
उनके कमनीय कुचों का
गुणगान तो नहीं कर सकती
महज चंद शब्‍दों और चंद बिंबों से ...

---
तितलियाँ

रात सोने के बाद
तकिए के नीचे से सरकती हुई
आती हैं यादों की ति‍तलियां
तितलियां पंख फड़फड़ाती हैं
कभी छुआ है तुमने इन तितलियों को
उनके खुबसूरत पंखों को
मीठा मीठा से लमस हैं उनमें
एक सुलगता सा एहसास
जो गीली कर जाते हैं मेरी आंखें

तितलियां पंख फड़फड़ती हैं
तितलियां उड़ जाती हैं
तितलियां वक्‍त की तरह हैं
यादें छोड़ जाती हैं
खुद याद बन जाती हैं

तितलियां बचपन की तरह हैं
मासूम खिलखिलाती
हमें अपनी मासुमियत की याद दिलाती हैं
जिसे हम खो बैठे हैं जाने अनजाने
चंद रोटियों के खातिर
जीवन के महासमर में...
हर रात नींद की आगोश में
जीवन के टूटते बिखरते सपनों के बीच
मैं खोजता हूं
अपने तकिये के नीचे
कुछ पल बचपन के, कुछ मासूम तितलियां...
***
शाहिद अख्‍तर
पीटीआई-भाषा, नई दिल्‍ली में वरिष्‍ठ पत्रकार के रूप में कार्यरत

Saturday, July 24, 2010

फ़ज़ल इमाम मल्लिक की कविता - बराबर के मुकबाले में

रचनाकार परिचय

नाम- फ़ज़ल इमाम मल्लिक

जन्म- 19 जून, 1964 को बिहार के शेखपुरा जिला के चेवारा में।
पिता/माता-  जनाब हसन इमाम और माँ सईदा खातून।
शिक्षा- स्कूली शिक्षा श्री कृष्ण उच्च विद्यालय, चेवारा (शेखपुरा)। इंटर रांची युनिवसिर्टी के तहत रांची कालेज से । ग्रेजुएशन भागलपुर युनिवसिर्टी के रमाधीन कालेज (शेखपुरा)। व्यवसायिक शिक्षा पटना के आईआईबीएम से होटल प्रबंधन में पोस्ट ग्रेजुएशन।
लेखन-  उर्दू और हिंदी में समान रूप से लेखन। लघुकथाएँ, कविता, कहानी, समीक्षा और सम-सामयिक लेखन। साहित्य-संस्कृति पर नियमित लेखन।
पत्रकारिता- लंबे समय से पत्रकारिता। 1981 से जनसत्ता में बतौर खेल पत्रकार करियर की शुरुआत। इससे पहले सेंटिनल (गुवाहाटी), अमृत वर्षा (पटना), दैनिक हदिुंस्तान (पटना) और उर्दू ब्लिट्ज (मुंबई) से जुड़ाव। बतौर खेल पत्रकार विश्व कप क्रिकेट, विश्व कप हाकी, एकदिवसीय व टैस्ट क्रिकेट मैचों, राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय फुटबाल मैचों, राष्ट्रीय टेनिस, एथलेट्किस वालीबाल, बास्केटबाल सहित दूसरे खेलों की रिपोर्टिंग।
इलेक्ट्रानिकमीडिया- एटीपी चैलेंजर टेनिस, राष्ट्रीय बास्केटबाल, कोलकाता फुटबाल लीग, राष्ट्रीय एथलेटिक्स का दूरदर्शन के नेशनल नेटवर्क पर लाइव कमेंटरी। कविताएँ-इंटरव्यू दूरदर्शन पर प्रसारित। आकाशवाणी के लिए लंबे समय तक सहायक प्रोड्यूसर (अंशकालिक) के तौर पर काम किया। कविताएँ-कहानियाँ कोलकाता व पटना, गुवाहाटी के आकाशवाणी केंद्र से प्रसारित।
 प्रकाशन- लधुकथा संग्रह मुखौटों से परे और कविता संग्रह नवपल्लव का संपादन।
 संपादन- साहित्यक पत्रिका श्रृंखला व सनद का संपादन।
सम्मान- साहित्य व पत्रकारिता के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए कवि रमण सम्मान, रणधीर वर्मा स्मृति सम्मान, सृजन सम्मान और रामोदित साहु सम्मान।
संप्रति- जनसत्ता में वरिष्ठ उपसंपादक।
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कभी-कभी ही कोई तारीख़
बन जाती है इतिहास
और याद रह जाती है सालों तक
ठीक 9/11 की तरह
हालांकि उस दिन न सरकारें बदलीं
न कहीं बगावत हुई
न ही ऐसा कुछ घटा
जिससे दहल जाती दुनिया
लेकिन फिर भी सत्ताइस जून की तारीख़
एक इतिहास की तरह गड़ गई
अमेरिका के सीने में
जिसे अमेरिका चाह कर भी
इतिहास के पन्नों से अलग नहीं कर पाएगा
एक तारीख़ फिर बनी इतिहास
और सुपर पावर के सीने पर
छोड़ गई अपनी धमक

यह भी इतिहास है कि
पहले मैदानों पर लड़ी जाती थी लड़ाइयां
लेकिन अब ऐसा नहीं होता
जंग अब थोपी जाती है छोटे देशों पर
और सुपरपावर बन कर दुनिया को धमकाने के लिए
दी जाती है जंग की धमकी
जंग अब मैदानों पर नहीं
जंग व्हाइट हाउस से लड़ी जाती है
और छोटे देशों पर
दागे जाते हैं मिसाइल
अपनी दादागिरी के लिए
भेजे जाते हैं बेड़े
और विमानों से गिराए जाते हैं बम
मैदानों का सारा गणित बदल गया है
और भूमिका भी

मैदानों पर अब खेले जाते हैं खेल
जहां हथियारों के बिना होते हैं
बराबर के मुकाबले
मजबूत और कमज़ोर खिलाड़ियों को मिलते हैं
जीतने के लिए बराबर के मौक़े
मैदानों पर न गोलियां चलती हैं
न मिसाइल का होता है डर
न होते हैं टैंक
और न ही तनी होती हैं बंदूक़ों की नलियां
लेकिन फिर भी लड़ी जाती है जंग
कला से, कौशल से, ताक़त से और रणनीति से
खेल के मैदान पर कोई ‘मित्र देश’
किसी की मदद को नहीं आता
बस दो ही टीमें होती हैं आमने-सामने
सुपर पावर अमेरिका हो या फिर छोटा सा देश घाना
अपने-अपने कला-कौशल से
जीत के लिए उतरते हैं मैदानों पर
किसी बाहरी ताक़त की मदद के बिना
इसलिए खेल के मैदानों पर
कभी-कभी बनता है इतिहास
और कोई-कोई तारीख़
बन जाती हैं इतिहास

दक्षिण अफ्रीका के स्टेनबर्ग स्टेडियम पर
विश्व कप फुटबाल में
सत्ताइस जून को घाना ने रचा इतिहास
सुपर पावर अमेरिका को फतह कर
उसने दिखाई थी अपनी ताक़त
फुटबाल के मैदान पर
न मिसाइलें चलीं
न राकेट दागे गए
न आसामानों पर दनदनाते रहे अमेरिकी वायुसेना के विमान
बस था तो फुटबाल का जनून और
कुछ कर गुजरने की ललक
जिसने रातोंरात घाना को
दुनिया के नक्शे पर ला खड़ा किया

आरपार के इस मुक़ाबले में
काले-कलूटे खिलाड़ियों ने
अपने से कहीं ताक़तवर मुल्क को
हर तरह से टक्कर दी
और अतिरिक्त समय में खिंचे इस मैच में
तेज़ तर्रार स्ट्राइकर असामोह ग्यान ने
मध्य पंक्ति से उछाली गेंद को
अमेरिकी हाफÞ में अपनी छाती पर उतारा था
और फिर बाएं फ्लैंक से तेज़ फर्राटा लगाता हुआ
अमेरिकी डिफेंस को छकाते हुए
बाक्स के ठीक ऊपर से
बाएं पांव से दनदनाता शाट लगा कर गोल भेद दिया था
अमेरिकी गोलची कुछ समझता
गेंद इससे पहले ही जाल के बाएं कोने में उलझी नाच रही थी
और घाना इस गोल का जश्न मना रहा था
हताश, मायूस अमेरिकी
जाल में तैरती गेंद को
बस देख भर रहे थे
इस एक गोल से घाना इतिहास का हिस्सा बन गया था
और अमेरिका हार कर
मुक़ाबले से बाहर हो गया था

आमने-सामने और बराबरी की लड़ाई में
व्यक्ति हो या देश
सुपर पावर की आंखों में आंखें डाल कर
उसकी बाहें मरोड़ कर
उसे मुक़बाले से बाहर कर देता है
जैसा उस दिन घाना ने किया था

कभी-कभी ही कोई तारीख़
बन जाती है इतिहास
और याद रह जाती है
सालों तक

***
संपर्क-
फ़ज़ल इमाम मल्लिक

4-बी, फ्रेंड्स अपार्टमेंट्स, पटपड़गंज,
दिल्ली-110092।

Wednesday, July 21, 2010

अल्‍का सैनी की कहानी - समर्पण


नाम: अलका सैनी

जन्म- 18 फ़रवरी, 1971 को चंडीगढ़ में ।

शिक्षा- लोक-प्रशासन में पंजाब यूनिवर्सिटी से स्नातकोत्तर उपाधि (1993), भारतीय विद्या भवन से पत्रकारिता में डिप्लोमा।
अभिरूचि- प्रकृति प्रेम और कला के प्रति बचपन से अनुराग । कॉलेज जमाने से साहित्य और संस्कृति के प्रति रूझान । पत्रकारिता जीवन का पहला लगाव था जो आजतक साथ है। खाली समय में जलरंगों, रंगमंच, संगीत और स्वाध्याय से दोस्ती ।
संप्रति- स्वतंत्र लेखन
संपर्क-
अलका सैनी
मकान
न. १६९, ट्रिब्यून कालोनी,
जीरकपुर
,चंडीगढ़
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मीनाक्षी को सुचेता से मिले अभी एक वर्ष ही बीता होगा परन्तु इतने कम समय में भी उनमे घनिष्टता इतनी हो   गई थी मानो बचपन से ही  एक दूसरे को जानती हो . सुचेता पहली बार  मीनाक्षी से किसी काम के सिलसिले में उसके घर पर  मिलने आई थी. सुचेता को किसी से मालूम पड़ा था कि मीनाक्षी कई वर्षों से वहाँ पर राजनैतिक  और सामाजिक तौर पर सक्रिय है इसलिए कोई भी काम होता तो वह मीनाक्षी के पास आ जाती थी .वैसे भी सुचेता अपने पति और बच्चों  के साथ नई- नई उस जगह पर रहने आई थी इसलिए उसकी ख़ास किसी से ख़ास जान- पहचान  नहीं थी . मीनाक्षी ने उसके कई छोटे- मोटे काम करवा कर दिए थे इसलिए सुचेता के मन में मीनाक्षी के लिए ख़ास जगह और सम्मान था .  

धीरे- धीरे उनकी दोस्ती गहरी होती गई क्योंकि  एक तो दोनों हमउम्र थी और घर की परिस्थितियाँ एक जैसी होने से वे एक दूसरे से दिल खोल कर बातें कर लेती थी . दोनों का मायके का माहौल काफी स्वच्छंद  था , बिरादरी भी मेल खाती थी और ससुराल का माहौल अपेक्षाकृत  काफी संकुचित था . दोनों की बातचीत का मुद्दा भी अक्सर घर की परेशानियों को लेकर ही होता था .यद्यपि मीनाक्षी अपने कार्य क्षेत्र में काफी व्यस्त रहती थी और किसी से ज्यादा बात नहीं कर पाती थी परन्तु पता नहीं ऐसा क्या था कि वह जब भी समय मिलता था अपने दिल की हर बात सुचेता से कर लेती थी. 

मीनाक्षी की विचारधारा को सुनकर अक्सर सुचेता कहती थी ," मीनाक्षी , तुम बहुत ही गुणी होने के साथ साथ दूसरों की हमदर्द भी हो . तुम्हारे विचार इतने परिपक्व और स्वच्छंद  है ." 

मीनाक्षी उसकी बात का उत्तर देते हुए कहती थी ," क्या करूँ सुचेता मुझे अपनी उम्र के हिसाब से जीवन का गहरा अनुभव हो गया है और दुनिया को बहुत नजदीक से देखा है मैंने . शायद यही कारण है कि  मै किसी पर विश्वास नहीं कर पाती और अपने दिल की बातें खुल कर नहीं कर पाती ." 
.जब भी वे मिलती तो अक्सर आम औरतों की तरह ही अपने पतियों की खामियां निकालने लगती. मीनाक्षी सुचेता से अपने मन की बात बताते हुए कहने लगती , " कमल कभी भी मेरी भावनाओं को समझ  नहीं पाए. मैंने उनसे कभी भी बड़ी- बड़ी खुशियों की उम्मीद नहीं की पर उन्होंने कभी भी कहने के वास्ते भी मुझे ऐसी  कोई ख़ुशी नहीं दी जिसे मै अपने जीवन की मीठी याद के रूप में संझो सकूँ ."

सुचेता उसकी हाँ में हाँ मिलाते हुए कहती थी ," मीनाक्षी तुम सही कहती हो यहाँ भी यही हाल है मेरे पति भी ऐसे ही हैं बस एक मशीन से ज्यादा मुझे  कुछ नहीं समझते जैसे हम इंसान न हो कर एक चलता फिरता पुर्जा हों ,और जैसे भावनाएं तो  कोई मायने नहीं रखती .बस घर, बच्चों को संभालना और फिर बिस्तर पर भी हँसते- हँसते उनकी इच्छा पूरी करो और अपनी तकलीफ बताने का तो कोई हक़ ही नहीं है हमे .जब देखो मेरे मायके वालो पर कटाक्ष करते रहते हैं . कई बार तो मन इतना परेशान हो जाता है कि दिल करता है कि सब कुछ छोड़ कर कहीं चले जाऊं पर इन मासूम बच्चों का ध्यान करके सब्र का घूँट पीना पड़ता है ." 

इस तरह दोनों सहेलियां  जब भी समय होता तो एक दूसरे से मन की बातें कर अपने आप को हल्का महसूस करती और फिर से अपनी घर गृहस्थी   को संभालने में व्यस्त हो जाती. 

मगर वह दिन बाकी दिनों जैसा नहीं था आज मीनाक्षी का जन्मदिन था और सुचेता सुबह से ही मीनाक्षी को मिलकर उसके जन्मदिन की शुभकामनाएँ देने के लिए व्याकुल थी .पर जब सुचेता ने मीनाक्षी को विश  करने के लिए  फोन किया तो उसे लगा कि मीनाक्षी पहले की तरह उसे मिलने को व्याकुल नहीं थी .सुचेता बीते कुछ दिनों से ही महसूस कर रही थी कि मीनाक्षी कुछ बदल सी गई है वह इस बात को समझ नहीं पा रही थी कि आखिर इस बदलाव की वजह क्या है .वैसे तो सुचेता जानती थी कि घर की परेशानियों की वजह से वह उलझी रहती है और उसके पति से भी उसकी आये दिन किसी न किसी बात को लेकर नोंक- झोंक चलती रहती है .उसे मालूम  था कि उसके मन में  अपने पति के लिए बिलकुल आत्मीयता शेष बची नहीं है . वह तो एक समझौता किए बैठी  है .

 उसकी नजरों में मीनाक्षी एक बहुत ही आदर्श  संस्कारी और पढ़े  लिखे होने के साथ ही आधुनिक विचारों वाली समझदार  महिला थी . शहर में उसकी अच्छी खासी पहचान  और रुतबा था .सब लोगों की नजरों में बहुत ही दृढ़  विचारों वाली और अनुशासन प्रिय थी . राजनैतिक  और सामाजिक संगठन    में उसका वर्चस्व साफ़ नजर आता था . वह हर कार्य क्रम में जहां तक हो सकता था अपने पति के साथ ही जाती थी शायद यह सामाजिक क्षेत्र में एक मजबूरी के तहत था अन्यथा लोग औरत पर कीचड़ उछालने में देर नहीं लगाते ..सुचेता ने उसके सूनेपन को कई बार महसूस किया था वह बाहर से खुद को जितना ही सशक्त और मजबूत दर्शाती थी अन्दर से वह उतनी हो खोखली नजर आती थी. 


मीनाक्षी को मिलने को आतुर सुचेता जल्दी से तैयार हुई , उसने गिफ्ट  पैक किया और उसके घर पहुँच गई . सुचेता ने उसके घर की काल बेल बजाई , मीनाक्षी ने जैसे ही दरवाजा खोला तो वह उसे शुभकामनाएँ देने के लिए उसके गले से लग गई जैसे कि पता नहीं कितने  बरसो बाद मिल रही हो . सुचेता ने उसे उपहार दिया तो मीनाक्षी ने कहा , " अरे ! इसकी क्या जरूरत थी तुम्हारी शुभकामनाएँ  ही बहुत है मेरे लिए " 

दोनों सहेलियां  हमेशा की तरह शयनकक्ष में आकर आराम से बैठ गई . आज कुछ अलग ही लग रही थी मीनाक्षी .  हल्के नीले रंग के सलवार सूट में उसका गोरा बदन कुछ ज्यादा ही   खिल रहा था  . सुचेता से कहे बिना रहा नहीं गया
" अरे क्या बात ? आज तो मैडम कुछ ज्यादा ही निखरी नजर आ रही है , लगता है आज सुबह ही तुम्हे तुम्हारे जन्मदिन का उपहार भैया से मिल गया है " 
मीनाक्षी ने उसकी बात का कोई उत्तर नहीं दिया और ना ही कोई प्रतिक्रिया व्यक्त की . फिर दोनों इधर- उधर की बातों में व्यस्त हो गई . कुछ देर बाद मीनाक्षी ने सुचेता से पूछा , ' अच्छा ये बता तूँ क्या लेगी ? बातें तो बाद में भी होती रहेगी . चाय बनाऊं  या काफ़ी लेना पसंद करोगी . " 
" चल ऐसे कर चाय ही बना ले . मै भी आती हूँ तेरी मदद करने '" यह कहकर वह भी रसोईघर में उसके पीछे- पीछे आ गई
मीनाक्षी ने  चाय का पानी रख दिया और एक प्लेट में गाजर का हलवा डालने लगी और सुचेता को देते हुए बोली ," ये ले मुँह मीठा कर , देख तो कैसा बना है मैंने अपने हाथों से बनाया है"  

एक उचित मौका पाकर सुचेता मीनाक्षी से पूछने लगी ," एक बात कहूँ अगर बुरा न मानोगी . पता नहीं मुझे ऐसा क्यों लगता है कि कोई न कोई ख़ास बात है जो तुम मुझसे छिपा रही हो . हो न हो वह तुम्हारे दिल पर बोझ बनकर तुम्हे दुखी कर रही है . क्या वह बात तुम मुझे नहीं बताओगी?  " 
मीनाक्षी ने अपने चेहरे की भाव भंगिमा बदलते हुए अपने अंतर्मन के दुःख को टालने की चेष्टा   की .

सुचेता ने मीनाक्षी के चेहरे को अच्छी तरह से पढ़  लिया था . हो न हो मीनाक्षी उससे कोई न कोई बात अवश्य छिपा रही है और भीतर ही भीतर वह किसी अंतर्द्वंद्व से जूझ रही है .वह कुछ कहना तो जरूर चाहती है मगर वह शब्द उसके होंठों पर आकर रुक जाते है .

.सुचेता माहौल को कुछ हल्का करने के लिए मजाक करते हुए पूछने लगी ," आज कमल भैया ने तोहफे में तुम्हे क्या दिया है " 
इस बात का मीनाक्षी क्या उत्तर देती फिर अनमने भाव से कहने लगी ,
              " सुचेता तुम अच्छी तरह से तो इनके स्वभाव को जानती हो , तोहफा तो क्या उन्होंने तो अच्छे से मुझे विश  भी नहीं किया . खैर तूँ छोड़ इन बातों को , अब तो मैंने किसी तरह की उम्मीद करना भी छोड़ दिया है . मै तो कई वर्षो से अपना जन्मदिन भी नहीं मनाती हूँ इसीलिए "

" अरे वाह!  आज तो चमत्कार हो गया ,इतना स्वादिष्ट हलवा है जैसे कि तुमने अपनी सारी  मिठास इसी में घोल दी हो . आज क्या सूझी हमारी प्यारी सहेली को हलवा बनाने की . कोई ख़ास मेहमान आ रहा है क्या ?"

चाय तैयार  होते ही मीनाक्षी ने एक ट्रे में कप रखे और साथ में कुछ नमकीन भी डाल ली और फिर से दोनों शयन कक्ष में आकर बैठ गई .
सुचेता ने बातों के सिलसिले को जारी रखते हुए ,
 " चल ऐसा करते हैं , हम कल ही दोनों बाजार चलते है, तुम भी अपने मन पसंद की कोई चीज ले लेना और मुझे भी कुछ काम है . इस बहाने थोड़ा घूमना- फिरना भी हो जाएगा .वैसे भी इन आदमी लोगो के साथ खरीददारी  करने में कहाँ मजा आता है ऐसे लगता है कि जैसे कोई सजा काटने आए  हो " 

तुम अपना मन उदास मत करो . तुम्हे कौन- सा कोई कमी है किसी चीज की" .
सुचेता की धीरज बंधाने वाली बातें सुनकर जैसे कि मीनाक्षी के सब्र का बाँध टूट गया हो . वह काफी भावुक होते हुए कहने लगी , " तुम ठीक कहती हो सुचेता , पर प्यार से दिया हुआ एक फूल भी बहुत होता है . जिस इंसान के लिए हम अपना सब कुछ कुर्बान कर देते हैं उससे उम्मीद तो बनी ही रहती है . उसके द्वारा कहे दो मीठे बोल भी अमृत से कम नहीं होते ". 

मीनाक्षी की शादी कमल से हुए तकरीबन १२ साल का समय बीत गया था और उसके १० वर्ष का बेटा भी था .

वह आगे कहने लगी ,
"  तुझे तो पता  है कि मेरा कार्य क्षेत्र कैसा है आए  दिन किस तरह के लोगो से मेरा पाला पड़ता है , और ऐसे लोगो से मै कभी भी अपने मन की बात करने की सोच भी नहीं सकती . ये लोग तो दूसरों की मजबूरी का फायदा लेना जानते है बस . घर की और बाहर की जिम्मेवारियां निभाते- निभाते मै भीतर ही  भीतर बुरी तरह उकता गई हूँ . एक खालीपन हर समय कचोटता रहता है .आज तक जो भी इंसान संपर्क में आये सब अपना स्वार्थ पूरा करते हुए नजर आये . उनकी गन्दी  नजरें हर समय मेरे जिस्म को घूरती हुई नजर आती है .किसी के बारे में कोई नहीं सोचता . हर कोई अपना उल्लू सीधा करना चाहता है . हर कोई बाहर की खूबसूरती को देखता है मन में क्या है कोई नहीं जानना चाहता?  .दुनिया के अजीबोगरीब रंग- ढंग देख कर मेरे सामान्य   व्यवहार में भी काफी बदलाव आता जा रहा था पर ये सारी  बातें मै किसे बताती . बस अन्दर ही अन्दर सब बातें दबाती गई "

सुचेता बड़े ही ध्यान से सारी बातें सुन रही थी .उसे एक ही बात रह- रह कर परेशान कर रही थी कि आखिर मीनाक्षी में इतना बदलाव किस कारण से है. आज कल वह कुछ खोई - खोई सी रहती है .न ज्यादा किसी से बात करती है न ही पहले की तरह अपने सास- ससुर की शिकायतें  करती हैं. 
सुचेता से रहा नहीं गया तो पूछ ही बैठी ,
 " आज कल मैडम कहाँ खोई रहती है , किसी से ज्यादा बात भी नहीं करती न ही कहीं आती- जाती हो . मै ही हर बार तुम्हारे घर आती हूँ . तुम भी कभी अपने कदम मेरे घर पर डाला करो . मुझे कई पहचान वाले लोग तुम्हारे बारे में पूछ चुके हैं कि क्या बात आज कल तुम्हारी सहेली  नजर ही नहीं आती ?  " 
मीनाक्षी क्या उत्तर देती
" कुछ नहीं सुचेता बस आज कल कुछ लिखने का काम शुरू किया हुआ है  और  जरा कुछ किताबें पढने में व्यस्त थी  " 

सुचेता मन ही मन जानती थी कि मीनाक्षी में काफी हुनर है और उसे बाकी औरतों की तरह इधर- उधर खड़े हो कर गप्पे मारना ,चुगलियाँ करना पसंद नहीं है .वह हमेशा ही किसी न किसी सृजन कार्य में व्यस्त रहती थी .पिछले कुछ समय से वह सामाजिक और राजनैतिक  क्षेत्र में भी पहले की तरह सक्रिय नहीं थी . आज कल उसका ज्यादा समय घर के और बच्चों के काम काज के इलावा तरह- तरह की किताबें पढने  और कंप्यूटर पर ही बीतता था .उसे वैसे भी बेवजह बात करना पसंद नहीं था .वह बातों में कम और  कर्म करने में   ज्यादा विश्वास करती थी और कुछ न कुछ करने में खुद को व्यस्त रखती थी.
मीनाक्षी से कोई प्रत्युत्तर न पाकर सुचेता ने फिर से पूछा
" तुमने ये लिखने- पढने  का नया शौंक कहाँ से पाल लिया है , उसके अलावा  तुम पहले से भी कम बोलती हो .ऐसा लगता है हर समय किसी तरह के विचारों में खोई रहती हो .एक बात और कहूँ कि तुम्हारे में एक अजीब सा बदलाव आ गया है . पहले से भी ज्यादा खूबसूरत दिखने लगी हो . चेहरा तो देखो मानो सुर्ख हो गया है . अजीब सी रौनक और चमक चेहरे पर आ गई है . मुझे भी इसका राज बताओ , कि आखिर बात क्या है ?" . 
मीनाक्षी सोच रही थी कि सुचेता तो आज उसके पीछे हाथ धो कर पड़ गई है. अब वह उससे झूठ किस तरह बोले .शायद किसी ने उसकी दुखती रग पर हाथ रख दिया हो . मन ही मन वह खुद भी बेचैन थी किसी से अपने मन की बातें करने के लिए, पर कशमकश में थी कि किस तरह अपने दिल का हाल सुनाये .क्या जो उस पर बीत रही है वह सही है या गलत?  . सही- गलत के इसी उधेड़- बुन  में तो वह कई दिनों से झूल रही थी. 

कहीं यह उसका पागलपन तो नहीं ,मगर दुनिया जो भी सोचे जो भी समझे उसे ये नया अहसास बहुत ही सुखदायक लग रहा था .उस अहसास के आगे रूपया पैसा रुतबा दुनियादारी सब फीके लग रहे थे .
उसे लग रहा था मानो जिस सुख की तलाश में वह इतने वर्षों से भटक रही थी वह भगवान् शिव की कृपा  से उसकी झोली में आ गिरा हो .काफी कोशिश करके भी वह अपने मन की बात को जुबान तक नहीं ला पा रही थी . सुचेता से उसकी चुप्पी बर्दाश्त नहीं हो रही थी . वह ये तो देख रही थी कि मीनाक्षी कुछ कहना तो चाहती है मगर कह नहीं पा रही है . उसकी झिझक देख कर सुचेता से रहा नहीं गया
" देखो मीनाक्षी, अगर तुम नहीं बताना चाहती तो तुम्हारी मर्जी . लगता है तुम  मुझ  पर अभी भी पूरी तरह भरोसा नहीं करती हो . मै भी तो अपने दिल की हर बात सबसे पहले तुम्हे ही तो बताती हूँ . " 

सुचेता की ये बात सुनकर मीनाक्षी को आखिरकार अपनी जुबान खोलनी ही पड़ी
" सुचेता , कहाँ से शुरू करूँ कुछ समझ नहीं आ रहा.   एक इंसान है जो किसी देवदूत से कम नहीं  है . मै उस इंसान से कभी मिली नहीं हूँ . बस इंटरनेट के द्वारा बातचीत शुरू हुई थी  और अब फोन पर भी अक्सर बात होती रहती है . मुझे नहीं पता क्या सही है क्या गलत है ? बस इतना जानती हूँ वह जो कोई भी है दिल का सबसे अच्छा इंसान है . मैंने इतनी दुनिया देखी है पर इस तरह का देवता स्वरुप इंसान नहीं देखा . वह मेरे दर्द को .मेरी भावनाओं को समझता है .मेरे मन के खालीपन को जानता है .वह हर समय मुझे अपने परिवार में खुश देखना चाहता है . मुझे मुस्कुराता देखने के लिए उसकी तड़प को मैंने महसूस किया है .  पर हमारा समाज अभी भी शादी के बाद औरत के मन में किसी परपुरुष के ख्याल को आने को भी पाप समझता है." 
यह कहते हुए मीनाक्षी ने एक गहरी सांस भरी और चुप सी हो गई .                                                                                                                                            सुचेता ने उसकी बात पर हामी भरते हुए कहा ,                                                                                                                                               " हाँ, मीनाक्षी तुम्हारी बात सही है  पर मै ये मानती हूँ यदि किसी औरत को  अपने पति से वो प्यार ,वो इज्जत नहीं मिलती तो उसे क्या करना चाहिए?  . क्या उसे हर समय रो- धोकर अपना जीवन बिताना चाहिए?  . तब कौन सा समाज आगे आकर किसी का दर्द बांटता है . क्या सच्चा प्रेम करना कोई पाप है? क्या मीरा ने भगवान् कृष्ण  से सच्चा प्रेम नहीं किया था ? मेरे हिसाब से प्रेम करने का कोई निर्धारित समय नहीं हो सकता .  "   

" सुचेता , उसका मन भगवान् की किसी मूर्ति  की तरह ही पवित्र  है . हम दोनों की आत्माएं एक है . वह मेरे साथ न होकर भी हर समय मेरे पास होता है . वह तो निष्काम प्रेम की प्रतिमूर्ति है .............." 

यह कहते ही उसकी आँखों में से भावुकता वश आंसू बहने  लगे और छलकते आँसुओं से भी उसने कहना जारी रखा ,

" सच बात  बताऊँ सुचेता , मैंने इतनी बातें तो आज तक कभी खुद के साथ भी नहीं की. मेरे जीवन की कोई भी बात उससे छुपी नहीं है  . उसने मुझ  पर पता नहीं क्या जादू  कर दिया है उसकी बातों से मै सम्मोहित  हो जाती हूँ .बेशक मै यदि उससे जीवन में कभी मिल भी पाऊं या नहीं पर उसका गम नहीं है .उसके मेरे जीवन में आने से मेरा अधूरापन और  सूनापन भर गया है .मेरी जरा सी भी तकलीफ उससे बर्दाश्त नहीं होती . उसकी बातों में अजीब सा अपनापन, अजीब सी कशिश है जितनी किसी के साथ रहने में भी न हो . कभी- कभी तो मुझे महसूस होता है कि वह मेरे आस- पास ही है .वह कुछ ना होकर भी मेरा सब कुछ है .जीवन के इस मौड़   पर वह कभी एक गुरु की तरह मुझे आध्यात्मिक ज्ञान देता है,  तो कभी एक माता- पिता की तरह घर गृहस्थी  के फर्ज निभाने की सीख देता है , तो कभी एक दोस्त की तरह मेरे दर्द को बांटता है , तो कभी भाई- बहनों की तरह मेरे साथ हँसता- मुस्कुराता है ,और  कभी एक प्रेमी की तरह मुझ पर अपना सब कुछ कुर्बान करने को तैयार हो जाता है " . 

" अब तूँ ही बता क्या आज कल की दुनिया में ऐसा कोई  इंसान मिल सकता है?  . मुझे तो लगता है वह किसी दूसरी दुनिया से आया हुआ  कोई मसीहा है जिसे भगवान् ने मेरे लिए भेजा है . कभी - कभी लगता है कि मै कोई सपना तो नहीं देख  रही , कहीं यह मेरी मात्र कल्पना तो नहीं ?    ऐसा लगता है कोई पिछले जन्म का संबंध है जो मुझे उसकी तरफ खींच रहा है . एक इच्छा जरूर है कि भगवान्  जीवन में यदि मिलने का एक मौका दे  तो  खुद को उनके चरणों में समर्पित कर दूँ ."