जन्म: २७ जून १९५५ को पीलीभीत में.
शिक्षा: संस्कृत साहित्य में स्नातकोत्तर उपाधि, स्वातंत्र्योत्तर संस्कृत साहित्य पर शोध, पत्रकारिता और वेब डिज़ायनिंग में डिप्लोमा।
पीलीभीत (उत्तर प्रदेश, भारत) की सुंदर घाटियों जन्मी पूर्णिमा वर्मन को प्रकृति प्रेम और कला के प्रति बचपन से अनुराग रहा। मिर्ज़ापुर और इलाहाबाद में निवास के दौरान इसमें साहित्य और संस्कृति का रंग आ मिला। पत्रकारिता जीवन का पहला लगाव था जो आजतक साथ है। खाली समय में जलरंगों, रंगमंच, संगीत और स्वाध्याय से दोस्ती, 1995 से यू ए ई में।
कार्यक्षेत्र :
पिछले पचीस सालों में लेखन, संपादन, फ्रीलांसर, अध्यापन, कलाकार, ग्राफ़िक डिज़ायनिंग और जाल प्रकाशन के अनेक रास्तों से गुज़रते हुए फिलहाल संयुक्त अरब इमारात के शारजाह नगर में साहित्यिक जाल पत्रिकाओं 'अभिव्यक्ति' और 'अनुभूति' के संपादन और कला कर्म में व्यस्त। इसके अतिरिक्त वे हिंदी विकिपीडिया की प्रबंधक भी हैं।
दिल्ली में भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद, साहित्य अकादमी तथा अक्षरम के संयुक्त अलंकरण "प्रवासी मीडिया सम्मान", जयजयवंती द्वारा जयजयवंती सम्मान तथा रायपुर में सृजन गाथा के "हिंदी गौरव सम्मान" से विभूषित।
प्रकाशित कृतियाँ :
कविता संग्रह : 'वक्त के साथ'
वैसे तो सम्मानिया पूर्णिमा जी किसी परिचय की मोहताज़ नहीं पर उनके बारे में दो शब्द भी लिखना कलम का सौभाग्य होगा. आज उन्ही की दो कविताएँ आपके समक्ष रखकर आखर कलश गौरवान्वित हो रहा है.
१- राग देश
हवाओं में
फिर गुनगुनाया है मौसम
बहका है वसंत की खुशबू से
हौले हौले बिखरा है शहर में
फूलों की क्यारी में
सागर में
नहर में।
रगों में हलचल सी है
आरतियाँ गुजर रही हैं नसों से
धमनियों में बज रहे हैं मजीरे
साँसों से गुजर रहे हैं ढोल
सड़कों पर उफन रही है भीड़
घरों में बस गया है चैत्र
मन में रच रहा है उत्सव कोई
जन्म ले रही है
राग देश की नई गत
तुम प्रवासी नहीं हो मन
२- मधुमास
गुलमोहर में
अभी अभी फूटी हैं कोपलें
बोगनविला झूमकर
मिल रही गले
सफेद पंखुरियो से सजी
दीवार दिखती है- रूपमती
कार पर झूलते हैं गुच्छे
धूप में
आकार लेने लगे है
वासंती सपने
मधुमक्खियाँ गढ़ने लगी हैं
शहद के आगार
कुहुकती है कोयल
बार बार
दिन में- भरने लगा है मधु मास
उत्सव उत्सव रचा है हर ओर
३- चैत्र की पहली रात
मखमली रजाई तहाकर
अभी अभी बाहर आई है
मौसम की पहली रात
करती हुई
चैत्र का पहला स्नान
ओस की बूँदों से
झरते है धीमे
खजूर के पेड़ों से
सफ़ेद बारीक फूल
सर् सर् सर्
पृथ्वी की श्यामलता पर
रचते रंगोली
आसमान डूबा है
घनी सुनहरी रोशनी में
तारे दिखाई नहीं देते
गाड़ियाँ लिपटी हैं सड़कों से
आया
घर लौटने का समय
रात गहराने लगी है।
***
कविता पर वेबवीवर की ऐसी मार है कि.... :)
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति ..सुन्दर मौसमी कविताएँ
ReplyDeleteकविताओं के उपर वेब साईट के नाम आ रहे हैं ..जिससे पढने में दिक्कत हो रही है
Mukhmali shabdon mein sooryakiran se piroyi hai man ki bhavnayein Hamri Poornima ji ne. Har ek bimb , Subah ke ugte sooraj ki pahli kiran se lekar dhalte sooraj ki aakhri kiran Tak ka. Anupam!
ReplyDeletebahut acchi prastuti..padh kar jhoom gaya.man utsav ke annnd mein vicharan karne laga...madhumas shayad man ke bheetar hi hilorein mar raha...
ReplyDeleteपूर्णिमा वर्मन एक विदुषी कवयित्री है, उनकी रचनाओं को पढ़ना सदा सुखद रहता है।
ReplyDeleteपूर्णिमा वर्मनको पहले भी पात्र पत्रिकाओं में पढ़ती रही हूँ ....
ReplyDeleteइनकी रचनायें स्पर्श करती हैं .....
झरते है धीमे
खजूर के पेड़ों से
सफ़ेद बारीक फूल
सर् सर् सर्
पृथ्वी की श्यामलता पर
रचते रंगोली
वाह ....!!
teeno rachnaye man-bhawan lagi. purnima ji ke bare me vistrit jaankari mile. aabhar.
ReplyDeleteबहुत ही उच्च कोटि की मनभावन कवितायेँ पढ़ने को मिलीं ! आदरणीया पूर्णिमा जी को बहुत-बहुत बधाई.......
ReplyDeleteवाह पूर्णिमा जी बधाई आपकी कविताएं भुजिया बीकानेर वाला आनंद दे रही हैं |वाकई आपकी लोकप्रियता का अंदाजा खुद आपको भी नहीं है |बहुत बहुत शुभकामनाएं |आपके गीतों की पतंगे बीकानेर में भी यूँ ही सदैव उड़तीं रहें |
ReplyDeleteपूर्णिमा वर्मन जी आप कि कवितायें बहुत सुन्दर हैं
ReplyDeleteबहुत बहुत शुभ कामना
आपकी रचनाएँ बहुत अच्छी लगी. प्रेरणाप्रद हैं. मेरी बधाई स्वीकारें.
ReplyDeleteपूर्णिमा वर्मन जी की तीनों कविताएं बहुत सुन्दर हैं. नरेन्द्र व्यास जी, बेहतरीन प्रस्तुति के लिए बधाई तथा शुभकामनाएं !
ReplyDeletebahut sundar....
ReplyDeleteकुछ लोग जीते जी इतिहास रच जाते हैं कुछ लोग मर कर इतिहास बनाते हैं और कुछ लोग जीते जी मार दिये जाते हैं फिर इतिहास खुद उनसे बनता हैं बहुत मार्मिक रचना..बहुत सुन्दर...नवरात्रा की आप को शुभकामनायें!
ReplyDeleteपूर्णिमा जी गीत बहुत खूब हैं
ReplyDeleteबधाई सादर
रचना
पूर्णिमा जी गीत बहुत खूब हैं
ReplyDeleteबधाई सादर
रचना
तीनों रचनाएँ ही मन-भावन हैं ... एक सांस में पढ़ गयी सारी...आभार पूर्णिमा दी...
ReplyDeleteरचनाएँ पसंद करने के लिये सभी का हार्दिक आभार...
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