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पृष्ठ हूँ उसका
ReplyDeleteमैं भी तो एक
अंकित है मुझ पर
जितने भी अक्षर
टकराकर
तुम्हारी आँखों से
बनकर अर्थ
ढल रहे हैं
ह्रदय में तुम्हारे
bahut sunder bhav aur shbdon ne kavita ko uttam bana diya hai
छोटी छोती बहुत उम्दा और गहरी रचनायें...हर रचना चिन्तन दे रही है...बधाई.
ReplyDeleteमैं अगर अनुज कहूं तो रिश्ता होगा लेकिन कवि कर्म में मुझसे विराट फलक पर सोचने वाले संजय आचार्य 'वरुणÓ इस तरह की कविताओं के माध्यम से हर बार खुद को साबित करते रहे हैं। मेरे लिये यह अनुभूतियों भरा है। संजयजी निरंतर रचना के सच को जीते रहें। हां, कविता आती है। इसके लिए कारखाने नहीं होते।
ReplyDeleteसभी क्षणिकाएं अच्छी है .....
ReplyDeleteपर ये ज्यादा स्पर्श करती है ...
पृष्ठ हूँ
पलट दिया जाऊंगा
पर सुकून है
सहेजा तो रहूँगा
वक्त की किताब में
हमेशा
और
अर्थाया जाऊंगा
न जाने कितनी बार
एक बार फिर आपसे अनुरोध है वरुण जी से कहें अपनी क्षणिकाएं
सरस्वती सुमन पत्रिका के लिए भी भेज ....
अचकचाकर
ReplyDeleteतोड़ दिया
जब तुमने
हमारा रिश्ता
रिश्ता तब भी था
हमारे बीच
कोई रिश्ता
न होने का
बहुत ही अद्भुत कहा है संजय..पहली बार आपकी कविताओं से यूं मुखातिब होते हुए अच्छा लग रहा है भाई नरेन्द्र जी का आभार
तुम्हारे हाथों में
ReplyDeleteजो खुली है
वक्त की किताब
पृष्ठ हूँ उसका
मैं भी तो एक...
सभी क्षणिकाएँ बेहतरीन
शुभकामनाएँ
अचकचाकर
ReplyDeleteतोड़ दिया
जब तुमने
हमारा रिश्ता
रिश्ता तब भी था
हमारे बीच
कोई रिश्ता
न होने का....
baahut achi lagi sabhi rachnaye...ye bahut pasnd aayi...bahut2 badhai
रिश्ता ना होने का रिश्ता ...कुछ ना होने पर ना होना ही कुछ हो जाता है ...
ReplyDeleteशानदार !
sanjay jee ki kavitaen adbhut bhavon se pagee huee hain apne gehre artho se aakarshit karne men saksham hain. ummeed hai ki bhavishay men bhee aur sundar rachnaen padne ko milengee. badhai.
ReplyDeletechoteepar gahraee samete kshnikae bahut pasand aaee .
ReplyDeleteaabhar
बेहतरीन क्षणिकाएँ ।
ReplyDeleteछोटी छोटी रचनाएँ सुन्दर हैं ,बधाई.
ReplyDeletevery nice click in every Poem . Every Poem is very Spectacular .
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