अज़ीज़ आज़ाद की चंद ग़ज़लें

अज़ीज़ आज़ाद
तुम हो खंज़र भी तो सीने में समा लेंगे तुम्हें
तुम ज़रा प्यार से बाहों में तो भर कर देखो।
मेरा दावा है सब ज़हर उतर जाएगा
तुम मेरे शहर में दो दिन तो ठहर कर देखो।

आज जो देश के हालत हैं उनमे अज़ीज़ आज़ाद साहब की शायरी की सियाही कभी ना मिटने वाला अमनपसन्दगी का पैग़ाम है जो सदियों तक न जाने कितने ही भटकों को अपनी कलम की रौशनी से सदा राह दिखाने का मादा रखती है।
अवाम की आवाज, साम्प्रदायिक सौहार्द, इंसानी भाईचारे के अव्वल अलमबरदार, जादू बयानी के मालिक और बीकानेर के मशहूर शायर मरहूम अजीज आजाद साहब को आखर कलश की और से सलाम और श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए पेश है उनकी कुछ चुनिन्दा ग़ज़लें। आशा है आप सभी को पसन्द आएंगी और मेरा ये सेवा कार्य भी सफल होगा।
१.

तुम ज़रा प्यार की राहों से गुज़र कर देखो
अपने ज़ीनो से सड़क पर भी उतर कर देखो

धूप सूरज की भी लगती है दुआओं की तरह
अपने मुर्दार ज़मीरों से उबर कर देखो

तुम हो खंज़र भी तो सीने में समा लेंगे तुम्हें
प' ज़रा प्यार से बाँहों में तो आ कर देखो

मेरी हालत से तो ग़ुरबत का गुमाँ हो शायद
दिल की गहराई में थोड़ा-सा उतर कर देखो

मेरा दावा है कि सब ज़हर उतर जायेगा
तुम मेरे शहर में दो दिन तो ठहर कर देखो

इसकी मिट्टी में मुहब्बत की महक आती है
चाँदनी रात में दो पल तो पसर कर देखो

कौन कहता है कि तुम प्यार के क़ाबिल ही नहीं
अपने अन्दर से भी थोड़ा सा संवर कर देखो

२.

मैं तो बस ख़ाके-वतन हूँ गुलो-गौहर तो नहीं
मेरे ज़र्रों की चमक भी कोई कमतर तो नहीं

मैं ही मीरा का भजन हूँ मैं ही ग़ालिब की ग़ज़ल
कोई वहशत कोई नफ़रत मेरे अन्दर तो नहीं

मेरी आग़ोश तो हर गुल का चमन है लोगों
मैं किसी एक की जागीर कोई घर तो नहीं

मैं हूँ पैग़ाम-ए-मुहब्बत मेरी सरहद ही कहाँ
मैं किसी सिम्त चला जाऊं मुझे डर तो नहीं

गर वतन छोड़ के जाना है मुझे लेके चलो
होगा अहसास के परदेस में बेघर तो नहीं

मेरी आग़ोश तो तहज़ीब मरकज़ है 'अज़ीज़'
कोई तोहमत कोई इल्ज़ाम मेरे सर तो नहीं

३.

ज़मीं है हमारी न ये आसमाँ है
जहाँ में हमारा बसेरा कहाँ है

ये कैसा मकाँ है हमारे सफ़र का
कोई रास्ता है न कोई निशाँ है

अभी हर तरफ़ है तसादुम की सूरत
सुकूँ ज़िन्दगी का यहाँ न वहाँ है

कभी हँसते-हँसते छलक आए आँसू
निगाहों के आगे धुआँ ही धुआँ है

शराफ़त को उजड़े मकानों में ढूँढो
शहरों में इसका ठिकाना कहाँ है

चलो फिर करेंगे उसूलों की बातें
अभी तो हमें इतनी फ़ुरसत कहाँ है

४.

सावन को ज़रा खुल के बरसने की दुआ दो
हर फूल को गुलशन में महकने की दुआ दो

मन मार के बैठे हैं जो सहमे हुए दर से
उन सारे परिंदों को चहकने की दुआ दो

वो लोग जो उजड़े हैं फ़सादों से, बला से
लो साथ उन्हें फिर से पनपने की दुआ दो

कुछ लोग जो ख़ुद अपनी निगाहों से गिरे हैं
भटके हैं ख़यालात बदलने की दुआ दो

जिन लोगों ने डरते हुए दरपन नहीं देखा
उनको भी ज़रा सजने-सँवरने की दुआ दो

बादल है के कोहसार पिघलते ही नहीं हैं
'आज़ाद' इन्हें अब तो बरसने की दुआ दो
***

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8 Responses to अज़ीज़ आज़ाद की चंद ग़ज़लें

  1. अज़ीज़ आज़ाद साहब की शायरी ताकीद करती है कि आम बोल-चाल की भाषा में कहे गये शेर सरलता से सब के हृदय तक पहुँचते हैं।

    ReplyDelete
  2. SABHEE GAZALEN EK SE BADH KAR EK HAIN . ANANDIT HO
    GAYAA HUN .

    ReplyDelete
  3. मरहूम अजीज आजाद साहब की बेहद खूबसूरत अंदाज़ में कही ग़ज़लें पढ़वाने के लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया !
    आज़र

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  4. स्‍वागत है लौटने का ।

    ReplyDelete
  5. आज़ाद साहब की शायरी सीधे दिल तक जाती है ... इन लाजवाब गज़लों को सब तक पहुंचाने का शुक्रिया ...

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  6. itni umda gzalen shidha dil ki tahon me utrtee chli gai .. sarthk ho gya aaj Aakhar kalsh par aana

    ReplyDelete
  7. aap tamam hazyat ka shukariya

    ReplyDelete
  8. shukariya aap tamaam hazrat ka

    ReplyDelete

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