१. जीवन भर जीवन की किताब के अपरिचित पाठ्यक्रम के अपठित अध्याय बार-बार पढने के बावजूद बीत जाते हैं हम उन अध्यायों के अनुत्तरित प्रश्नों के उत्तर ढूंढते-ढूंढते | २. सूरज के आने भर से नहीं होता सुबह का होना न ही नींद से उठ बैठना सुबह होना है उठता हूं नींद से देखने के लिए एक सुबह एक सुबह देखना चाहती है मुझे नींद से उठते हुए |
३. हर नदी की किस्मत में नहीं समंदर परंतु हर नदी में भरे हैं अथाह समंदर सूख जाएं भले ही रास्ते धार के पर बहती है एक अविरल धार | ४. झर झर झर गयी कुछ भी न रहा शेष सिवा एक स्मृति के झरने के |
५. उसके आने में कुछ न था न ही उसके जाने में लेकिन इस आने-जाने के बीच जो था वह कभी किसी शब्द में नहीं समा पाया | ६. कितने अच्छे दिन थे जब अच्छे हम थे अच्छा अच्छा लगता था सब कुछ लोग भी थे अच्छे अच्छे कितने बदल गए दिन अब बदल गए हम बदल गया सब कुछ बदल गए सब |
जन्म: 26 दिसंबर 1962
हिंदी और राजस्थानी में समान गति से लेखन ।
'सच के आस-पास' हिंदी कविता-संग्रह (राजस्थान साहित्य अकादमी से सुमनेश जोशी पुरस्कार से सम्मानित)
'माटी जूण' (राजस्थानी उपन्यास)
बाल साहित्य की कई पुस्तकें प्रकाशित ।
हिन्दी कविता-संग्रह ’छूटे हुए संदर्भ’ और राजस्थानी कहानी-संग्रह प्रकाशनाधीन ।
सम्पर्क : "प्रतीक्षा" २ डी २, पटेल नगर, बीकानेर(राज) मोबाइल : 0919413265800
email : poet_india@yahoo.co.in और poet.india@gmail.com
blogs : www.poetofindia.blogspot.com और www.hindi-k-sms.blogspot.com
सभी कविताएँ बहुत सुन्दर हैं | धन्यवाद|
ReplyDeleteअच्छी कविताएं हैं। हरेक में किसी एक शब्द का बार बार प्रयोग चमत्कृत करता है।
ReplyDeleteसभी कविताएँ बहुत सुन्दर हैं
ReplyDeleteआभार- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
नवनीत जी, बहुत मार्मिक हैं आपकी कविताएं... चुप हो जाने के बाद बोलने वाली। हर कविता अपने वाक्यांत के बाद गूंजनी शुरू होती है... बहुत-बहुत बधाई...
ReplyDeleteAti Sundar kavya kritiyan..padh kar achha laga.
ReplyDeleteबेहतरीन शब्दानुप्रयोग, ठिंगनी किंतु विस्त़त फैलाव की अनुभूति वाली उत्क़ष्ट रचनाएं, साधुवाद
ReplyDeleteउठता हूं नींद से
ReplyDeleteदेखने के लिए एक सुबह
एक सुबह देखना चाहती है
मुझे नींद से उठते हुए
sunder abhivyakti
उसके आने में कुछ न था
न ही उसके जाने में
लेकिन
इस आने-जाने के बीच
जो था
वह कभी
किसी
शब्द में नहीं समा पाया
bahut khub
badhai
rachana
BAHUT ACHCHHE PANDEY JI..ACHCHHI KAVITAAYEIN HAIN...!
ReplyDeleteनवनीत जी की सारी कवितायेँ भाव प्रवण .. व गूढ़ अर्थों को समेटे हुवे है ... बारिश की पहली छोटी छोटी फुहारों की तरह .तन मन भिगोती हुई रचनाएँ .
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया..
ReplyDeleteछोटे कलेवर की किन्तु प्रभावी और भावप्रवण अभिव्यक्ति..
गागर में सागर भरती सशक्त कविताएँ..
बधाई..
बेहतरीन रचनायें.
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