सपना टल गया- ओम पुरोहित की कविताएँ

शब्द यात्रा करते हैं और वे इस यात्रा में संवेदना अंवेरते अपना अर्थ पाते हैं । मैं तो बस उन शब्दों का पीछा करता हूँ .... अक्षरों के बीज जाने किसने बो दिए पानी देते-देते हमने जिंदगी गुजार दी । कोरा कागद है मन मेरा और ज़िंदगी तलाश है कुछ शब्दों की...
-ओम पुरोहित 'कागद'





सपनों की उधेड़बुन

एक-एक कर
उधड़ गए
वे सारे सपने
जिन्हें बुना था
अपने ही खयालों में
मान कर अपने !

सपनों के लिए
चाहिए थी रात
हम ने देख डाले
खुली आंख
दिन में सपने
किया नहीं
हम ने इंतजार
सपनों वाली रात का
इस लिए
हमारे सपनों का
एक सिरा
रह जाता था
कभी रात के
कभी दिन के हाथ में
जिस का भी
चल गया जोर
वही उधेड़ता रहा
हमारे सपने !

अब तो
कतराने लगे हैं
झपकती आंख
और
सपनों की उधेड़बुन से !
***

पेड़ खड़े रहे

धरती से थी
प्रीत अथाह
इसी लिए
पेड़ खड़े रहे ।

कितनी ही आईं
तेज आंधियां
टूटे-झुके नहीं
पेड़ अड़े रहे ।

खूब तपा सूरज
नहीं बरसा पानी
बाहर से सूखे
भीतर से हरे
पेड़ पड़े रहे !
***

आज जाना

गांव में गाय ने
खूंटे पर बंधने में
जद्दोजहद की
आखिर भाग गई
बाड़ कूद कर
घूंघट की ओट में
तब तुम
क्यों हंसीं थी
खिलखिला कर
आज जाना
जब चाह कर भी
नहीं लौट सकी
बेटी ससुराल से !
***

यादें तुम्हारी

यादें तुम्हारी
मीठी हैं बहुत
फिर क्यों टपकता है
आंखो से खारा पानी
जब-जब भी
सुनता-देखता हूं
तुम्हारी स्मृतियों की
उन्मुक्त कहानी !

दिल में
यादें थीं तुम्हारी
जिन पर
रख छोड़ा था मैंने
मौन का पत्थर
इस लिए था
दिल बहुत भारी ।

आंखों में थीं
मनमोहक छवियां
कृतियां-आकृतियां
लाजवाब तुम्हारी
जिनके पलट रखे थे
सभी पृष्ठ मैंने
अब भी चाहते हैं
वे अपनी मनमानी
इसी लिए टपकता है
रात-रात भर
लाल आंखो से
श्वेत खारा पानी ।

हर रात
ओस बूंद से
क्यों टपकते हैं
आंसू आंख से
घड़घड़ाता है
उमड़-घुमड़ दिल
जम कर कभी
क्यों नहीं होती बारिश !
***

दिन की मौत पर

न जाने किस की याद में
गुजर ही गया
एक अकेला दिन
इस रात की तन्हाई में
दिन की मौत पर
बांच रहा है मर्सिया
एक अकेला चांद
मातम पुरसी को
आए हैं तारे अनेक
आसमान रोके बैठा है
आंखो में असीम आंसू
जो झर ही जाएंगे
कभी न कभी !
***

सपना टल गया

कल तुम आईं
नींद टल गई
सपना मचल गया
लो आज फिर
नींद उचट गई
आज फिर
सपना टल गया !

दिन को
दिन के लिए
रात को
रात के लिए
नींद को
नींद के लिए
छोड़ दो अब
बहुत खलल हो गया !
***

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7 Responses to सपना टल गया- ओम पुरोहित की कविताएँ

  1. सरल भाषा में भावनाओं से छलछलाती कविताओं के साथ हम भी एक दूसरी दुनिया में चले गये जो कवि की नि हायत अपनी होती है |अच्छी कवितायेँ पढ़ने को मिली !शुक्रिया |

    ReplyDelete
  2. इन सुन्दर रचनाओं को प्रस्तुत करने के लिए आप दोनों को हार्दिक बधाई

    ReplyDelete
  3. Sabhee rachnayen ekse badhke ek hain,lekin sabse pahlee rachana behad achhee lagee!

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  4. sabhi kavitayen man bhavan hai badhai
    rachana

    ReplyDelete
  5. Om jee kii sabhi kavitaen achchha prabhav chhodtin hain,in behtareen rachnaon ke liye badhai deta hoon.

    ReplyDelete
  6. Om Purohit ji sabhi (6) kavitayen sundarta se buni gai hain aur dil ko chhoone men kaamyab hain.
    Meri or se unhen hardik Badhaiiii.

    ReplyDelete
  7. सभी कविताएँ बहुत उत्कृष्ट हैं. ओम जी को बधाई और शुभकामनाएँ.

    ReplyDelete

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