चित्रा सिंह की कविताएँ

१.

मैं एक बून्द
बारिश की
तुम्हारी हथेली पर गिरी
मोती बन गई।


२.

दराज में बन्द हैं पिता
दस्तख़त के साथ
तमाम दस्तावेजों में
जिनकी उपस्थिति
दर्ज़ करा दी जायेगी
बेहद जरुरी होने पर


३.
मेरे शहर की धूप में
बिखरे हुये हैं
कुछ मोती से दिन
छत की मुंडेर पर
बैठी है एक उदास शाम
चाँदनी सी बिछी हैं रातें
आंगन में
और
बूढे दरख्त पर
अब भी लटका हुआ है
मेरा आधा-अधूरा प्यार।


४.

बंद लिफाफे
की तरह
चले आते है लोग
वक्त-वेवक्त
मौसम-बेमौसम
पूछते
मेरे घर का पता।


५.

उम्मीद के दरवाजे
बंद हो गये हैं
ताले पड गये हैं
दूरियों के
इन्तजार की एक खिडकी
खुली है अब तक
जहाँ से आती है
धूप
हवा
बारिश
और तुम्हारी याद।


६.

पक्की मिट्टी वाली औरतें
सिन्दूर,पाजेब का पर्याय बन
लांघती हैं दहलीज
गढ़ती हैं नये आकार में
रोज़ खुद को
चक्की पर पिसती
बारीक और बारीक
चुल्हे पर सिकती दोनों पहर
भरती बर्तन भर
पानी सी झरती
ढुल जाती
आखरी बून्द तक
कई कई बार
धुली चादर सी
बिछ जाया करती
बिस्तर पर।
***
संक्षिप्त परिचयः चित्रा सिंह
चित्रा सिंह समकालीन साहित्य में अपना एक विशिष्ट स्थान रखती हैं. आपकी रचनाप्रक्रिया के मर्म को आपकी कविताओं में व्यक्त वस्तु चेतना, रूप संवेदन एवं शिल्पविधान के चित्रण में स्पष्टतः समझा जा सकता है.
हंस, वागर्थ, साक्षात्कार, समकालीन कविता, वसुधा, वस्तुतः दैनिक भास्कर, नवभारत, नईदुनिया, आँचलिक जागरण, लोकमत आदि में कविताओं और लेखों का प्रकाशन।
विगत दशक से आकाशवाणी भोपाल से निरन्तर कविताओं का प्रसारण के साथ-साथ दो कहानियाँ- नीलगिरी और छूटती परछाई, भी प्रसारित।
दूरदर्शन भोपाल में काव्य पाठ और युवा काव्य संध्या में भागीदारी, दूरदर्शन के काव्याँजली कार्यक्रम में निरन्तर कविताएँ प्रसारित।
सम्प्रतिः क्षेत्रीय शिक्षा संस्थान भोपाल में रसायन शास्त्र विभाग में सहायक प्राध्यापक
पताः
एम २७, निराला नगर
दुष्यंत कुमार मार्ग
भोपाल।

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14 Responses to चित्रा सिंह की कविताएँ

  1. रोज़ खुद को
    चक्की पर पिसती
    बारीक और बारीक
    चुल्हे पर सिकती दोनों पहर
    भरती बर्तन भर
    पानी सी झरती
    ढुल जाती
    आखरी बून्द तक
    sunder abhivyakti
    sari kavitayen bahut sunder hain
    badhai
    rachana

    ReplyDelete
  2. आदरणीय चित्रा सिंह जी को सादर अभिवादन - उनकी रचनाओं के बारे में कुछ कहना छोटा मुंह बड़ी बात होगी, पढवाने के लिए आभार.

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  3. bahut hi sunder bhav stri ki yehi niyati hai...

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  4. बहुत खूब ....!!

    सभी क्षणिकाएं प्रभावी हैं ......
    नरेंद्र जी चित्रा जी से कहियेगा सरस्वती-सुमन के लिए भी क्षणिकाएं भेजें जो क्षणिका विशेषांक निकल रहा है ...
    या उनका फोन न. उपलब्ध कराएं .....

    ReplyDelete
  5. जहाँ से आती है
    धूप
    हवा
    बारिश
    और तुम्हारी याद।

    bahut khub. Kitane sade aur sunder shabd.
    meena

    ReplyDelete
  6. बहुत सारगर्भित क्षणिकाएँ ... अंतिम विशेष असर छोडती हुई

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  7. सभी क्षणिकाएं एक से बढ़कर एक हैं ..आभार ।

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  8. बेहद खूबसूरत क्षणिकायें हैं सभी एक से बढकर एक हैं।

    ReplyDelete
  9. छोटी छोटी..किन्तु सशक्त रचनायें...बहुत उम्दा!! बधाई!

    ReplyDelete
  10. बेहतरीन क्षणिकाएँ ।

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  11. चित्रा सिंह की सभी कविताएं बहुत प्रभावकारी हैं, मन को छूती हैं। इतनी सुन्दर कविताओं के लिए चित्रा जी को और आपको बधाई !
    चित्रा जी का ई मेल आई डी मिल सकता है क्या ?

    ReplyDelete
  12. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  13. chitra jee ki bahut hee sargarbhit rachnaen padwane ke liye aabhar

    ReplyDelete

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