नाम : अमित कल्ला
जन्म : o7 फरवरी, 1980, जयपुर, राजस्थान
शिक्षा : एम.ए. (आर्ट्स ऎंड एस्थेटिक्स), जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय, नई दिल्ली
कला के इतिहास का अध्यन, राष्ट्रीय संग्रहालय संस्थान, नई दिल्ली
अभिरुचि : कला और साहित्य
देश के विभिन्न शहरों में एकल और सामूहिक चित्र प्रदर्शनियो में भागीदारी
प्राचीन भारतीय कला, संस्कृति और साहित्य के अनन्य पक्षों की मर्मज्ञता
प्रकाशित पुस्तक : होने न होने से परे (कविता-संग्रह)
भारतीय ज्ञानपीठ के नवलेखन पुरस्कार से सम्मानित
सम्प्रति : जयपुर स्थित स्वतंत्र चित्रकार
संपर्क : 43, जोशी कालोनी ,टोंक फाटक
जयपुर -302015
मेरी ही सुगंध बन
तत्त्वत:
अर्थ लिए
असमाधेय
मूरत
एक-एक
शब्द
सार्थक करती है
सच कहूँ तो
रोक लेती
मुझे
मेरी ही सुगंध बन
किसी तितली सी
नयी पाँखों पर
जा-जाकर
तार-तार
उस असंभव
उडान के
रंग गिनती है
***
चिड़िया
कहकर
कुछ शब्द
कमल की पंखुरिओं से
झरते
समय को
कथा सी
ले उडी
नहीं
संभलता
उससे
समय
अब तो सिर्फ
निशाना लगाती है
चिडिया
शाख दर शाख
हरा जोबन चढाती है
***
मनहट कौन साधता,
आखिर
किस पर है
भरोसा,
अधरस्ते में छूट जाते
कुछ नये,
कुछ पुराने,
कुछ ओस में नहाये,
कुछ प्रार्थनाओं,
कुछ प्रतिघातों में,
कुछ पास,
कुछ दूर,
कुछ दुबके दुबके
अंतर्मन में,
कहाँ है
अजरावर अनजानी काया,
अखंड लय विन्यास ,
सूर्यरथ ,
रंगमहल के राजा
कौन
रहता राखता
किसके शब्द
कहे सुने जाते
कौन
खीच लाता उस दृग तक
कौन
कागज़ के दीप जलाता
मनहट कौन साधता,
आवारा बादल
या
अथाह आलिंगन
***
जोगन का जोबन
चुराकर
जोगन का जोबन
रंग डाला
सुनहरा रंग
खुद ने
ओढ़ी है
काली कमली
अब क्या कहूँ
उससे,
आते ही
कमंडल में
हो जाता
जो
गंगाजल
***
कहाँ
कहाँ
विभाजित क्षितिज
कहाँ
विवर्जित माया
कहाँ
नैना सुरत सयानी
कहाँ
अगम निगम का खेला
कहाँ
बिसर मुक्तिफल जाता
कहाँ
रेखाओ कई महानिद्रा
कहाँ
रंग संग बसेरा
कहाँ
भर-भर कंचन वर्षा
कहाँ
पानी को पानी से धोना
कहाँ
छाव को छाव से अलग करना
कहाँ
आख़िर एसा मेला ।
***
मायावी हूँ
मायावी हूँ
नही थकता
वंचित भी नही रहता
ज्योत्सना के साथ
खोज लेता
इन्द्र से अवक्रीत
स्वप्न
आख़िर क्या रिश्ता
बे ख़बर
नगर-नयन का,
किसी
कथा सा
गोल-गोल
संयोग के पार
केवल ए़क नज़ारा ही
काफी होता है
घटाकाश का प्रखर वेग
अन्तःपुर की व्यकुलता दर्शाता ,
कहाँ
फर्क पड़ता मुझे
अनवरत
बरसती आग में
शाही स्नान कर
फ़िर नई काया धरता हू
***
========================
ReplyDeleteनिखरती रहे वह सतत काव्य-धारा।
जिसे आपने कागजों पर उतारा॥
========================
होली मुबारक़ हो। सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी
सभी कविताएं बहुत सुन्दर और भावपूर्ण हैं...
ReplyDeleteहार्दिक बधाई...
क्या बात है! बहुत सुन्दर रचनाएं. एक अलग ही जीवन-दर्शन करातीं . इतनी सी उम्र में बहुत खूब लिख रहे हैं अमित. बधाई, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteसाधुवाद ...
ReplyDeleteअमित कल्ला की यह समर्थ कविताएं अपनी बिम्बात्मता के काराण प्रभावित करती हैं । आयु कविता के सामर्थ में कहां बाधा ?
ReplyDeleteकई दिनो बाद अच्छी कविताएं पढ़ने को मिली ।
"आखर कलश " के सम्पादक द्वय नरेन्र्द्र व्यास,सुनील गज़ाणी एवम कवि अमित कल्ला को हादिक बधाई !