जन्म स्थान: वजीराबाद (पाकिस्तान)
जन्म: १३ जून १९३७
निवास स्थान: कवेंट्री, यू.के.
शिक्षा: प्राथमिक शिक्षा दिल्ली में हुई, पंजाब विश्वविद्यालय से एम. ए., बी.एड.
कार्यक्षेत्र : ग़ज़लकार, कहानीकार और समीक्षक प्राण शर्मा छोटी आयु से ही लेखन कार्य आरम्भ कर दिया था. मुंबई में फिल्मी दुनिया का भी तजुर्बा कर चुके हैं. १९५५ से उच्चकोटि की ग़ज़ल और कवितायेँ लिखते रहे हैं.
क्या -क्या नहीं कहा उसे अपनी सफाई में
हर बात उसने टाल दी लेकिन हँसाई में
सुलझा है झगड़ा दोनों में,फिर भी वे डरते हैं
के मामला पड़े नहीं फिर से खटाई में
तन की सफ़ाई खूब हैं माना कि आज कल
लेकिन कमी है दोस्तो मन की सफ़ाई में
बाहर बनी मिठाई में वो बात हैं कहाँ
जो बात है ए दोस्तो घर की मिठाई में
ए " प्राण " जानता है सभी उसकी खामियाँ
फिर भी मज़ा वो लेता है सबकी बुराई में
***
माथे के सारे दाग़ मिटाना ज़रूरी है
दुनिया को साफ़ चेहरा दिखाना ज़रूरी है
मिलता नहीं है कोई ठिकाना तो क्या करूँ
कहने को हर किसीको ठिकाना ज़रूरी है
क्यों कोई छूट जाए तेरा दोस्त सूची से
दावत में हर किसीको बुलाना ज़रूरी है
मैं पूछता हूँ आपसे ये बात दोस्तो
क्या दोस्त को नज़र से गिराना ज़रूरी है
सूई से लेके धागे तक आप रखिये सब हिसाब
अच्छी तरह से घर को चलाना ज़रूरी है
इक बच्चा भी बता गया हमको पते की बात
दुश्मन से अपनी आँख चुराना ज़रूरी है
कोई जलाए या न जलाए कहीं मगर
मंदिर में दीप नित्य जलाना ज़रूरी है
हम भी हैं जाने ,दोस्त को इनकार के लिए
कोई न कोई " प्राण " बहाना ज़रूरी है
***
- प्राण शर्मा
वाह, आदरणीय प्राण शर्मा जी की उम्दा ग़ज़लें प्रस्तुत करने के लिए आखर कलश परिवार का बेहद शुक्रिया
ReplyDeleteदोनों ग़ज़लें बहुत शानदार हैं...
और ये शेर-
मैं पूछता हूँ आपसे ये बात दोस्तो
क्या दोस्त को नज़र से गिराना ज़रूरी है
कितनी बड़ी शिक्षा दे रहा है.
प्राण भाई साहब की ग़ज़लें हमेशा ही मुझे कुछ ना कुछ सिखा जाती हैं|
ReplyDeleteमैं पूछता हूँ आपसे ये बात दोस्तो
क्या दोस्त को नज़र से गिराना ज़रूरी है
और
तन की सफ़ाई खूब हैं माना कि आज कल
लेकिन कमी है दोस्तो मन की सफ़ाई में
क्या खूब कहा है | बहुत बढ़िया | बधाई | आखर कलश परिवार की बेहद आभारी हूँ ,जो उन्होंने दो शानदार ग़ज़लें पढ़ने का सुअवसर दिया |
सुधा ओम ढींगरा
वाह, क्या बात है ! दोनों ग़ज़ल बढ़िया है !
ReplyDeleteतन की सफ़ाई खूब हैं माना कि आज कल
ReplyDeleteलेकिन कमी है दोस्तो मन की सफ़ाई में
***
क्यों कोई छूट जाए तेरा दोस्त सूची से
दावत में हर किसीको बुलाना ज़रूरी है
***
आदरणीय प्राण साहब की गज़लों की सादगी मन मोह लेती है...उनकी गज़लों के शेर कबीर के दोहों की दिल में गहराई तक उतर कर असर करते हैं. उनकी गज़लों जैसी सादगी और सच्चापन बहुत मुश्किल से कहीं पढ़ने को मिलता है.
उनकी ग़ज़लें हम तक पहुँचाने का शुक्रिया
नीरज
बहुत उम्दा गज़लें लगी दोनों.
ReplyDeleteआदरणीय प्राण जी
ReplyDeleteकी ग़ज़लों के लिए
आखर कलश का आभार !
आपकी ग़ज़लें पढ़ना हमेशा ही अच्छा लगता है ।
प्रस्तुत दोनों ग़ज़लें भी अच्छी हैं …
लेकिन सपाटबयानी कुछ अधिक लग रही है ।
… और, अवश्य ही यह आम पाठक-लेखक को ग़ज़ल से जोड़ने का प्राण शर्मा जी का अंदाज़ है :)
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
अदरणीय भाई साहिब प्राण शर्मा जी की दोनो गज़लें बेमिसाल हैं । आज कल पंजाब मे केवल दो तीन घन्टे बिजली मिल पा रही है। अज केवल भाई साहिब की गज़लें पढने आयी हूँ। हर एक शेर दिल को छूता हुया। किसी एक को कोट करने का सवाल ही नही। उन्हें इस गज़ल के लिये बधाई।
ReplyDeleteकुछ ब्लॉग्स जिनमें आपका ब्लॉग भी शामिल हो गया है, इंटरनेट एक्सप्लोरर से नहीं खुलता है, बस हल्की सी झलक दिखाकर गायब हो जाता है, इसलिए कई पोस्टें पढ़नें में खुद को विवश पाता रहा। अब मैंने मोझिला इस्तेमाल करना आरंभ किया है। इस पर वो दिक्कत पेश नहीं आती है।
ReplyDeleteप्राण साहब एक माहिर ग़ज़लकार हैं। उनकी ग़ज़लें हमेशा प्रभावित करती रही हैं, ये दोनों ग़ज़लें भी मुझे स्पर्श कर गयीं।
प्राण शर्मा साहब की सीधी सादी ग़ज़लें सीधे सादे शब्दों में और उन शब्दों मे डुबकी, एक अलग ही आनन्द है।
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