ग़ज़ल जैसी तेरी सूरत ग़ज़ल जैसी तेरी सीरत- अशोक मिज़ाज 'बद्र'

दीर्घ विराम के पश्चात् आखर कलश एक बार फिर आपसे मुख़ातिब है जनाब अशोक मिज़ाज 'बद्र' साहब की दो बेहतरीन ग़ज़लों के साथ। उम्मीद है आपको इनकी शायरी का अंदाज़ पसंद आएगा।।
(१)
ज़रा सा नाम पा जाएँ उसे, मंज़िल समझते हैं
बड़े नादान हैं मझधार को साहिल समझते हैं


अगर वो होश में रहते तो दरिया पार कर लेते,
ज़रा सी बात है लकिन कहाँ गाफिल समझते हैं।

अकेलापन कभी हमको अकेला कर नहीं सकता,
अकेलेपन को हम महबूब की महफ़िल समझते हैं

बड़े लोगों के चहरों पर शिकन भी आ नहीँ सकती,
कोई कालिख भी मल दे तो उसे वो तिल समझते हैं


अजब बस्ती है इस बस्ती में सब रंगदार हैं शायद,
शरीफों को तो वो पैदाइशी बुझदिल समझते हैं

मिज़ाज, अपना फ़क़ीराना है फिर भी शुक्र है यारो.
हमें भी लोग अपनी भीड़ में शामिल समझते हैं
 
(२)
बहुत से मोड़ हों जिसमें कहानी अच्छी लगती है,
निशानी छोड़ जाए वो जवानी अच्छी लगती है।

सुनाऊं कौन से किरदार बच्चों को कि अब उनको,
न राजा अच्छा लगता है न रानी अच्छी लगती है।


खुदा से या सनम से या किसी पत्थर की मूरत से,
मुहब्बत हो अगर तो ज़िंदगानी अच्छी लगती है।


पुरानी ये कहावत है सुनो सब की करो मन की,
खुद अपने दिल पे खुद की हुक्मरानी अच्छी लगती है

ग़ज़ल जैसी तेरी सूरत ग़ज़ल जैसी तेरी सीरत,
ग़ज़ल जैसी तेरी सादा बयानी अच्छी लगती है।


गुज़ारो साठ सत्तर साल मैदाने अदब में फिर,
क़लम के ज़ोर से निकली कहानी अच्छी लगती है

मैं शायर हूँ ग़ज़ल कहने का मुझको शौक़ है लेकिन,
ग़ज़ल मेरी मुझे तेरी ज़ुबानी अच्छी लगती है।
***
मिज़ाजनामा
--------------
नाम- अशोक "मिज़ाज"
मूल नाम- अशोक सिंह ठाकुर
जन्म तिथि- २३ जनवरी १९५७.
जन्म स्थान- सागर, मध्य प्रदेश.
शिक्षा- एम. एससी. रसायन शास्त्र.
पेशा- स्टेट बॅंक ऑफ इंडिया मे शाखा प्रबंधक.
कृतियाँ -
* समन्दरो का मिज़ाज ( १९९५ उर्दू लिपि)
* समन्दरो का मिज़ाज ( हिन्दी लिपि)
* सिग्नेचर ( हिन्दी लिपि)
* ग़ज़लनामा (उर्दू लिपि)
* आवाज़ (वाणी प्रकाशन, हिन्दी लिपि)
* एक ग़ज़ल संग्रह शीघ्र ही प्रकाशानाधीनसाहित्यिक योगदान-
* 'ग़ज़ल २०००' वाणी प्रकाशन, सह संपादन.
* ग़ज़ल यूनिवर्स में सह संपादन.
 पुरूस्कार -
* म.प्र. उर्दू अकादमी द्वारा शिफा ग्वालियरी पुरूस्कार
* अखिल भारतीय अंबिका प्रसाद दिव्य स्मृति पुरूस्कार
* हाजी गुलाम अली सम्मान
* माँ प्रभा देवी स्मृति सम्मान
* श्रीमती लीला देवी स्मृति सम्मान
* पं. ज्वाला प्रसाद ज्योतिषी सदभावना सम्मान
* गोहरे अदब सम्मान
* श्री तन्मय बुखरिया स्मृति सम्मान
* दाजी सम्मान
एवं कई संस्थाओं द्वारा सम्मान पत्र व प्रशस्ती पत्र.
 अन्य उपलब्धियाँ-
* प्रसार भारती द्वारा आकाशवाणी के सभी केंद्रों के लिए 'मान्य कवि' के रूप मे अनुबंधित.
* ई. टी.वी. उर्दू एवं डी. डी. उर्दू पर इंटरव्यू का प्रसारण.
* भोपाल दूरदर्शन, दिल्ली दूरदर्शन, लखनऊ दूरदर्शन से प्रसारण.
* अंतरराष्ट्रीय व अखिल भारतीय मुशायरों मे शिरकत.
 मुशायरे-
* पानीपत, चंडीगढ़, पटियाला, अंबाला में चार इंडो-पाक मुशायरे.
* दिल्ली, गाज़ियाबाद, बुलंदशहर, राँची, रौरकेला, कटक, हैद्राबाद, बुरहानपुर, कानपुर, अलीगढ़, रूरकी,
* झाँसी, ललितपुर, जबलपुर, कटनी, विदिशा, भोपाल सहित अनेक छोटे बड़े नगरों में अखिल भारतीय मुशायरों मे शिरकत.
 चर्चित आलेख-
* 'ग़ज़ल की बहरें और संस्कृत के छन्द'.

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6 Responses to ग़ज़ल जैसी तेरी सूरत ग़ज़ल जैसी तेरी सीरत- अशोक मिज़ाज 'बद्र'

  1. अगर वो होश में रहते तो दरिया पार कर लेते,
    ज़रा सी बात है लकिन कहाँ गाफिल समझते हैं।

    अकेलापन कभी हमको अकेला कर नहीं सकता,
    अकेलेपन को हम महबूब की महफ़िल समझते हैं।
    ****
    सुनाऊं कौन से किरदार बच्चों को कि अब उनको,
    न राजा अच्छा लगता है न रानी अच्छी लगती है।

    पुरानी ये कहावत है सुनो सब की करो मन की,
    खुद अपने दिल पे खुद की हुक्मरानी अच्छी लगती है।

    सीधे सरल शब्दों में रचे बद्र साहब के शेर सीधे दिल में उतर रहे हैं . नरेन्द्र भाई बद्र साहब की बेजोड़ ग़ज़लें पढवाने के लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया. काश मुझे बद्र साहब का मोबाइल नंबर मिल जाता तो उन्हें मुबारक बाद देता। उनकी किताब के बारे में मैं अपने आपको अपने ब्लॉग पर चल रही "किताबों की दुनिया" श्रृंखला में लिखने में अपने आप को रोक नहीं पा रहा। वाणी प्रकाशन से उनकी किताब प्राप्ति का रास्ता ढूंढता हूँ .

    नीरज
    9860211911

    ReplyDelete
  2. बड़े लोगों के चहरों पर शिकन भी आ नहीँ सकती,
    कोई कालिख भी मल दे तो उसे वो तिल समझते हैं।

    ______________________________________________


    अशोक भाई समर्थ ग़ज़लकार हैं

    ReplyDelete
  3. श्री बलराम अगरवाल जी ने मेल द्वारा सन्देश प्रेषित किया-
    भाई अशोक मिज़ाज की बेहतरीन ग़ज़लें पढ़वाने के लिए धन्यवाद व्यास जी।

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  4. अशोक मिज़ाज जी को पढ़ना बहुत अच्छा लगा. सभी शेर नायाब हैं...

    सुनाऊं कौन से किरदार बच्चों को कि अब उनको,
    न राजा अच्छा लगता है न रानी अच्छी लगती है।

    बेहतरीन ग़ज़ल पढवाने के लिए धन्यवाद.

    ReplyDelete
  5. प्रस्‍तुत ग़ज़लों को पढ़ने से मन में जो विचार पैदा हुआ उसे जीवन परिचय ने पुष्‍ट किया।
    ग़ज़ल में यह सहज व सरल भाषा प्रवाह यूँ ही नहीं आता। अशोक जी तहे दिल से बधाई इतनी खूबसूरत ग़ज़लों पर।

    ReplyDelete
  6. सुनाऊं कौन से किरदार बच्चों को कि अब उनको,
    न राजा अच्छा लगता है न रानी अच्छी लगती है।


    sabhi umda sher/aabhar

    ReplyDelete

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