कविता मेरे लिये उस बारिश के समान है जो बरसने के बाद शीतलता देती है। पर बारिश के पहले की असह्य गर्मी,उमस,छटपटाहट और घुटन की वेदना को मैनें लम्बे अरसे तक महसूस किया है।पर आखिर एक दिन बादल खुल्कर बरसे और तब से आज तक बरसात का ये दौर अनवरत जारी है और कविता रूपी ये बूँदें मुझे हर मौसम में शीतलता पहुँचातीं हैं।
वीणा,अक्षरा,साक्क्षात्कार,भाषा,सार्थक,भाषा-सेतु,ताप्ती-लोक,हरिगंधा सहित लगभग सभी महत्वपूर्ण पत्रिकाओं में रचनाओं का नियमित प्रकाशन होता रहा है। एक अनुवादक भी हूँ। हिन्दी-गुजराती परस्पर अनुवाद भी नियमित प्रकाशित होता रहता है।
बस इतना ही चाहती हूँ कि मेरी कविताएं झरमर बरसात की तरह बरसें और अगर मेरे साथ-साथ औरों को भी शीतल करती हैं तो यही उनकी और मेरे कवि कर्म की सार्थकता है। जीवन के क्षण-प्रतिक्षण कभी महत्वहीन से लगते हैं तो कभी गुलाब जामुन की मिठास से सरोबार तो कभी किसी वृद्ध की आँख से मोतियाबिंद में ठहर जाते हैं एक फ्लश की तरह. इन्ही क्षणों को संजोये जिन्दगी के वटवृक्ष की अनछुई कोंपलों पर ठहरी अनुभवों के इन्द्रधनुषीय रंगों में भीगी डॉ. मालिनी गौतम की कुछ क्षणिकाएं.....
जिंदगी एक : अनुभव अनेक
(एक)
जिंदगी......
तवे पर
छन्न से गिरती
पानी की बूँद सी...
जो तेजी से कुछ देर
गोल-गोल घूमकर
फक्क से हो जाती है
अस्तित्वहीन !
(दो)
जिंदगी......
किसी बुढ़िया के
पोपले मुँह सी...
जो आज भी
सहेजे हुए है
बरसों पहले खाये
गुलाबजामुन की मिठास !
(तीन)
जिंदगी......
पेड़ के तने में
लगातार ठक-ठक
करते कठफोड़वा सी...
जो आखिर
बना ही लेता है सुराख
अपने रहने के लिये !
(चार)
जिंदगी......
किसी वृद्ध की आँखों के
मोतियाबिन्द सी...
जिसे समय पर ना
निकाला जाए
तो फैल कर
बन जाता है अँधेरा
हमेशा के लिये !
(पाँच)
जिंदगी......
चैत्र के महिने में
नीम पर से झरते
सफेद तूरे/कसैले फूलों सी..
जिन्हें मैं हौले से
चबा लेती हूँ
बरफी समझकर !
(छह)
जिंदगी......
माँ के बगल में
सोये नवजात शिशु सी...
जिसे नींद में हँसता देख
मिट जाते हैं
सारे अवसाद/विषाद !
(सात)
जिंदगी......
खेत में झुकी हुई
गेहूँ की सुनहली बालियों सी....
जिन्हें चूमकर
किसान सो जाता है
गहरी नींद/निश्चिंत !
(आठ)
जिंदगी......
भूकंप से बेघर हुए
उन बच्चों सी...
जो चुपचाप बैठे हुए
कर रहें हैं इंतजार
फूड पैकेट्स का !
(नौ)
जिंदगी......
कुएँ पर पानी भरती
पनिहारिन की रस्सी सी...
जो घिस-घिस कर
छोड़ देती है पत्थर पर
अमिट निशान !
(दस)
जिंदगी......
किसी परदानशीं औरत की आँखों सी...
जिनमें डूबने वाला
कभी पहुँच नहीं पाता
किनारों तक !
***
जिंदगी......
ReplyDeleteभूकंप से बेघर हुए
उन बच्चों सी...
जो चुपचाप बैठे हुए
कर रहें हैं इंतजार
फूड पैकेट्स का
bahut hi sunder .naye bim ke sath
rachana
जिंदगी......
ReplyDeleteकुएँ पर पानी भरती
पनिहारिन की रस्सी सी...
जो घिस-घिस कर
छोड़ देती है पत्थर पर
अमिट निशान !
ज़िंदगी का बहुत ही सुंदर बिम्ब रचा है...
ज़िन्दगी को बखूबी परिभाषित किया है।
ReplyDeleteज़िंदगी पर लिखी सारी क्षणिकाएं बहुत गहन हैं ...सारी एक से बढ़ कर एक ...अच्छे बिम्ब प्रयोग किये हैं ..
ReplyDeleteजिंदगी......
ReplyDeleteकिसी परदानशीं औरत की आँखों सी...
जिनमें डूबने वाला
कभी पहुँच नहीं पाता
किनारों तक!..........
अक्षरशः सत्य!सम्पूर्ण जीवन जी लेने के बाद भी ऐसा ही लगता है ,कि कहीं और पहुंचना बाकी था,और शायद ये यात्रा कभी समाप्त ही नहीं होती!कभी किनारों तक नहीं पहुँचती!फिर भी इन गहराइयों को जीने में बड़ा ही आनंद है
डा.मालिनी गौताम की "ज़िन्दगी" शीर्षक गुंथी दस अच्छी कविताएं-सटीक शब्द चित्र हैं ! डा.मालिनी गौताम व आखर कलश के सम्पाद्क द्वय को बधाई !
ReplyDeleteबस इतना कि यथार्थ को सार्थ करती रहे.....सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए बधाई......
ReplyDeleteमालिनी जी क्षणिकाएं अच्छी हैं। पर बिम्ब की दृष्टि से उनमें एक दोष है। जिसे उन्होंने बिम्ब लिया है वही तो जिंदगी है। हर रचना में जो 'सी ' आया है उसकी जरूरत ही नहीं है। उदाहरण के लिए
ReplyDeleteजिंदगी......
कुएँ पर पानी भरती
पनिहारिन की रस्सी सी...
जो घिस-घिस कर
छोड़ देती है पत्थर पर
अमिट निशान !
को अगर इस तरह पढ़ें-
जिंदगी......
कुएँ पर पानी भरती
पनिहारिन की रस्सी...
जो घिस-घिस कर
छोड़ देती है पत्थर पर
तो यह ज्यादा प्रभाव छोड़ती है। मालिनी जी अगर अपनी इन रचनाओं को स्वयं इस दृष्टि से देखेंगी तो ये और अधिक प्रभावशाली बन पड़ेंगीं।
अमिट निशान !
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (21-4-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
सारी क्षणिकाएं बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी हैं...
ReplyDeleteजिंदगी को परिभाषित करती क्षणिकाये प्रभावी और सार्थक अर्थ देती हुई ....बधाई
ReplyDeleteजिंदगी......
ReplyDeleteतवे पर
छन्न से गिरती
पानी की बूँद सी...
जो तेजी से कुछ देर
गोल-गोल घूमकर
फक्क से हो जाती है
अस्तित्वहीन !
कितना बड़ा सच!
ज़िंदगी के सभी बिंब नये, सुंदर एवं प्रभावी।
डॉक्टर साहिबा ! ज़िंदगी में ये विविध चित्र-विचित्र रंग न हों तो वह फीकी लगेगी. पतझड़ के बाद के नव पल्लव कितना आल्हादित करते हैं मन को .....आपने कई रंगों को समेटने का सफल प्रयास किया है .....यह आपकी अनुभूतियों और अभिव्यक्ति का कमाल है ...राजेश जी की बात काबिले गौर है
ReplyDeleteजिंदगी......
माँ के बगल में सोया
एक
नवजात शिशु ...
जिसे नींद में हँसता देख
मिट जाते हैं
सारे अवसाद......विषाद......
अब यह अधिक प्रभावकारी है
बहुत प्रभावशाली ढंग से पेश किए गए हैं ज़िन्दगी के विभिन्न रंग...
ReplyDeleteलेखिका डा. मालिनी जी को बधाई.
सारगर्भित जीवन के अनुभवों को क्षणिकाओं में अति सुन्दरता से पिरोकर कवयित्री ने प्रशंसनीय कार्य किया है |
ReplyDeleteसुधा भार्गव
बहुत सुन्दर - जीवन पर ये अलग अलग बिम्बो से नजर डाल कर लिखी क्षणिकाएं ... शुक्रिया इन्हें शेयर करने के लिए..
ReplyDeleteसारी क्षणिकाएं बहुत खूबसूरत...एक हंसती हुई जिंदगी की तरह...
ReplyDelete• रचना जी, नवनीत जी,संगीता जी,आपको मेरी क्षणिकाएँ अच्छी लगीं मैं आपकी आभारी हूँ........
ReplyDelete• वन्दना जी, चर्चा मंच पर रचनाओं को स्थान देने के लिये आपका बहुत-बहुत धन्यवाद.....
• श्री राम जी, ओम पुरोहित जी ,राजीव जी ,आप सबकी प्रतिक्रियाएँ मेरे लिये अमूल्य हैं.........उत्साहवर्धन के लिये धन्यवाद ...
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• राजेश जी आपका सुझाव सचमुच बड़ा अच्छा है......कृपया भविष्य में भी इसी तरह मार्गदर्शन देते रहियेगा.......धन्यवाद..
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• डॉक्टर कौशलेन्द्र जी आपकी प्रतिक्रियाओं की हमेशा प्रतीक्षा रहती है.........आभार....
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• शरद जी,प्रवेश सोनी जी,वन्दना मुकेश जी,शाहिद मिर्जा जी ,सुधा जी,डॉ. नूतन जी.......मुझे बड़ा अच्छा लगा कि आप सभी नें मेरी क्षणिकाओं को पढ़ा और सराहना की ......कृपया इसी तरह अपनें विचारों से अवगत कराते रहियेगा....धन्यवाद्
बहुत अच्छी क्षणिकाएं । ज़िंदगी एक,रूप अनेक ।
ReplyDeleteअनूठे बिम्बों से सजी जिंदगी ...
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत ..
बहुत सुन्दर... साधुवाद
ReplyDeleteबेहतरीन क्षणिकाएँ ....बिलकुल जीवंत...
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