नाम- राजेश चड्ढा
पिता- स्व. श्री ओमप्रकाश चड्ढा। माता- श्रीमती सरला देवी।
जन्म- 18 जनवरी, 1963 को हनुमानगढ़ में।
शिक्षा- एम.कॉम. एमजेएमसी।
लोकप्रिय उद्घोषक व शायर। सन 1990 से नियमितरक्तदान । अध्यक्ष , सिटिज़न एकलव्य आश्रम । पंजाबी, हिन्दी व राजस्थानी
तीनों भाषाओं में कार्यक्रमों की प्रस्तुति में विशेष महारत। पंजाबी कार्यक्रम 'मिट्टी दी खुश्बू' पड़ोसी देशों में भी बेहद लोकप्रिय। इस
कार्यक्रम पर कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय से लघुशोध भी हुआ। प्रथम नियुक्ति सितंबर 1986 में उदयपुर आकाशवाणी में हुई। जनवरी 1991 से
सूरतगढ़ आकाशवाणी में सेवारत। इस दौरान देश की नामचीन हस्तियों, पूर्व राष्ट्रपति श्री आर. वेंकटरमन, मशहूर शायर निदा फाजली, जन कवि गोपाल दास 'नीरज' , अर्जुन पुरस्कार विजेता तथा विश्व कप बैडमिंटन चैंपियन प्रकाश पादुकोण तथा सुप्रसिद्ध कॉमेंटेटर मुरली मनोहर मंजुल से रेडियो के लिए साक्षात्कार।
1980 से निरंतर सृजनरत । उन्हीं दिनों से हनुमानगढ़ की साहित्यिक गतिविधियों के संयोजन में प्रमुख भूमिका । अखिल भारतीय साहित्य-विविधा 'मरुधरा' के चार सम्पादकों में से एक। इस विविधा का लोकार्पण मशहूर साहित्यकार अमृता प्रीतम ने किया। उल्लेखनीय है कि आपकी
कहानियां हिन्दी की नामचीन पत्र-पत्रिकाओं में छपती रही हैं तथा कहानी लेखन के क्षेत्र में भी आप पुरस्कृत हो चुके हैं। वर्तमान में आकाशवाणी
सूरतगढ़ (राजस्थान) में वरिष्ठ उद्घोषक।
बेवक़्त चेहरा झुर्रियों से भरने लगी है ग़रीबी तूं
है पौध नाम फ़सल में, धरने लगी है ग़रीबी तूं ।
तू पेट के आईनें में शक़्ल कुचलती है कई दफ़ा
परछाई पर भी ज़ुल्म , करने लगी है गरीबी तूं ।
चाँद को भी आकाश में, रोटी समझ के तकती है
अब रूख़ी-सूख़ी चाँदनी, निगलने लगी है गरीबी तूं ।
प्यास लगे तो आंसू हैं, ये दरिया तेरा ज़रिया है
अपने पेट की आग़ में, जलने लगी है गरीबी तूं ।
ख़ामोश है और ख़ौफ़ से सहमी हुई सी लगती है
शायद तन्हा लम्हा-लम्हा, मरने लगी है ग़रीबी तूं
***
मत मांग गरीब रात से, तू गोरे चांद सी रोटी ,
तोड़ देगी भूख़ तेरी, ये लोहारी हाथ सी रोटी ।
नहीं करेगा कोई तमन्ना, पूरी ख़ाली पेट की,
अरे नहीं मिलेगी तुझे कभी, सौग़ात सी रोटी।
सोचता है मिलेगी, औरत जैसी कठपुतली सी,
अरे ! पीस देगी बेदर्द ये मर्द ज़ात सी रोटी ।
तेरा जीवन कब तेरा है, मरना तेरा अपना है,
बात-बात में सब देंगे, बस कोरी बात सी रोटी
हवा ओढ़ ले ढ़ांचे पर, सो जा ये मिट्टी तेरी है,
शायद नींद में ही मिल जाए, ख़्वाब सी रोटी ।
***
-राजेश चड्ढा
राजेश जी की खूबी यह है कि २५० करोड की फ़ाह्शी शादियाँ रचाने, उनका बखान करने वाले देश में, पंच सितारी संस्कृति के बीच जीते हुये भी भूख, रोटी और उनसे जुडी संवेदना को भलि भांति अभिव्यक्ति दे देते है..सहज और सीधे सीधे..साधुवाद स्वीकार करे..आखर कलश भी और राजेश जी भी..सादर
ReplyDeleteहवा ओढ़ ले ढ़ांचे पर, सो जा ये मिट्टी तेरी है,
ReplyDeleteशायद नींद में ही मिल जाए, ख़्वाब सी रोटी ।
सुभानाल्लाह ....
इस शे;र ने ग़ज़ल में चार चाँद लगा दिए .....
बधाई राजेश की आखर कलश की शोभा में
शामिल होने के लिए .....
बेहतरीन गजले ,बहुत अच्छा लगा पढ़ कर ,
ReplyDeleteगरीब की गरीबी भी बडी वफ़ा निभाती हे ... आरजू रोटी की कर गरीब के साथ भूखी सो जाती हे
चाँद को भी आकाश में, रोटी समझ के तकती है
ReplyDeleteअब रूख़ी-सूख़ी चाँदनी, निगलने लगी है गरीबी तूं ।
Rajesh ji aapki donon ghazals padh kar maza aaya Navneetan kafion ka istemaal bahut khoob kiya hai. shubhkamanon ke saath
Rajesh Bhai rachanaaen achchee lagi
ReplyDeleteबेवक़्त चेहरा झुर्रियों से भरने लगी है ग़रीबी तूं
ReplyDeleteहै पौध नाम फ़सल में, धरने लगी है ग़रीबी तूं ...
Beautiful creation !
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राजेशजी,
ReplyDeleteआपने गरीबी का बखूबी चित्रण किया है | दोनों गज़लें लाजवाब ! जिन्हों ने खुद गरीबी से दोस्ती की हो, वोही ऐसी जबज़स्त अभिव्यक्ति कर सकता हैं | आपने गरीबों के भावों को आत्मसात किया होगा तभी ये गज़लें आई हैं | बधाई |
बेहतरीन गजले ,बहुत अच्छा लगा पढ़ कर ,
ReplyDeleteआप सभी का आभार .... आपने....मर्म तक पहुंचने की ज़हमत उठाई....आखर-कलश परिवार का तो मैं..आभारी हूं ही....ह्रदय से शुक्रिया सभी का
ReplyDeleteप्यास लगे तो आंसू हैं, ये दरिया तेरा ज़रिया है
ReplyDeleteअपने पेट की आग़ में, जलने लगी है गरीबी तूं ।
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मत मांग गरीब रात से, तू गोरे चांद सी रोटी ,
तोड़ देगी भूख़ तेरी, ये लोहारी हाथ सी रोटी ।........
राजेश चड्ढा जी, की ग़ज़लों का तो ज़वाब नहीं !
दोनों गज़लें लाजवाब हैं!
rajesh g aap ki dono gazlen naye zaviye mafum ke etbar se bahut khubsurat gazlen ban padi hai ,mozuda waqt ki ainadar in gazlon ke liye mubarakbad qubul kije
ReplyDeleteसंवेदनशील अभिव्यक्ति!
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