कविताएँ- संजय आचार्य 'वरुण'

पेंटिंग- अमित कल्ला

१.
पीड़ा को भी
नहीं देखा प्रत्यक्ष
किया है केवल
महसूस
जैसे तुमको
ईश्वर
***
२.
अचकचाकर
तोड़ दिया
जब तुमने
हमारा रिश्ता
रिश्ता तब भी था
हमारे बीच
कोई रिश्ता
न होने का
***
३.
तुम्हारे हाथों में
जो खुली है
वक्त की किताब
पृष्ठ हूँ उसका
मैं भी तो एक
अंकित है मुझ पर
जितने भी अक्षर
टकराकर
तुम्हारी आँखों से
बनकर अर्थ
ढल रहे हैं
ह्रदय में तुम्हारे

पृष्ठ हूँ
पलट दिया जाऊंगा
पर सुकून है
सहेजा तो रहूँगा
वक्त की किताब में
हमेशा
और
अर्थाया जाऊंगा
न जाने कितनी बार
***
४.
दर्द
अब नहीं देता
कोई अहसास
सहते-सहते
दर्द को
दर्द ही
हो गया हूँ जो
***
५.
मुझमे है
एक अनंत
या कि
मैं हूँ
एक अनंत में|

जन्मा होऊंगा
जिस विराट से मैं
क्या वही विराट
जनमता रहा है
मुझमे?
हर बार
जब भी उतरता हूँ
मैं
शब्द में
और
शब्द मुझमे
***
कवि, आलोचक एवं समीक्षक संजय आचार्य ’वरुण’ का जन्म ३ अगस्त १९८० को बीकानेर में हुआ. वरुण की एक काव्य पुस्तक ’मुट्ठी भर उजियारो’ (राजस्थानी) प्रकाशित हो चुकी है तथा आपका हिंदी काव्य संकलन 'सुन ओ ठहरे हुए एक दिन' शीघ्र प्रकाश्य है.

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13 Responses to कविताएँ- संजय आचार्य 'वरुण'

  1. पृष्ठ हूँ उसका
    मैं भी तो एक
    अंकित है मुझ पर
    जितने भी अक्षर
    टकराकर
    तुम्हारी आँखों से
    बनकर अर्थ
    ढल रहे हैं
    ह्रदय में तुम्हारे
    bahut sunder bhav aur shbdon ne kavita ko uttam bana diya hai

    ReplyDelete
  2. छोटी छोती बहुत उम्दा और गहरी रचनायें...हर रचना चिन्तन दे रही है...बधाई.

    ReplyDelete
  3. मैं अगर अनुज कहूं तो रिश्ता होगा लेकिन कवि कर्म में मुझसे विराट फलक पर सोचने वाले संजय आचार्य 'वरुणÓ इस तरह की कविताओं के माध्यम से हर बार खुद को साबित करते रहे हैं। मेरे लिये यह अनुभूतियों भरा है। संजयजी निरंतर रचना के सच को जीते रहें। हां, कविता आती है। इसके लिए कारखाने नहीं होते।

    ReplyDelete
  4. सभी क्षणिकाएं अच्छी है .....
    पर ये ज्यादा स्पर्श करती है ...
    पृष्ठ हूँ
    पलट दिया जाऊंगा
    पर सुकून है
    सहेजा तो रहूँगा
    वक्त की किताब में
    हमेशा
    और
    अर्थाया जाऊंगा
    न जाने कितनी बार

    एक बार फिर आपसे अनुरोध है वरुण जी से कहें अपनी क्षणिकाएं
    सरस्वती सुमन पत्रिका के लिए भी भेज ....

    ReplyDelete
  5. अचकचाकर
    तोड़ दिया
    जब तुमने
    हमारा रिश्ता
    रिश्ता तब भी था
    हमारे बीच
    कोई रिश्ता
    न होने का

    बहुत ही अद्भुत कहा है संजय..पहली बार आपकी कविताओं से यूं मुखातिब होते हुए अच्छा लग रहा है भाई नरेन्द्र जी का आभार

    ReplyDelete
  6. तुम्हारे हाथों में
    जो खुली है
    वक्त की किताब
    पृष्ठ हूँ उसका
    मैं भी तो एक...
    सभी क्षणिकाएँ बेहतरीन
    शुभकामनाएँ

    ReplyDelete
  7. अचकचाकर
    तोड़ दिया
    जब तुमने
    हमारा रिश्ता
    रिश्ता तब भी था
    हमारे बीच
    कोई रिश्ता
    न होने का....
    baahut achi lagi sabhi rachnaye...ye bahut pasnd aayi...bahut2 badhai

    ReplyDelete
  8. रिश्ता ना होने का रिश्ता ...कुछ ना होने पर ना होना ही कुछ हो जाता है ...
    शानदार !

    ReplyDelete
  9. sanjay jee ki kavitaen adbhut bhavon se pagee huee hain apne gehre artho se aakarshit karne men saksham hain. ummeed hai ki bhavishay men bhee aur sundar rachnaen padne ko milengee. badhai.

    ReplyDelete
  10. choteepar gahraee samete kshnikae bahut pasand aaee .
    aabhar

    ReplyDelete
  11. बेहतरीन क्षणिकाएँ ।

    ReplyDelete
  12. छोटी छोटी रचनाएँ सुन्दर हैं ,बधाई.

    ReplyDelete
  13. very nice click in every Poem . Every Poem is very Spectacular .

    ReplyDelete

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