नाम : कुमार लव
जन्म : 1986, उत्तर प्रदेश (भारत)
शिक्षा : प्रारंभिक शिक्षा: पुंछ, ऊधमपुर और चेन्नै में
उच्च शिक्षा: हैदराबाद में- बीटेक.
दिल्ली में- ऍम.बी.ए.
कार्य : इनफोसिस (२००७-२००९)
प्रकाशन : कृत्या, साहित्य कुञ्ज और अभिव्यक्ति में सम्मिलित
ब्लॉग लेखन :
गर्भ में (http://garbhmein.blogspot.com/)
वक्रोक्ति - हिंदी (http://vakrokti-hindi.blogspot.com/)
वक्रोक्ति (http://vakrokti.blogspot.com/)
सम्पर्क:
kummarluv@gmail.com
+91-9999224215
जीवंत यादें
कुछ मृत सपनों की
दौड़ रही हैं
मेरे मस्तिष्क में.
भटक रही हैं
पवित्र आत्माएं
मेरे सिर के भीतर.
गूँज रही हैं
उनकी अंतिम चीखें
लाल दीवारों से टकराकर.
टक्कर
इतनी तेज़
फट जाते हैं बार बार
अन्दर लगे पाइप.
**
प्रिय अ,
याद है तुम्हें वह दिन
जब अमृताजी को सुनते हुए
कहा था तुमसे-
मैं भी उतर आऊंगा एक दिन - कई वर्षों बाद -
तुम्हारे कैनवस पर,
और तुम बोल उठी थी
ले जाएगा तुम्हारा ब्रश हमें
सोने के दो कंगन
और बारिश की कुछ बूंदों के पास.
प्रिय अ,
कुछ ही दिनों में
खो गई तुम अपनी ज़िन्दगी में
छूट गया ब्रश
धूल जम गई कैनवस पर
ऐसे सूख गए शीशियों में भरे रंग
अब बस खरोंच सकती है उन्हें
तुम्हारी उँगलियाँ.
प्रिय अ,
रुई-से सपनों और अधबुने रिश्तों के बीच
आज भी इंतज़ार हैं मुझे
रहस्यमयी लकीर बन
तुम्हें तकने का.
**
मैंने
अपनी ख़ुशी के लिए
खुद का आविष्कार किया.
वह सब किया
जो उस पल करना चाहा.
खुद को सबसे ऊंचा माना.
पर
एहसास हुआ
धीरे-धीरे
बेमतलब था
यह सारा भटकाव.
न मुझसे उभरा कोई मतलब
न औरों को देने दिया.
(ऊंचा जो था मैं!)
**
कई मोड़ हैं
बिखरे हुए
इस शहर में.
कभी इन्हीं मोड़ों पर
मिल जाते थे
तुम्हारे दोस्त और तुम.
चाय की प्याली पर
बातें भी खूब होती थीं,
कुछ-कुछ समझने लगा था तुम्हें
चाहे जानता नहीं था -
जानना चाहता भी नहीं था.
आज भी वे मोड़
वहीँ पड़े हैं.
**
मैंने देखा
अपने सबसे चमकदार दोस्तों को
सड़क के बीच
लड़ते हुए,
कुछ और लोगों के लिए
अपने से दुगने बड़े दबंगों से
बिना जाने क्यों
बिना जाने किस बात पर
लड़ रहे थे वह
उनके आने से पहले.
शायद क्वार्टर के लिए
या सोडे के लिए
या किसी और वजह से
पर साथी थे
तो उनका साथ तो देना ही था.
मैंने देखा
अपने सबसे प्यारे दोस्त को
टूटते हुए
छोड़ आए थे उसे अकेला
वही सब जिन्हें बचाने को
रुका था वह वहाँ.
मैंने देखा
अपने सबसे क़रीबी दोस्त को
टूटते हुए
अलग जो कर लिया था उसे
उसकी पहचान के कारण
उसका ईमान मुसल्लिम होने के कारण.
मैंने देखा
यहाँ के सबसे शांत व्यक्ति को
हल्ला मचाते नशेड़ियों की
चक्की में पिसते हुए.
और फिर देखा
खिड़की से आती रोशनी में
उसके शांत चेहरे को
और आँखों के झिलमिलाते कोनों को
सोते हुए.
**
-कुमार लव
पहली बार आपको पढ़ा है !अच्छा लगा !
ReplyDeleteशुभकामनायें !
‘जब अमृताजी को सुनते हुए
ReplyDeleteकहा था तुमसे-
मैं भी उतर आऊंगा एक दिन - कई वर्षों बाद -
तुम्हारे कैनवस पर,’
एक और इमरोज़!!!!!!:)
बढिया कविताओं के लिए कुमार लव को बधाई॥
बेहतरीन कविताएँ हैं, बहुत दिनों बाद इतनी सुन्दर रचनाएँ पढने को मिली है!
ReplyDeletemany thanks for the encouraging words :)
ReplyDeleteउम्र के हिसाब से लाजवाब पकड़ है कविताओं में। खूबसूरत।
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