-अपर्णा मनोज भटनागर
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“माँ सरस्वती-शारदा”
ॐ श्री गणेशाय नमः !
या कुंदेंदु तुषार हार धवला, या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणा वरदंडमंडितकरा या श्वेतपद्मासना |
याब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवै सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निश्शेषजाढ्यापहा ||
या कुंदेंदु तुषार हार धवला, या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणा वरदंडमंडितकरा या श्वेतपद्मासना |
याब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवै सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निश्शेषजाढ्यापहा ||
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सम्पादक मंडल
- Narendra Vyas
- मन की उन्मुक्त उड़ान को शब्दों में बाँधने का अदना सा प्रयास भर है मेरा सृजन| हाँ, कुछ रचनाएँ कृत्या,अनुभूति, सृजनगाथा, नवभारत टाईम्स, कुछ मेग्जींस और कुछ समाचार पत्रों में प्रकाशित हुई हैं. हिन्दी साहित्य, कविता, कहानी, आदि हिन्दी की समस्त विधाएँ पढने शौक है। इसीलिये मैंने आखर कलश शुरू किया जिससे मुझे और अधिक लेखकों को पढने, सीखने और उनसे संवाद कायम करने का सुअवसर मिले। दरअसल हिन्दी साहित्य की सेवा में मेरा ये एक छोटा सा प्रयास है, उम्मीद है आप सभी हिन्दी साहित्य प्रेमी मेरे इस प्रयास में मेरा मार्गदर्शन करेंगे।
अपर्णा जी की कविताओं में एक अजीब सी अनुसंधान की प्रवृति आपको साफ़ दिखाई देगी..कुछ टटोलते हुये जैसे बरसात के मौसम में सीली, गीली लकडियों के बेपनाह गठ्ठर में किसी सूखी लकडी की खोज करती खुरदरेरी उंगलियां..अनम्यस्क भाव से बहती हुई धारा (कविता)..आप उसे दूर तक जाते देखते... रोटी की समीक्षा भी बडे अलग अंदाज़ में की गयी है. सादर
ReplyDeletebahut achchhi kavitayen.......
ReplyDeleteइस मंच की प्रतिष्ठा को और बढ़ाने के लिए अपर्णा जी को बधाई..
ReplyDeleteकवितायें अच्छी हैं…पर बीच-बीच में गैप बहुत ज़रूरी है वरना अर्थग्रहण दुष्कर हो जाता है। संभव हो तो एडिट करके यथास्थान गैप अवश्य दे दें। सादर
ReplyDeleteबेहद सुन्दर रचनाएं हैं प्रिय कवियत्री अपर्णा जी की | उनकी कविताओं की बात ही सबसे जुदा है .. और आपकी पोस्ट रंग सयोजन, सेट्टिंग, डिजाइनिंग भी शानदार है ... आपकी यह पोस्ट कल चर्चामंच पर होगी ... आप भी वह आ कर अपने विचारों से अवगत करवाएं
ReplyDeletehttp://charchamanch.uchcharan.com
ReplyDeleteअपर्णा जी के रचना संसार से मिलवाने का आभार।
ReplyDelete--------------
हिन्दी के सर्वाधिक पढ़े जाने वाले ब्लॉग।
इन कविताओं को आत्मसात कर,
ReplyDeleteइनके रस में निमग्न होना ,अपने आप में -अद्भुत अनुभव है !
सुन्दर रचनाओं के लिए बधाई !
अपर्णा लगातार बेहतर कर रही हैं.
ReplyDeletelajbaba
ReplyDeleteगणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें....
एक फासला ...तय कर गयी भूख !
ReplyDeleteअजब स्पर्धा दे गयी भूख !
अब रोटी की गोलाई कहीं चाँद है
तो कहीं ठन्डे तवे की गोल जलन !
पेट के छाले बन
दुखती है रोटी ..
रिसती है रोटी .
बहुत ही गहरी भावानुभूति
kavitaen pasand karne ke liye aap sabhi ka aabhar!
ReplyDeleteaparnaji bahut sundar kavitayen aap likhti hain badhai
ReplyDeletesabhi rachnaayen bahut achhi aur bhaavpurn hai, shubhkaamnaayen aparna ji.
ReplyDeleteअपर्णा जी ...कोटि कोटि नमन....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर मन को अंतर तक स्पर्स करती रचना ..रोटी / पेट की भूख ने जीवधारियों में कितना संघर्ष विकसित किया ..मानवीय सम्वेदाओं को कहाँ से कहाँ पहुंचाया ...कितनी कोमलता थी ...
तभी ..
इस नींद में स्वप्नों का अंतर
एक फासला ...तय कर गयी भूख !
अजब स्पर्धा दे गयी भूख !
अब रोटी की गोलाई कहीं चाँद है
तो कहीं ठन्डे तवे की गोल जलन !
पेट के छाले बन
दुखती है रोटी ..
रिसती है रोटी ..
सादर अभिनन्दन !!!
श्रीप्रकाश डिमरी
अपर्णा जी नमस्कार
ReplyDeleteआपकी रचना नाविक मेरे को पढ़ा जितने शानदार तरीके से आत्मा भाव को जाग्रत करने उसकी सामर्थ्य से स्वयं को परिचित करने तथा आने वाले कल का स्वागत नई रचना के लिए प्रेरित करना वाकई खुबसूरत लाजवाब काबिले तारीफ
बहुत बहुत धन्यवाद् साधुवाद क़ीपत्र हैं मेरी और से शुभकामनायें
मार्कंडेय Ranga
अपर्णा जी कोटि कोटि अभिनन्दन ..बहुत ही ससक्त रचना ..सचमुच आदिम सामूहिक होते होते ..मिलबांट कर खाने वाली भूख से कब इतनी अकेली हो गयी...
ReplyDeleteबस !तभी हाँ ,
तभी ..
इस नींद में स्वप्नों का अंतर
एक फासला ...तय कर गयी भूख !
अजब स्पर्धा दे गयी भूख !
tumhari kavita jese koyi samndr ki garayi .......
ReplyDeletetumhare ahsas jese bhitr ki antdhniyo ko milta sukh ...........tumhare in ahsaso or bhavo ne kayl bana diya ........
mere dher sari duaaye or shubhkamneye arpna ji ko