चंचला पाठक की कविताएँ

संक्षिप्त परिचयः
नाम : श्रीमती चंचला पाठक
जन्म : ९ फरवरी, १९७१
जन्मस्थान : गुरारू, जिला गया (बिहार)
शिक्षा : एम.ए. दर्शनशास्त्र, संस्कृत, बी.एड. पीएच.डी. शोधरत् (अथर्ववेद)
पेशा : शिक्षिका
अभिरुचि : लेखन

श्रीमती चंचला पाठक की काव्य प्रतिभा से प्रभावित होकर वरिष्ठ साहित्यकार श्री भवानी शंकर व्यास ‘विनोद’ ने कहा है ‘‘चंचला पाठक की सृजनधर्मिता, रचनात्मक बेचैनी, उसका कल्पना वैभव, निजता को सार्वभौमिकता से जोडने की उसकी ललक, शब्द-सम्पदा पर गज़ब का अधिकार, अछूते बिम्ब विधानों का रचाव आदि सब मिलकर आश्वस्त करते है कि यह कवयित्री भविष्य में एक अत्यन्त सफल रचनाकार के रूप में सामने आएगी।’’

हिन्दी, उर्दू, अवधी और संस्कृत भाषा पर समान अधिकार रखने वाली श्रीमती चंचला पाठक समकालीन काव्यधारा में अपना एक अलग फलक रखती हैं और पल-प्रतिपल जीवन की बुनावट में कविता तलाशती उनकी कल्पना कविता की जड में भी कविता के चटख रंगों का कोलाज बनाती है। प्रस्तुत है उनकी कुछ कविताएँ......
१.

मैं सृजन हूँ

आकार की नियति ही है-

समाहित हो जाना अन्यत्र।

कहाँ तक ढूँढोगे-

स्वयं की परिभाषा?

आओ, आलिंगन कर लो

मैं ही सृजन हूँ।

दृष्टि का आधार चक्षुष् हैं

प्रत्यक्ष करना ही श्रेय है।

असीम निर्विकल्प स्वयं को तुम

मुझ दर्पण में तो देखो

मैं भी सृजन हूँ।

सन्नाटे सिरजती गूढ़ तन्मयता

अनन्त का आलम्बन

फिर भी निर्भय अडिग मैं

संरक्षित! तुम्हारे ही अंतः मैं

क्योंकि, मैं तो सृजन हूँ।
**


२.

सौदा

गिद्ध को,

हृदय का संपूर्ण भाग

देना अभिशप्त था,

अविचल सत्य भी।

लेकिन,

वह देवात्मा नही

मानवी थी;

स्वभाववश,

बस अंश मात्र!

बचा कर

रखली;

सोचा,

देवात्मा उनके

श्री चरणों में

यह अंश

अर्पित करूँगी;

परन्तु गिद्ध की स्वीकृति से

सरल थी-

गिद्ध तो गिद्ध होता ही होता है

पर आश्चर्य!

गिद्ध ने स्वीकृति दे दी!

डसने कहा

‘‘ठीक है; लेकिन-

दोनो आँखें मुझे देते जाना!’’
**


३.

काश!

इंसान,

फिर भी भागता रहा

बदहवास!

घनाभूत, जंगली

और टेढे-मेढे रास्तों पर।

वहीं कहीं-

पसरती गई सासें

इन्हीं रास्तों के इर्द-गिर्द

फिर,

इन्हें झुठलाता हुआ सा

एक अहसास!

रेंगता रहा-

पल-पल के अंतस में।

बुझती-सी चेतना

चिढ़ती तन्मयता।

ठहरे से बोल

चीखती हुई ख़ामोशियाँ

साथ ही

ऊँघती हुई-सी

ज़िन्दगी।

काश!

इंसान ढूँढता

पगडण्डी के बीचों-बीच

नग्न बचपन के

कटोरे में पसरे

ब्रह्मांड के समान भूख का

खो जाना;

और, वहीं कहीं

किलकती

इक नन्ही सी मुस्कान।
**


४.

तुम स्पन्दित हो

कभी देखा है?

मौन में विलीन होते हुए

हृदय के स्पन्दन को?

शब्दों को कौन कहे? (!!)

परन्तु,

भ्रमित मत हो जाना

यहाँ व्यक्ति को ‘मृत’ की

संज्ञा से नहीं

बल्कि

किसी भी विस्मयात्मक शब्द की

संज्ञा से

अभिहित किया जाता है।

और

प्रायः प्रकृतिवश,

आश्चर्य के साथ।

दुःख का प्रकटन

क्षण-मात्र का होता है।

फिर हावी जो जाती है

वही प्रतिदिनात्मक दिनचर्या

और निष्ठुर सांसारिकता।

परन्तु

मैं आज भी उस स्पन्दन की

छुअन को

अपनी उँगलियों के पोरों पर लिए,

भटक रही हूँ

अनवरत

जाने क्यूँ

ऐसा लगता है,

बार-बार,

कि हौले से

कोई इन्हें

अपनी हथेलियों पर

उतार लेगा।

और,

फिर

पत्थरों की छाती में कैद,

मोम-सी स्निग्धता से-लबरेज

संवेगों का उछाह

इस स्पर्श की

गर्मास से

तरल हो,

आँखों के कोरों से,

निकल पडेगा!

चुपके से

निःशब्द!!

हाँ निकल पडेगा वह स्पन्दन

और,

आखिर तोड ही देगा

इस मौन के

कारागार को

फिर

सनेह की रिमझिम में

टप-टप-टप

की लय से

बोल पडेगा

सिसकियों के

सरगम के लय में ‘वह’

सुनो- ‘‘तुम भी स्पन्दित हो!’’
***
(काव्य संकलन 'खंडहरों की ओटों से...' से उद्धृत)

Posted in . Bookmark the permalink. RSS feed for this post.

9 Responses to चंचला पाठक की कविताएँ

  1. बहुत अच्छी पकड़ है चंचला जी की ......
    सशक्त कवितायेँ ....

    ReplyDelete
  2. चरों कविताएँ बहुत सुन्दर हैं| धन्यवाद|

    ReplyDelete
  3. विचारोत्तेजक कविताएं।

    ReplyDelete
  4. रचनाएं प्रेरक और प्रबल प्रवाह युक्त हैं।
    प्रकाशन के लिए साधुवाद!
    =======================
    सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी
    ======================

    ReplyDelete
  5. सारगर्भित कविताओं के लिए आभार।

    ReplyDelete
  6. sunder bhav ki bhrabhavi kavita
    rachana

    ReplyDelete
  7. एक अजीब सा नयापन है ... बधाई

    ReplyDelete
  8. charo kavitai kuch sochne ko majboor karti h. acchi kavitao k liye sadhuwad.

    ReplyDelete

आपकी अमूल्य टिप्पणियों के लिए कोटिशः धन्यवाद और आभार !
कृपया गौर फरमाइयेगा- स्पैम, (वायरस, ट्रोज़न और रद्दी साइटों इत्यादि की कड़ियों युक्त) टिप्पणियों की समस्या के कारण टिप्पणियों का मॉडरेशन ना चाहते हुवे भी लागू है, अतः आपकी टिप्पणियों को यहाँ पर प्रकट व प्रदर्शित होने में कुछ समय लग सकता है. कृपया अपना सहयोग बनाए रखें. धन्यवाद !
विशेष-: असभ्य भाषा व व्यक्तिगत आक्षेप करने वाली टिप्पणियाँ हटा दी जायेंगी।

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

About this blog

आखर कलश पर हिन्दी की समस्त विधाओं में रचित मौलिक तथा स्तरीय रचनाओं को स्वागत है। रचनाकार अपनी रचनाएं हिन्दी के किसी भी फोंट जैसे श्रीलिपि, कृतिदेव, देवलिस, शुषा, चाणक्य आदि में माईक्रोसोफट वर्ड अथवा पेजमेकर में टाईप कर editoraakharkalash@gmail.com पर भेज सकते है। रचनाएं अगर अप्रकाशित, मौलिक और स्तरीय होगी, तो प्राथमिकता दी जाएगी। अगर किसी अप्रत्याशित कारणवश रचनाएं एक सप्ताह तक प्रकाशित ना हो पाए अथवा किसी भी प्रकार की सूचना प्राप्त ना हो पाए तो कृपया पुनः स्मरण दिलवाने का कष्ट करें।

महत्वपूर्णः आखर कलश का प्रकाशन पूणरूप से अवैतनिक किया जाता है। आखर कलश का उद्धेश्य हिन्दी साहित्य की सेवार्थ वरिष्ठ रचनाकारों और उभरते रचनाकारों को एक ही मंच पर उपस्थित कर हिन्दी को और अधिक सशक्त बनाना है। और आखर कलश के इस पुनीत प्रयास में समस्त हिन्दी प्रेमियों, साहित्यकारों का मार्गदर्शन और सहयोग अपेक्षित है।

आखर कलश में प्रकाशित किसी भी रचनाकार की रचना व अन्य सामग्री की कॉपी करना अथवा अपने नाम से कहीं और प्रकाशित करना अवैधानिक है। अगर कोई ऐसा करता है तो उसकी जिम्मेदारी स्वयं की होगी जिसने सामग्री कॉपी की होगी। अगर आखर कलश में प्रकाशित किसी भी रचना को प्रयोग में लाना हो तो उक्त रचनाकार की सहमति आवश्यक है जिसकी रचना आखर कलश पर प्रकाशित की गई है इस संन्दर्भ में एडिटर आखर कलश से संपर्क किया जा सकता है।

अन्य किसी भी प्रकार की जानकारी एवं सुझाव हेत editoraakharkalash@gmail.com पर सम्‍पर्क करें।

Search

Swedish Greys - a WordPress theme from Nordic Themepark. Converted by LiteThemes.com.