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“माँ सरस्वती-शारदा”
ॐ श्री गणेशाय नमः !
या कुंदेंदु तुषार हार धवला, या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणा वरदंडमंडितकरा या श्वेतपद्मासना |
याब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवै सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निश्शेषजाढ्यापहा ||
या कुंदेंदु तुषार हार धवला, या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणा वरदंडमंडितकरा या श्वेतपद्मासना |
याब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवै सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निश्शेषजाढ्यापहा ||
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सम्पादक मंडल
- Narendra Vyas
- मन की उन्मुक्त उड़ान को शब्दों में बाँधने का अदना सा प्रयास भर है मेरा सृजन| हाँ, कुछ रचनाएँ कृत्या,अनुभूति, सृजनगाथा, नवभारत टाईम्स, कुछ मेग्जींस और कुछ समाचार पत्रों में प्रकाशित हुई हैं. हिन्दी साहित्य, कविता, कहानी, आदि हिन्दी की समस्त विधाएँ पढने शौक है। इसीलिये मैंने आखर कलश शुरू किया जिससे मुझे और अधिक लेखकों को पढने, सीखने और उनसे संवाद कायम करने का सुअवसर मिले। दरअसल हिन्दी साहित्य की सेवा में मेरा ये एक छोटा सा प्रयास है, उम्मीद है आप सभी हिन्दी साहित्य प्रेमी मेरे इस प्रयास में मेरा मार्गदर्शन करेंगे।
तुम कहती हो
ReplyDeleteमुझसे प्रेम करती हो
मै कहता हूँ
तुमसे प्रेम करता हूँ
क्या कहने भर से प्रेम होता है
तो मै एक हज़ार बार तुम से प्रेम कर चुका हूँ
फिर तुम्हारा विश्वास डगमगाता क्यू है?
प्रेम में ये सब है
तो क्यू प्रेम
प्रेम से अलग हो जाता है?
KYA KAHUN NISHABD HOON BAHUT SUNDER PREM KAVITAYEN
प्रेम पर बहुत सुन्दर और सारगर्भित क्षणिकाएं
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी क्षणिकाएं हैं....
ReplyDeleteसुंदर क्षाणिकाएँ
ReplyDeletebahut sundar...prem ko bahut hi sundar tarike se paribhashit kiya hai ...
ReplyDeleteकहते है
ReplyDeleteप्रेम ईश्वर है
प्रेम साधना है
प्रेम भक्ति है
प्रेम इबादत है
प्रेम आस्था है
प्रेम में ये सब है
तो क्यू प्रेम
प्रेम से अलग हो जाता है?
.........
प्रेम कभी प्रेम से अलग नहीं होता , जो दिखता है वह हमेशा सच नहीं होता , मन को प्रेम समझता है, जो ना समझे वह प्रेम कहाँ !
कहते है
ReplyDeleteप्रेम ईश्वर है
प्रेम साधना है
प्रेम भक्ति है
प्रेम इबादत है
प्रेम आस्था है
प्रेम में ये सब है
तो क्यू प्रेम
प्रेम से अलग हो जाता है?
sach hi to kaha aapne..kyun aisa hota hai!
प्रेम
ReplyDeleteको शब्दों में बाँध पाना
कभी भी सहज नहीं रहा
लेकिन
भ्रम टूटता सा नज़र आ रहा है
जो भी लिखा / कहा है
सब स्वाभाविक लग रहा है ...
अभिवादन .
Bahut badhiya kshanikayen Suman ji...Bahut hi sarthak tathya apne kavita ke roop me rakkha hai yahan...dil khush ho gaya padh kar...
ReplyDeleteप्रेम, सिर्फ प्रेम है
निःस्वार्थ,नि:शब्द,निराकार
कुछ भी नष्ट नहीं होता प्रेम में
नष्ट होते है सिर्फ हम
अचेतन में दबी रहती है हमारी यादें, टूटे सपने
मासूम प्रसन्नताएँ,उजड़ी नींदे
उत्सवों मेलो पर
बाहर आती है कभी-कभी
प्रेम के जर्जर द्वार से
मौन उदासी के अहाते के आरपार
Bahut khoob hain har panktiyan...
प्रेम पर लिखीं ये क्षणिकाएँ बहुत अच्छी लगी । प्रेम ही सब कुछ ।
ReplyDeleteसुमन जी कविता प्रेम से भी बडी होती है क्योंकि प्रेम को कविता में लिखा जाता है.
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