ब्रज श्रीवास्तव की कविताएँ

संक्षिप्त परिचय:
नामः ब्रज श्रीवास्तव
जन्मः ०५.०९.१९६६ (काँकर) जिला विदिशा
शिक्षाः एम.एस.सी. (गणित), एम.ए. (अंग्रेजी), बी.एड., एम.ए. (हिन्दी)
प्रकाशनः पहला कविता संग्रह ‘तमाम गुमी हुई चीज़ें’, हंस, पहल, सहारा समय, समकालीन भारतीय, वसुधा, कादंबिनी, आऊट लुक, दस बार साक्षात्कार, कला समय, जनसत्ता, रसरंग (दैनिक भास्कर), राष्ट्रीय सहारा, इंडिया टुडे, साहित्य, कथन, वागर्थ, संवेद वाराणसी, कई पत्र-पत्रिकाओं में कविताएं, अनुवाद आदि प्रकाशित।
प्रसारणः दूरदर्शन, आकाशवाणी में कविता पाठ
संप्रतिः सहायक परियोजना समन्वयक (सर्वशिक्षा अभियान, जिला शिक्षा केन्द्र, विदिशा (म.प्र.)
पताः २३३, हरिपुरा विदिशा, (म.प्र.) ४६४००१


१.
हम सराहें उन्हें भी

जो झूठ बालें अक्सर
और शरण दें मक्कारों को
जो बैठे रहें हरदम अना के घोड़े पर
तुम उन्हें सराहो

हम उनकी करेंगे तारीफ़
जो दुर्दिन में दिखाई दें थोडे से उदास
कभी तो हँसे ज़ोर से
ठंड के दिनों में पहने फुल आस्तीन की स्वेटर
निश्छल रहें बच्चों की तरह

तुम उन्हें सराहो तो सराहो
जो तुम्हें भी अवसर दें कामचोरी का
जो चापलूसी को ही समझें निष्ठा
जो ग़लत बात को पेश करें
सच बात के अंदाज़ में
तुम्हारा दाँत निपोरना जिन्हें प्रिय दृश्य

हम उनकी तरफ़दारी करेंगे
जो तुम जैसे लोगों के साथ रहकर भी
नहीं बदलते अपना स्वभाव
जो प्रेम में पड़कर दिखाई दें प्रेमी ही
बहुत हुआ तो हो जाए थोड़े से ग़ुस्सा
नफ़रत जिन्हें नापसन्द हो

तुम नहीं सराहो मुझे भी
फ़िलहाल मैं तुम्हे भी नहीं सराहूंगा

वह दिन तो आना ही है एक दिन
जब तुम मुझे सराहोगे मन ही मन
और मैं कहूंगा
हम सराहें उन्हें भी
जो अन्ततः
सच को सराहें
***

२.
हमारी क्या बिसात

छद्म चमक रहा है चँदा जैसा
बाज़ार सूरज बन जाना चाहता है

इस दौर में हमारा अस्तित्व क्या है ?

फ़रेब घुल रहा है वायु में
ले रहा है ऑक्सीजन का स्थान

संगीत की गद्दी पर बैठना चाहता है
धर्मों का शोर
महंगाई के ज़ुल्म पर सभी चकित हैं
मुक़र्रर तमगे चुराए जा रहे हैं

हमारी क्या बिसात ऐसे में
और कविता की तो और भी फ़ज़ीहत है
मालूम है
किसी भी दौर में नहीं फलीं अपेक्षाएँ

वैसे अभी ये दौर भी ख़त्म नहीं हुआ
अस्तित्व भी नेस्तनाबूत नहीं हुआ अभी।
***

३.
ख़राब व्यक्ति

सब कर रहे हैं उसका ज़िक्र
कह कर उसे ख़राब व्यक्ति

यह बहुत काम का समय है
जो जाया हो रहा
किसी के ज़िक्र में

उसकी उपस्थिति में
कहाँ रहा किसी के पास
इतना अवकाश कि
चर्चा हो किसी रुख़सत की

समय ख़राब करने के आदी लोगों को
उसने देना नहीं एक सीख

अब फिर उसके पास है वक्त
मुस्तला हैं सब
ख़राब व्यक्ति, ख़राब व्यक्ति कहने में ।
***

४.
ख़ास तौर से....

मैं क्यों यह कामना करता हूं
कि तुम मेरे नज़दीक आओ

मैं क्यों चाहता हूं
कि तुम मुझसे कभी
अंतिम रूप से नाराज़ न होना

मैं क्यों सोचता रहता हूं
कि तुम्हारे ख़िलाफ़ कभी कोई न हो
हवा भी दुःख न पहुंचाए तुम्हें।

मैं क्यों उम्मीद करता हूं
कि तुम मुझसे मीठा-मीठा बोलो
हाल-चाल पूछो

मैं इसलिए किए जा रहा हूं ये अनायास
कि तुम एक अच्छे शख्स हो
ख़ासतौर से मेरे लिए
तुम्हारे यहां होने के
बहुत ख़ास मायने हैं।
***
-ब्रज श्रीवास्तव

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2 Responses to ब्रज श्रीवास्तव की कविताएँ

  1. Bahut anmol rachnayen hain sabhee!

    ReplyDelete
  2. सभी बहुत अच्छी रचनायें ......

    कलम की सोच और शब्दों की कलाकारी दोनों उत्कृष्ट है ......

    ब्रज श्रीवास्तव जी को बधाई ....!!

    ReplyDelete

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