आँखों के नीचे
दो काले स्याह धब्बे
आकर ठहर गए
और नाम ही नहीं लेते जाने का
न जाने क्यों उनको
पसंद आया ये अकेलापन।
2. आँखे
आँखे जाने क्यों
भूल गई पलकों को झपकना
क्यों पसंद आने लगा इनको
आँखों में जीते-जागते
सपनों के साथ खिलवाड़ करना …
क्यों नहीं हो जाती बंद
सदा के लिए
ताकि ना पड़े इन्हें किसी
असम्भव को रोकना ।
3.
दुनिया ने जब भी दर्द दिया
तुमने सदा सँभाला मुझे
क्या सोचा है कभी
जो दर्द तुम दे गए
उसको लेकर मैं किधर जाऊँ?
ढ़ाल बनकर खड़े होते थे तुम
और अब हाथ में तलवार लिए खड़े हो
क्या कभी सोचा तुमने
कितने वार खाएँ हैं मैंने
इस बेदर्द जमाने के
तो क्या तुम्हारा वार जाने दूँगी खाली?
तो फिर
मत सोचो इतना
और चला डालो अपना भी वार
मत चूको
वरना रह जाएगी
तुम्हारी तमन्ना अधूरी
तुम जानते हो
हाँ, बहुत अच्छी तरह
कि मैं नहीं देख पाती किसी की भी
अधूरी तमन्नाएँ
उन्हीं के लिए तो जिंदा रही अब तक
सबकी तमन्ना पूरी कर
मंजिल तक ले जाना ही तो काम है मेरा
फिर तुमको कैसे निराश होने दूँ मैं
चलो तुम्हें भी तो
दिखा दूँ मंजिल का रास्ता
और फिर टूट जाएँ ये साँसे
तो मलाल ना होगा
टूटती इन साँसों के लबों पर
बस इक तेरा ही नाम होगा ।
4.
चेहरे पर पड़ी सिलवटें
आज पूछ ही बैठी
उनसे दोस्ती का सबब
मैं कैसे कह दूँ कि
तुम मेरे प्यार की निशानियाँ हो ।
निवास स्थान: ऑस्ट्रेलिया (सिडनी)
शिक्षा: हिन्दी व संस्कृत में स्नातकोत्तर उपाधि, बी० एड०, पी-एच०डी० (हिन्दी)
शोध-विषय: 'साठोत्तरी हिन्दी गज़लों में विद्रोह के स्वर व उसके विविध आयाम'।
विशेष: टेक्सटाइल डिजाइनिंग, फैशन डिजाइनिंग एवं अन्य विषयों में डिप्लोमा।
प्रकाशित पुस्तकें: तारों की चूनर ( हाइकु संग्रह), साठोत्तरी हिन्दी गज़ल में विद्रोह के स्वर
प्रकाशन: स्तरीय पत्र-पत्रिकाओं में कविता, कहानी, गीत, हाइकु, बालगीत, लेख, पुस्तक समीक्षा, आदि का अनवरत प्रकाशन। अनेक राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय अंतर्जाल पत्रिकाओं में रचनाओं एवं लेखों का नियमित प्रकाशित पत्रकाओं जैसे- लोक गंगा, उंदती, वस्त्र परिधान, अविराम, हाइकु दर्पण, कुछ ऐसा हो, तारिका,पाठक मंच बुलेटिन, भाषा मंजूषा आदि।
अपने स्वनिर्मित जालघर (वेबसाइट):
http://dilkedarmiyan.blogspot.com/ पर अपनी नवीन-रचनाओं का नियमित प्रकाशन।
अपने स्वनिर्मित जालघर (वेबसाइट):
http://drbhawna.blogspot.com/ पर कला का प्रकाशन
संपादन: हाइकु संग्रह- “चंदनमन” में, रामेश्वर काम्बोज हिमांशु जी के साथ १८ हाइकुकारों की हाइकु रचनाओं का संपादन.
सदस्य- संपादक समिति सिडनी से प्रकाशित "हिन्दी गौरव" मासिक पत्रिका
अन्य योगदान: स्वनिर्मित जालघर :
http://drkunwarbechain.blogspot.com/
http://leelavatibansal.blogspot.com/
संप्रति: सिडनी यूनिवर्सिटी में अध्यापन
अभिरुचि: साहित्य लेखन, अध्ययन,चित्रकला एवं देश-विदेश की यात्रा करना।
संपर्क: bhawnak2002@yahoo.co.in
bhawnak2002@gmail.com
sari kavitayen bahut hi mohak hai 1 aur 4 to bas kamal ki hai bhavna ji aap sada hi bahut achchha likhti hain
ReplyDeleterachana srivastava
sabhi kavitaayen bahut bhaavpurn, Bhawna ji ko badhai.
ReplyDeleteबेहतरीन रचनाएँ।
ReplyDeleteRachna ji main rachnayen dekh bhi nahi paayi aapki tippani aa bhi gayi vo bhi itni achi ki man kiya abhi bathkar kuch likhun aap sabka protsaahan hi hai jo aage badhne men madad karta hai hamesha apna pyara banaye rakhiyega...
ReplyDeleteShabnum ji aapka bahut2 abhaar aapko rachna pasnd aayin...
चारों रचनायें बहुत उम्दा...और भावपूर्ण हैं. भावना जी की कलम का जादू है..
ReplyDeleteसच्चाइयाँ बयाँ करती गहन रचनायें।
ReplyDeleteबहुत बधाई
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...!
ReplyDeleteek achchhi abhivaykti se pripoorn kavita ke liye bhawna jee ko badhai.
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