आपका ब्लॉग “उड़नतश्तरी” हिन्दी ब्लॉगजगत का विश्व में सर्वाधिक लोकप्रिय नाम है एवं आपके प्रशंसकों की संख्या का अनुमान मात्र उनके ब्लॉग पर आई टिप्पणियों को देखकर लगाया जा सकता है.
आपका लोकप्रिय काव्य संग्रह ‘बिखरे मोती’‘ वर्ष २००९ में शिवना प्रकाशन, सिहोर के द्वारा प्रकाशित किया गया. अगला कथा संग्रह ‘द साईड मिरर’ (हिन्दी कथाओं का संग्रह) प्रकाशन में है और शीघ्र ही प्रकाशित होने वाला है.
सम्मान: आपको सन २००६ में तरकश सम्मान, सर्वश्रेष्ट उदीयमान ब्लॉगर, इन्डी ब्लॉगर सम्मान, विश्व का सर्वाधिक लोकप्रिय हिन्दी ब्लॉग, वाशिंगटन हिन्दी समिती द्वारा साहित्य गौरव सम्मान सन २००९ एवं अनेकों सम्मानों से नवाजा जा चुका है.
इंटरनेट तथा ब्लाअग जगत में उड़नतश्तरी के नाम से अपना बहुचर्चित ब्लॉग चलाने वाले श्री समीर लाल समीर की लघु उपन्याटसिका ’देख लूँ तो चलूँ’ का हाल ही में विमोचन जबलुपर में देश के शीर्ष कहानीकार श्री ज्ञानरंजन द्वारा किया गया। यात्रा वृतांत की शैली में लिखी गई इस उपन्यारसिका में कई रोचक संस्मारण श्री समीर ने जोड़े हैं। इस पुस्तक का प्रकाशन शिवना प्रकाशन द्वारा किया गया है।
टूटी ऐनक से झांकती
धब्बेदार, धुँधलाई और
घबराई हुई
दो बुढ़ी आँखें...
उम्र की मार खाये
लड़खड़ाते दरख्त को
छड़ी के सहारे टिकाये
जीवन के अंतिम छोर पर
बरगद हो जाने की चाह..
अपने ही खून पसीने से सींच
बनाये आशियां में
अपनी खातिर
एक कोने की तलाश
और
एक तिनके भर आसरे
को बचाये रहने की मजबूरी
डूबती इच्छाएँ--
इस आस और मजबूरी के
तलघर में..
अपना सिर छुपाये
दम तोड़ती
न जाने कितनी बार देखी हैं..
कल
पात्र बदलेंगे...
तारीखें बदलेंगी
लेकिन
हालात!!!!
कौन जाने!!!!
-पहाड़ों का स्वरुप यूँ ही नहीं बदल जाता!!
***
-समीर लाल समीर
ये तो आज का कटु सत्य बन चुका है , जहाँ भी आँखें पसारें यही दिख रहा है. मार्मिक वर्णन अंतर को छू गया.
ReplyDeleteबहुत संवेदनशील रचना --
ReplyDeleteचर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 05 - 04 - 2011
को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.blogspot.com/
सत्य को उदघाटित करती एक बेहद उम्दा रचना।
ReplyDeleteसुन्दर रचना. प्रस्तुतकर्ता एवं रचनाकार दोनों को बधाई एवं नवसंवत्सर की शुभकामनाएं
ReplyDeleteकटु सत्य को उजागर करती रचना अंतर्मन को छू गयी ...
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना, समीर लाल जी को बहुत बहुत बधाई
ReplyDeletebahut umda rachana
ReplyDeleteआखर कलश पर चढ ही गए समीर लाल जी :) बधाई स्वीकारें सुंदर कविता के लिए॥
ReplyDeleteबहुत संवेदनशील रचना...प्रासंगिक भाव लिए
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार इस स्नेह का.
ReplyDeleteआप सभी को नवसंवत्सर की शुभकामनाएं.
ह्रदय को छूती हुई संवेदनशील रचना ......
ReplyDeleteकल
ReplyDeleteपात्र बदलेंगे...
तारीखें बदलेंगी
लेकिन
हालात!!!!
कौन जाने!!!!
-पहाड़ों का स्वरुप यूँ ही नहीं बदल जाता!!
bhawon se bhari rachna
वेदनशील रचना ... ह्रदय को छूती हुई ...
ReplyDeleteनिस्संदेह पूरी कविता ही दमदार है, फिर भी अंत में 'पहाड़ों का स्वरूप' वाले हिस्से को, 'किसी उपन्यास का एक वाक्य में सारांश: कहना अतिशयोक्ति न होगी| बधाई समीर भाई|
ReplyDeletehttp://samasyapoorti.blogspot.com
कल
ReplyDeleteपात्र बदलेंगे...
तारीखें बदलेंगी
लेकिन
हालात!!!!
कौन जाने!!!!
-पहाड़ों का स्वरुप यूँ ही नहीं बदल जाता!
बहुत ही मर्मस्पर्शी रचना समीर जी ! बिलकुल सही कहा आपने पहाड़ों का स्वरुप यूँ ही नहीं बदल जाता ! इन चट्टानों से टकरा कर नित्य कितना कुछ चूर चूर होता है और होता रहेगा इसकी कल्पना ही व्यथित कर जाती है ! इतनी संवेदना से भरपूर रचना के लिये बधाई एवं आभार !
इस आस और मजबूरी के
ReplyDeleteतलघर में..
अपना सिर छुपाये
दम तोड़ती
न जाने कितनी बार देखी हैं..
एक अलग ही भाव-संसार में ले जाती भावपूर्ण कविता...
समीर लाल समीर जी की रचनाओं को पढ़ना हमेशा सुखद लगता है.
समीर लाल जी का परिचय एवं कविता प्रस्तुत करने के लिए आपको साधुवाद...
SAMEER LAL NISANDEH SAMEER KEE TARAH HAIN ,
ReplyDeleteSHEETAL - SHEETAL . UNKEE RACHNAAON KO PADHNA
KISEE PAHADEE KEE SUKHAD YATRA SE KAM NAHIN
HOTA HAI . GADYA TO KYA PADYA MEIN BHEE VE
LAAJAWAAB HAIN . UNKEE YAH KAVITA MUN KO
BHARPOOR SPARSH KARTEE HAI .
ek samvedansheel rachna,
ReplyDeletebadhai sameer lall ji ko
विचारणीय व मर्मस्पर्शी कविता ।
ReplyDeleteबहुत ही मर्मस्पर्शी , भावपूर्ण कविता प्रस्तुत करने के लिए आपको साधुवाद...
ReplyDeleteनवसंवत्सर की शुभकामनाएं.
बस इस से ज्यादा अब कोई नहीं बयां कर सकता हालत-ए वक्त को
ReplyDeleteनरेन्द्र व्यास जी,
ReplyDeleteसमीर लाल समीर जी की कविता बहुत ही मर्मस्पर्शी है....
बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको हार्दिक धन्यवाद!
अत्यंत ही मार्मिक रचना और वर्तमान परिप्रेक्ष्य में सत्य भी
ReplyDeleteआँखें छलछला आई क्योंकि ऐसे दृश्यों को बड़े ही करीब से देखने का मौका ज़िन्दगी ने पेश किया है
खैर अति उत्तम
मर्म को छूती,सोचने पर मजबूर करती भावपूर्ण रचनाएँ।
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