एक ग़ज़ल- दिगंबर नासवा


संक्षिप्त परिचय :
नाम : दिगंबर नासवा
जन्म : २० दिसंबर १९६०
जन्म स्थान : कानपुर उत्तर प्रदेश
विदेश आगमन की तिधि और देश : जून १९९९ पहले कैनेडा फिर दुबई
शिक्षा : चार्टेड अकाउंटेंट
मातृभाषा : हिंदी
प्रकाशित कृतियाँ : अंतर्जाल और विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में समय समय पर प्रकाशन
सम्मान : सर्वश्रेष्ट गज़ल लेखन पुरूस्कार २०१० परिकल्पना ब्लोगोत्सव
सम्प्रति : पिछले १० वर्षों से दुबई संयुक्त अरब अमीरात में
संपर्क : पी ओ बॉक्स : १७७७४, दुबई, यु ए ई फोन: +९७१ ५० ६३६४८६५

दिगंबर नासवा जी के शब्दों में-
बचपन आगरा और फरीदाबाद में बीता, शिक्षा भी फरीदाबाद में रह कर की, पढ़ने और लिखने का शौंक बचपन से ही रहा जो संभवतः माँ से विरासत में मिला. पिछले १२ वर्षों से पत्नी और २ बेटियों के साथ विदेश में हूँ और वर्तमान में एक अमेरिकन अंतर्राष्ट्रीय कंपनी में सी एफ ओ के पद पर कार्यरत हूँ. पिछले ४ वर्षों से अंतर्जाल में सक्रीय हूँ और अपने ब्लॉग http://swapnmere.blogspot.com के अलावा विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में लिखता रहता हूँ. जीवन के अनुभव को कविता या गज़ल के माध्यम से कहने भर का प्रयास करता हूँ अगर सफल रहता हूँ तो रचना नहीं तो कोरी बकवास समझ कर भूल जाता हूँ.

हवा पानी नही मिलता वो पत्ते सूख जाते हैं
लचीले हो नही सकते शजर वो टूट जाते हैं

मुझे आता नही यारों ज़माने का चलन कुछ भी
वो मेरी बात पे गुस्से में अक्सर रूठ जाते हैं

गुज़रती उम्र का होने लगा है कुछ असर मुझपे
जो अच्छे शेर होते हैं वो अक्सर छूट जाते हैं

अतिथि देव भव अच्छा बहुत सिद्धांत है लेकिन
अतिथि बन के आए जो मुसाफिर लूट जाते हैं

न खोलो तुम पुरानी याद के ताबूत को फिर से
कई लम्हे निकल के पेड़ पे फिर झूल जाते हैं

हमारे दिल के दरवाजे पे तुम दस्तक नही देना
पुराने घाव हल्की चोट से ही फूट जाते हैं
***
दिगंबर नासवा

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14 Responses to एक ग़ज़ल- दिगंबर नासवा

  1. दिगंबर नासवा जी,
    वाह क्या खूब लिखा है ..आप की ग़ज़लें हमेशा ही हृदय को छूती हैं ..
    इस शे'र ने तो कमाल कर दिया ...
    न खोलो तुम पुरानी याद के ताबूत को फिर से
    कई लम्हे निकल के पेड़ पे फिर झूल जाते हैं
    बहुत -बहुत बधाई |

    ReplyDelete
  2. गुज़रती उम्र का होने लगा है कुछ असर मुझपे
    जो अच्छे शेर होते हैं वो अक्सर छूट जाते हैं

    -अभी कहाँ जनाब....एक से एक गज़ब शेर निकाल रहे हैं...गुजरती उम्र होगी आपके दुश्मनों की...

    बहुत खूब गज़ल कही है, वाह!!!

    ReplyDelete
  3. wha Digemer ji Bhut sunder Abhiveykti h Aap ki sayri m Purnye Ghav hlki chot se bhi fut jate h,Dil k bhut bhiter se likha h.tebhi Itna khubsurt sheyr beba h, sadhu vad.

    ReplyDelete
  4. आखर-कलश का बहुत बहुत शुक्रिया इस गज़ल को लगाने के लिए ... हालांकि इस गज़ल में मुझसे काफिये की गलती हो गयी है जो गज़ल के जानकार बाखूबी समझ सकते हैं ... आशा है गज़ल लेखन का एक विद्यार्थी समझ कर बात का बुरा नहीं मानेंगे ...
    सुधा दी, समीर भाई और संगीता जी का शुक्रिया इसे पसंद करने के लिए ...

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  5. बढिया लगी नासवा जी की यह ग़ज़ल ! बहुत खूब !

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  6. मुझे आता नही यारों ज़माने का चलन कुछ भी
    वो मेरी बात पे गुस्से में अक्सर रूठ जाते हैं...
    नासवा जी की शायरी की खास बात ये है कि आप आम बोलचाल की भाषा का प्रयोग करते हुए बहुत गहरी बात कह जाते हैं...बधाई.

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  7. बहुत शानदार गज़ल...
    न खोलो तुम पुरानी याद के ताबूत को फिर से
    कई लम्हे निकल के पेड़ पे फिर झूल जाते हैं

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  8. हवा पानी नही मिलता वो पत्ते सूख जाते हैं...................
    ...............पुराने घाव हल्की चोट से ही फूट जाते हैं !!
    इन दो पंक्तियों के बीच न जाने कितने आयामों को कैद कर दिया है !

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  9. न खोलो तुम पुरानी याद के ताबूत को फिर से
    कई लम्हे निकल के पेड़ पे फिर झूल जाते हैं
    हमारे दिल के दरवाजे पे तुम दस्तक नही देना
    पुराने घाव हल्की चोट से ही फूट जाते हैं

    बेहद ख़ूबसूरत ग़ज़ल हे दिगंबर नासवा जी की....वे हमेशा बेहतरीन लिखते हैं.

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  10. अतिथि देव भव अच्छा बहुत सिद्धांत है लेकिन
    अतिथि बन के आए जो मुसाफिर लूट जाते हैं

    न खोलो तुम पुरानी याद के ताबूत को फिर से
    कई लम्हे निकल के पेड़ पे फिर झूल जाते हैं
    behad khub likha hai
    sahi kaha hai ki log aksar lut jate hain
    bahut bahut badhai
    saader
    rachana

    ReplyDelete
  11. न खोलो तुम पुरानी याद के ताबूत को फिर से
    कई लम्हे निकल के पेड़ पे फिर झूल जाते हैं

    क्या बात कही है...दिगंबर जी को पढना एक ऐसा अनुभव है जी से गुजरने को बार बार दिल करता है...क्या कमाल का लिखते हैं...वाह...

    नीरज

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  12. nasva jee ki gajal man ko gehre chhuti hai,badhai.

    ReplyDelete
  13. waah sir ji bahut achchhi gazal kahi hai ,,,,,,,,,,
    न खोलो तुम पुरानी याद के ताबूत को फिर से
    कई लम्हे निकल के पेड़ पे फिर झूल जाते हैं

    waaah .........

    ReplyDelete

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