माँ हंसकर टाल जाती है
नानी ने जो सुनाई थी माँ को
उसके बचपन में
मुझे माँ ने वही कहानियाँ सुनाई
मेरे बचपन में
क्या कहानियाँ थी, क्या थे कथानक
कितने अजीब, कितने भयानक
कहीं भी, कुछ भी हो जाता था अचानक
समझ नहीं पाते थे,
कितने प्रश्न आते थे..
माँ हंस कर टाल जाती थी
बस, कहानी कहती जाती थी...
माँ आज भी कहाँ बताती है
हंस कर टाल ही तो जाती है...
कहानी और कहानियाँ
बनती ही जाती है...
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आज फ़िर फ़ेंक गया
कि फ़ेंक गयी
अलसुबह कि
आधी रात को
पता नहीं, कब?
एक नवजात
शहर के सुनसान इलाके में
मरा कि अधमरा
करता संघर्ष मृत्यु से
आज फ़िर हुयी भीड
गढी चटकारे ले ले कर
तरह-तरह की कहानियाँ, बातें
कोसा निर्दयी बिनब्याही मां को
(सारी फ़ब्तियां, गालियां, फ़तवे)
सिर्फ़ उस मां को
किसी ने कुछ भी न कहा
उस
मक्कार धोखेबाज़ कसूरवार पिता को
क्या हो गया है
इस आदम जात को?
आखिर कब तक और क्यूं
नवजातों को यूं फ़ेंका, मारा जाएगा
उसे पाप पुकारा जाएगा
क्या सचमुच ही यह पाप है?
यह कैसा इंसाफ़ है?
एक मनचाहे सम्बन्ध की
क्या होगी हमेशा
यही परिणिति
एक निरपराध, असहाय
मासूम नवजात की
ऎसी गति, दुर्गति?
क्या कभी बदल पाएंगे हम
अपनी यह मति-वृति?
क्या है उत्तर
इस अनुत्तरित प्रश्न का
आखिर कब तक
भुगतेगा परिणाम
एक नवजात
एक क्षणिक आवेग, एक व्यसन का?
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बहुत सुंदर...
ReplyDeleteजीवन की विद्रूपताओं पर अच्छे सवाल उठाए हैं। बधाई।
ReplyDelete---------
पति को वश में करने का उपाय।
विज्ञान प्रगति की हीरक जयंती।
बहुत सुन्दर कवितायेँ...बधाई.
ReplyDeleteबेहतरीन रचनाएँ!
ReplyDeleteखूबसूरत भावभीनी और हृदयस्पर्शी कवितायें।
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